Shani Stotra Path: हिंदू धर्म शास्त्रों में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. शनिवार का दिन  शनिदेव की पूजा-अर्चना का दिन है. शनिदेव के नाम से सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता भी कांपते हैं. शनिदेव को न्यायधीश और कर्म फलदाता के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति को फल प्राप्त होते हैं. ऐसे में शनि की साढ़े साती और वक्र दृष्टि से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ खास उपायों का जिक्र किया गया है.


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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के साथ शनि स्त्रोत का पाठ करना बेहद शुभ फलदायी माना गया है. कहते हैं कि इस स्त्रोत का पाठ विधिपूर्वक करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इनके कष्टों को दूर करके जीवन में सुख और शांति प्रदान करते हैं. जानें शनि स्त्रोत का पाठ करने के लाभ.


शनि स्त्रोत पाठ के लाभ


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राजा दशरथ के राज्य में जब अकाल पड़ा था, तब उन्होंने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि स्त्रोत पाठ की रचना की थी. इस पाठ से दंडनायक बहुत प्रसन्न हुए थे और राजा दशरथ की मनोकामनाएं पूर्ण की थी. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शनि स्त्रोतम का पाठ पूरे मन और शुद्धता के साथ करता है, शनि देव स्वंय उनकी रक्षा करते हैं.


बता दें कि वैसे तो शनि स्त्रोत संस्कृत में लिखा गया है, लेकिन अगर इसे नियमित रूप से करा जाए, तो ये पढ़ने में आसान लगता है. अगर आपको ये पढ़ने में फिर भी मुश्किल लगे, तो आप ऑडियो या वीडियो भी सुन सकते हैं. इसे हर शनिवार पढ़ना चाहिए. अगर कोई जातक शनि की साढ़े साती और ढैय्या से परेशान है, तो नियमित रूप से पूजा के समय शनि स्त्रोत का पाठ करें. आपको निश्चित रूप से इसका लाभ प्राप्त होगा.


शनि स्तोत्रम


नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।


नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।


नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।


नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।


नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।


अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।


तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।


ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।


देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।


प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।


शनि देव की जय! शनि महाराज की जय! जय जय शनि देव!


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)