Chaitra Navratri 2021: चैत्र नवरात्रि पर 90 साल बाद बन रहा विशेष संयोग, अमृत सिद्धि और सवार्थसिद्धि योग में ऐसे करें कलश स्थापना
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो रही है और इस दौरान कई शुभ संयोग भी बन रहे हैं. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना क्यों करते हैं, किस मुहूर्त में और किस विधि से कलश स्थापना करनी चाहिए, इन सभी के बारे में यहां पढ़ें.
नई दिल्ली: हिंदू पंचांग (Panchang) के अनुसार हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही हिंदू नववर्ष (Hindu new year) की शुरुआत मानी जाती है और इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) भी शुरू होती है. इस साल चैत्र नवरात्रि आज 13 अप्रैल मंगलवार से शुरू हो रही है. इस साल नवरात्रि पूरे नौ दिनों की है और इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी. चैत्र नवरात्रि की शुरुआत चूंकि मंगलवार से हो रही है इसलिए देवी मां घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं.
90 साल बाद बन रहा विशेष संयोग
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी मां की पूजा अर्चना के साथ ही कलश स्थापना (Kalash Sthapna) भी की जाती है. 13 अप्रैल मंगलवार को शुरू हो रहे नव संवत्सर (Nav samvatsar) के दिन सुबह 02.32 बजे ग्रहों के राजा सूर्य का मेष राशि में गोचर होगा और संवत्सर प्रतिपदा और विषुवत संक्रांति दोनों एक ही दिन 13 अप्रैल को है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह स्थिति करीब 90 साल बाद बन रही है. साथ ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत अश्विनी नक्षत्र में सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग से हो रही है.
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नवरात्रि में क्यों करते हैं कलश स्थापना?
पुराणों की मानें तो कलश के मुख में विष्णु (Lord Vishnu), कंठ में शिव (Lord Shiva) और मूल में सृष्टि के रचियता ब्रह्मा (Lord Brahma) का स्थान माना गया है. तो वहीं, कलश के मध्य स्थान में मातृ शक्तियों का स्थान माना गया है. एक तरह से कलश स्थापना करते समय विशेष तौर पर देवी-देवताओं का एक जगह पर आवाह्न किया जाता है. यही कारण है कि नवरात्रि में देवी मां की पूजा करने से पहले कलश स्थापना की जाती है और घट पूजन होता है.
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कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
अमृतसिद्धि योग- 13 अप्रैल सुबह 05.57 से दोपहर 02.20 तक.
सर्वार्थसिद्धि योग- 13 अप्रैल की सुबह 05.57 से दोपहर 02.20 मिनट तक.
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11.56 से दोपहर 12.47 तक.
अमृत काल – सुबह 06.17 से 08.04 तक
कलश स्थापना की विधि
जहां कलश स्थापना करनी है उस जगह को अच्छी तरह से साफ करके गंगा जल से शुद्ध कर लें. लकड़ी का पाटा लें और उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें. अब कपड़े पर थोड़ा अक्षत रख दें और उसपर मिट्टी के बर्तन में जौ बो दें. इसी बर्तन के ऊपर जल से भरा कलश रखें और इसमें स्वास्तिक बना दें. इसे कलावा या मौली से बांधें. फिर कलश में सुपाड़ी, सिक्का व अक्षत डालकर ऊपर से अशोक या आम के पत्ते डाल दें. अब एक नारियल को कलश के ऊपर रखें. मां दुर्गा का आवाह्न करके दीप जलाएं और कलश की पूजा करें.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)
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