Pradosh Vrat Shiv Stotra: हिंदू धर्म शास्त्र में सावन का महीना बेहद खास माना गया है. इस माह मे कई तिथि ऐसी है, जब भगवान शिव की पूजा को विशेष फल मिलता है. इस दौरान पड़ने वाले व्रतों का फल दोगुना मिलता है. किसी भी माह की त्रियोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार सावन का पहला प्रदोष व्रत 1 अगस्त गुरुवार के दिन पड़ रहा है. बता दें कि इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. 


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अगर आप भी प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाना चाहते हैं, तो इस दिन उपवास रख कर भोलेनाथ और मा पार्वती की पूजा करें. इसके साथ ही इस दिन शाम के समय दारिद्रय् दहन शिव स्तोत्र का पाठ करें. मान्यता है कि अगर भाव के साथ इस स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो जीवन की सारी दरिद्रताओं का नाश हो जाता है. वहीं, घर में आय के नए-नए स्तोत्र प्राप्त होते हैं. 


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दारिद्रय दहन शिव स्तोत्र



विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय


कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय


कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


गौरी प्रियाय रजनीशकलाधराय


कालान्तकाय भुजगाधिप कंकणाय


गंगाधराय गजराज विमर्दनाय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय


उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय


ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय


भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय


मंजीर पादयुगलाय जटाधराय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


पंचाननाय फनिराज विभूषणाय


हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय


आनंदभूमिवरदाय तमोमयाय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


भानुप्रियाय भवसागर तारणाय


कालान्तकाय कमलासन पूजिताय


नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय


नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय


पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरर्चिताय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...


मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय


गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय


मातंग चर्मवसनाय महेश्वराय


दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…


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शिव स्तुति मंत्र (Shiv Stuti Mantra)


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।


जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।


महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।


विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।


गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।


भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।


शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।


त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।


परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।


यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।


न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।


न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।


अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।


तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।


नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।


नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।


प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।


शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।


शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।


काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।


त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन। 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)