जानें होलिका दहन के भस्म को क्यों माना गया है पवित्र, शुभता का मिलता है वरदान
होलिका दहन के भस्म को काफी पवित्र माना गया है.
नई दिल्ली: इस साल होली 10 मार्च को मनाई जाएगी, जबकि होलिका दहन 9 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होगा. वहीं होलाष्टक तीन मार्च से शुरू होगा. होली मंगलवार को उत्तर फाल्गुन नक्षत्र और त्रिपुष्कर योग में मनाई जाएगी. होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 9 मार्च को पूर्व फाल्गुन नक्षत्र में सोमवार को प्रदोष काल से लेकर निशामुख रात्रि 11 : 26 बजे तक किया जाएगा.
होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है. महिलाएं व्रत रखकर हल्दी का टीका लगा सात बार होलिका की परिक्रमा करती हैं. इसके साथ ही वो परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं. इस दिन प्रातः 06:08 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक भद्रा है. इसलिए होलिका दहन भद्रा के बाद किया जाता है. भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है. भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है. पैराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम् भक्त प्रहलाद को होलिका की अग्नि भी नहीं जला पाई थी. होलिका की पूजा करते समय “ॐ होलिकायै नमः” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इससे अनिष्ट कारक का नाश होता है.
दानवराज हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने उनका नाम जपने के बजाए भगवान श्रीहरि की पूजा की जिससे राजा ने क्रोध में आकर अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए. होलिका को वरदान प्राप्त था कि आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी, लेकिन प्रह्लाद उस आग से बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई.
होलिका दहन के भस्म को काफी पवित्र माना गया है. इस आग में गेहूं, चना की नई बाली, गन्ना को भुनने से शुभता का वरदान मिलता है. होली के दिन संध्या बेला में इसका टीका लगाने से सुख-समृद्धि और आयु के वृद्धि होती है. इसके साथ ही इस दिन ईश्वर से नई फसल की खुशहाली की कामना भी की जाती है.