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नई दिल्ली: एक कुशल अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री के रूप में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के प्रसिद्ध विद्वानों में आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) का नाम लिया जाता है. चाणक्य नीति (Chanakya Niti) में कई ऐसी बातों का जिक्र किया गया है जिसका महत्व आज के समय में भी उतना ही अधिक है जितना सैकड़ों साल पहले था. इन नीतियों का अनुसरण करके व्यक्ति जीवन में सफलता हासिल कर सकता है और सभी तरह की परेशानियां भी दूर हो सकती हैं.
चाणक्य नीति के 13वें अध्याय के 15वें श्लोक में चाणक्य कहते हैं:
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।।
अर्थात: जिसका चित्त यानी मन स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न ही वन में. लोगों के बीच में रहने पर उनके साथ से उसे जलन महसूस होती है और वन में अकेलापन जलाता है.
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अपने इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य इंसान की उस आदत के बारे में बता रहे हैं जिसकी वजह से उसके सारे काम बिगड़ जाते हैं. चाणक्य कहते हैं कि हर व्यक्ति हमेशा अपने चित्त यानी मन को शांत रखना चाहिए और मन पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं करने से कई तरह की मुश्किलें बढ़ जाती हैं और किसी तरह के कामकाज में भी मन नहीं लगता है जिससे सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती. ऐसे लोगों का मन न तो लोगों के बीच लगता है और ना ही अकेले में. जिस व्यक्ति का मन चंचल होता है वह किसी काम को ठीक तरह से कर नहीं पाता. इसके अलावा उसे दूसरों को देखकर हर वक्त ईर्ष्या और जलन महसूस होती है और वह दूसरों को फलता-फूलता देखकर उनकी खुशियां सहन नहीं कर पाता. ऐसे व्यक्ति को अकेले में भी चैन नहीं मिलता क्योंकि वहां भी उसे अकेलापन काटने को दौड़ता है.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से संपर्क करें)