Coronavirus Vaccination: कोरोना वायरस के बारे में कहा जाता है कि अब यह अपने अस्तित्व में बना ही रहेगा. समय समय पर अलग अलग रूप और रंग में यह अपना असर भी दिखाएगा. पिछले साल नवंबर दिसंबर के महीने कोरोना वायरस जेएन.1 के रूप में भारत में दस्तक दी थी. हालांकि शोधतकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने कहा कि डरने की जरूरत नहीं है. इन सबके बीच भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के वैज्ञानिक एक नया ताप-सहिष्णु टीका विकसित कर रहे हैं. यह कोविड के अलग अलग वेरिएंट के खिलाफ सुरक्षा दे सकता है. 


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सिंथेटिक एंटीजन की डिजाइनिंग

एनपीजे वैक्सीन्स में प्रकाशित स्टडी में आईआईएससी की टीम ने एक सिंथेटिक एंटीजन के डिजाइन के बारे में जानकारी दी है. इसका कोविड-19 वैक्सीन के तौर पर उत्पादन भी आने वाले समय में किया जा सकता है.  अभी तक प्रयोग के जो नतीजे सामने आए हैं वो कोविड के अलग अलग वेरिएंट पर प्रभावी हैं. वायरस में पाए जाने वाले विभिन्न प्रोटीनों का विश्लेषण करने के बाद आईआईएसी की आणविक बायोफिजिक्स यूनिट ने तैयार किया है. प्रोफेसर राघवन वरदराजन की टीम ने एसएआरएस-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन के दो भागों एस 2 सबयूनिट और रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (Receptor binding domain) का चयन उनके वैक्सीन उम्मीदवार को डिजाइन करने के लिए किया है.


जानवरों पर सफल प्रयोग
एस 2 सबयूनिट अत्यधिक संरक्षित है. एस 1 सबयूनिट की तुलना में बहुत कम उत्परिवर्तन यानी बदलाव होता है. और यही अधिकांश मौजूदा टीकों का लक्ष्य भी है.वैज्ञानिकों ने बताया कि आरबीडी के जरिए मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा की जा सकती है. इन दोनों घटकों को मिलाकर आरएस 2 नामक एक हाइब्रिड प्रोटीन बनाया. टीम ने चूहों और हैम्स्टर मॉडल दोनों में प्रोटीन के प्रभावों का परीक्षण किया और पाया कि हाइब्रिड प्रोटीन ने एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू की और पूरे स्पाइक प्रोटीन वाले टीकों की तुलना में बेहतर सुरक्षा प्रदान की.आरएस2 एंटीजन को कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता के बिना एक महीने तक कमरे के तापमान पर भी संग्रहित किया जा सकता है, बाजार में मौजूद कई टीकों के विपरीत, जिन्हें अनिवार्य कोल्ड स्टोरेज की जरूरत होती है. इससे वैक्सीन के स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन में आसानी होगी. वरदराजन कहते हैं कि उनकी टीम ने भारत में महामारी फैलने से पहले ही वैक्सीन पर काम करना शुरू कर दिया था.


(एजेंसी इनपुट- आईएएनएस)