Mahamrityunjaya Mantra: किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना? जिसके जाप से यमराज भी लौट जाते हैं वापस, महादेव की बरसती है कृपा
What is Mahamrityunjaya Mantra: कहते हैं कि महामृत्युंजय मंत्र की जाप करने से सारे दुख-संताप दूर हो जाते हैं. यहां तक कि यमराज भी पास आने का साहस नहीं जुटा पाते. लेकिन इस शक्तिशाली मंत्र की रचना किसने की थी.
Who composed Mahamrityunjaya Mantra: महामृत्युंजय मंत्र को मृत्यु पर जीत का मंत्र माना जाता है. कहते हैं कि इस संकट के नियमित जाप से सभी दुख-संताप, रोग-दोष दूर हो जाते हैं. यहां तक कि यमराज भी इस मंत्र का जाप करने से आत्मा का हरण छोड़कर चले जाते हैं. इस मंत्र के जरिए भगवान शिव का आह्वान किया जाता है. जो जातक सच्चे मन से इस मंत्र का जाप करता है, उसे जीवन में सब सुख-समृद्धि हासिल होती है. लेकिन इस महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई.
किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?
अयोध्या दर्शन एक्स हैंडल के अनुसार, शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे, विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था. मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं, इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए. मृकण्ड ने घोर तप किया, भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिए. लेकिन आखिरकार भक्त की भक्ति के आगे उन्हें झुकना ही पड़ गया.
महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि को दर्शन देकर कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा. भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है, इसकी उम्र केवल 16 वर्ष है.
विषाद में बदल गया ऋषि का हर्ष
ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया, मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे, भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है. मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.
मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. अब धीरे-धीरे सोलह वर्ष पूरे होने को आए थे. अत: मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्.
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
बालक के प्राण हरने का नहीं जुटा पाए साहस
समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए तो देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है. इस पर उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था. यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए. इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया. यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चौधियां गईं. शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे यमराज
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है. भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.
यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा. महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)