Ramayan Story of Lord Ram Vanvas: वनवास में मुनियों की हड्डियों के ढेर देख श्री राम ने वहीं पर आकाश की ओर हाथ उठा कर सम्पूर्ण पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने की प्रतिज्ञा ली. वे संकल्प लेकर आगे बढ़े ही थे कि अगस्त्य मुनि के एक शिष्य सुतीक्ष्ण को श्री राम के वन में आगमन की जानकारी मिली तो वे मन ही मन श्री राम, और उनके छोटे भाई लक्ष्मण के दर्शन को व्याकुल हो अपने आश्रम से वन की ओर दौड़ पड़े.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मुनि विचार करने लगे कि भवबंधन से छुड़ाने वाले प्रभु के मुखारविन्द को देख कर आज उनके नेत्र सफल होंगे, ज्ञानी मुनि प्रभु के प्रेम में इतने निग्न हो गए कि उनकी दशा कही ही नहीं जा सकती है. गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि उन्हें दिशा या विदिशा आदि कुछ नहीं सूझ रहा था, मैं कौन हूं कहां जा रहा हूं, वह कभी पीछे घूमते तो फिर आगे चलने लगते और कभी प्रभु के गुण गा गाकर नाचने लगते.


पेड़ की आड़ से देखी प्रभु श्री राम ने मुनि की प्रेमाभक्ति 


मुनि सुतीक्ष्ण तो प्रभु को देखने की आस में प्रेमोक्त हो कर अपनी सुध-बुध खो बैठे और कृपानिधान श्री राम इस प्रेमाभक्ति को देखने के लिए एक पेड़ की आड़ में छिप गए. फिर मुनि को देखकर आनंदित होने लगे. इसी बीच श्री रघुनाथ मुनि के हृदय में प्रकट हो गए. हृदय में दर्शन पाकर मुनि बीच रास्ते में ही स्थिर हो कर बैठ गए. उनका शरीर रोमांच से कटहल की तरह हो गया यानी उनका रोम-रोम खड़ा हो गया और मुनि उसी के बीच जैसे छिप गए हों. भक्त की प्रेम दशा देख कर श्री रघुनाथ बहुत प्रसन्न हुए और उनके पास चले आए.


यह भी पढ़ें: Numerology: पिता का भाग्‍य चमका देते हैं इन तारीखों में जन्‍मे बच्‍चे! जल्‍दी बनते हैं करोड़पति


श्री रघुनाथ की कोशिशों के बाद भी अचल बैठे रहे मुनि 


श्री रघुनाथ ने सुतीक्ष्ण मुनि को कई प्रकार से जगाने का प्रयास किया किंतु मुनि तो प्रभु के ध्यान का सुख प्राप्त कर रहे थे. तभी श्री राम ने अपने राज रूप को छिपा लिया और उनके हृदय में अपना चतुर्भुज रूप प्रकट किया. लेकिन यह क्या, अपने ईष्ट स्वरूप के अंतर्ध्यान होते ही मुनि व्याकुल हो उठे जैसे एक सांप मणि के बिना व्याकुल हो जाता है. 


जब मुनि ने अपने सामने सीता जी, और लक्ष्मण जी सहित श्याम सुंदर सुखधाम श्री राम को देखा तो प्रेम में मग्न मुनि लाठी की तरह उनके चरणों में गिर पड़े. इसके बाद श्री राम ने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से उन्हें उठा कर हृदय से लगा लिया. मुनि तो स्तब्ध हो कर टकटकी लगाकर प्रभु का मुख देखने लगे मानों उनको अपनी आंखों में ही समा लेना चाहते हैं. जब मुनि की स्तब्धता टूटी तो फिर से प्रभु के चरणों का स्पर्श कर उन्हें अपने आश्रम में ले गए.