नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य, एक कुशल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ होने के साथ ही प्रकांड अर्थशास्त्री और विख्यात समाजशास्त्री भी थे. उन्‍होंने नीति शास्त्र (Niti Shastra) की रचना की और इसके माध्‍यम से अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर कई महत्‍वपूर्ण बातें बतायीं. चाणक्य (Acharya Chanakya) की इस नीति शास्त्र को ही चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के नाम से जाना जाता है. चाणक्य नीति के एक श्लोक में आचार्य चाणक्य कर्मों की बात करते हैं. ये तो हम सभी जानते हैं कि हमें वैसा ही फल मिलता है जैसे हमारे कर्म होते हैं यानी अच्छे और बुरे दोनों ही कर्मों की सजा हमें इसी जीवन में मिल जाती है. लेकिन कई बार इंसान को दूसरों के कर्मों की भी सजा भुगतनी पड़ सकती है. इस बारे में क्या कहती है चाणक्य नीति यहां जानें.


किन लोगों को मिलती है दूसरों के पाप की सजा


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पंडित विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद चाणक्य नीति के छठे भाग के 9वें श्लोक में चाणक्य कहते हैं:
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।।


अर्थात: देश में यानी वहां रहने वाले लोगों द्वारा किए गए पापों को राजा, राजा के द्वारा किए गए पाप या गलत कार्यों को पुरोहित या राजा को सलाह देने वाला मंत्री, पत्नी द्वारा किए गए पापों को पति और शिष्यों द्वारा किए गए पापों को गुरु ही भोगता है. इसलिए बेहद जरूरी है कि हर इंसान अपने स्तर पर गलत काम से दूर रहे.


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अपने इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य यह बताना चाहते हैं कि हमें अपने कर्मों का बहुत ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कई बार हमारे द्वारा किए गए किसी गलत कार्य या पाप की सजा आपसे जुड़े दूसरे व्यक्ति को मिल सकती है. श्लोक के पहले भाग में चाणक्य कहते हैं कि अगर किसी राज्य या देश की जनता कोई गलत काम करती है तो उसके परिणाम या कर्मो का फल वहां के राजा या शासक को भी भुगतना पड़ता है. इसलिए राजा की जिम्मेदारी है कि उसकी जनता कोई भी गलत कार्य न करे. तो वहीं श्लोक के अगले हिस्से में चाणक्य कहते हैं कि अगर किसी राजा या शासक से कोई गलती या पाप हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी उन सलाहकारों, पुरोहितों या मंत्रियों की है जो राजा को सलाह देते हैं. चूंकि पति-पत्नी भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए पति के गलत कार्यों की सजा पत्नी को और पत्नी के पाप की सजा पति को भुगतनी पड़ती है. कुछ ऐसा ही गुरु शिष्य के रिश्ते में भी है. गुरु का कर्तव्य है कि वह अपने शिष्य को सही मार्ग दिखाए. अगर फिर भी शिष्य कोई गलत कार्य या पाप करता है तो उसके कर्मों का फल उसके गुरु को भी भुगतना पड़ता है.


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से संपर्क करें)


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