सदन कसाई मांस बेचते थे. अनजाने में उन्होंने शालिग्राम को ही भार बना लिया था और उसी से तौलकर मांस बेचा करते थे. कीर्तन करना उन्हें अच्छा लगता था तो वह गुनगुनाते हुए मांस बेचते थे. एक दिन एक महात्मा मुंह पर कपड़ा रखकर पास से गुजर रहे थे. वह देखते ही पहचान गए. अरे तराजू पर तो शालिग्राम जी हैं. फौरन आ गए और बोले- अरे, ये तुम क्या कर रहे हो. पाप लगेगा. ये तो शालिग्राम जी हैं. कसाई ने कहा कि महाराज हमसे गलती हो गई, मुझे तो पहचान नहीं है. महात्मा ने शालिग्राम को उससे ले लिया और कई नदियों के पवित्र जल से स्नान कराया. इत्र लगाकर, चंदन लगाया. चांदी के सिंहासन पर उन्हें बिठाया. खीर का भोग भी लगाया. 


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भगवान महात्मा के सपने में आए


महात्मा शालिग्राम जी के सामने रोने लगे. बोले- नाथ, आप कहां कसाई के यहां बैठे थे? अब आप रत्न सिंहासन पर विराजिए. ठाकुर जी विराज गए. रात्रि में वह महात्मा के सपने में आए और बोले कि सुनो, सुबह होते ही मुझे लेकर जाओ और सदन कसाई के पास छोड़कर आओ. महात्मा बोले- महाप्रभु आपको भार बनाकर मांस बेचता है वो. ठाकुर जी बोले- जितना बोल रहा हूं, उतना करो. महात्मा ने तर्क रखा कि प्रभु ये तो शास्त्र और वेद विरुद्ध होगा. आपको वहां क्या सुख मिल रहा है? वह शुद्ध नहीं है. मांस बेचने वाला पापी व्यक्ति, उसके पास क्यों जाना है आपको?


प्रभु बोले- कहीं पर हमको स्नान में सुख मिलता है. कहीं सिंहासन पर बैठने में, कहीं माला पहनने, कहीं भोग लगाने में सुख मिलता है लेकिन सदन कसाई के यहां मुझे लुढ़कने में सुख मिलता है. वह जब तराजू में तौलता तो मुझे लुढ़कने में आनंद आता था. वह भले ही मांस बेचता है लेकिन तौलते समय वह कीर्तन कहता है, वह मुझे अत्यंत प्रिय है. मुझे उसके पास छोड़कर आओ. 


न जाने कौन से गुण पर...


इंद्रेश जी महाराज यह कथा सुनाते हुए कहते हैं- न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं. लेकिन चतुराई से नहीं. भोले बनकर सहज बनकर प्रभु की भक्ति करते रहो. सदन कसाई के पास वापस महात्मा आए. वह बोला- अरे महात्मा जी, यहां क्यों लाए फिर से. बहुत गंदा स्थान है.


सदन कसाई कांपने लगा


महात्मा बोले- धरो इनको यहीं. ठाकुर जी स्वप्न में आकर कह गए कि इनको तुम्हारे साथ ही रहना है. सदन कसाई के हाथ-पांव कांपने लगे. आंसू बहने लगे. वह मन में विचार करने लगा कि मैं इतना गंदा और पापी इंसान और ठाकुर जी मुझसे मिलने चले आए. मैं इनके लिए क्या इतना भी नहीं कर सकता कि ये काम ना करूं. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, भोजन ही नहीं मिलेगा. पैसा नहीं होगा लेकिन इससे बड़ा धन क्या होगा कि ठाकुर जी मुझसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहे हैं. उसी समय सदन कसाई ने दुकानी बेची और मांस बेचने का काम हमेशा के लिए छोड़ दिया. 


वह ठाकुर जी के लिए जीवन जीने लगा. उसने मन ही मन विचार किया कि नाथ आप मुझसे मिलना चाहते थे, अब मैं आऊंगा आपसे मिलने के लिए और वह जगन्नाथ महाप्रभु से मिलने के लिए निकल पड़े. पूछते-पूछते पुरी की तरफ जाने लगे. कुछ लोगों ने पहचाना तो उस रास्ते से दूर कर दिया जिस पर सब चल रहे थे. सदन कसाई मुश्किल वाले रास्ते पर चलने लगे. वह सोचते कि मैं उस रास्ते पर चला तो वह अपवित्र हो जाएगा. उसके मन में महाप्रभु का गुणगान हो रहा था. 


रास्ते में एक घटना घटी. शाम हो चली थी. एक घर के पास वह बैठे तो अंदर से खूबसूरत महिला निकली... आगे की कथा पार्ट-2 में पढ़िए. (फोटो- lexica AI)


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