Kessler Syndrome: क्या अंतरिक्ष में विनाश की शुरुआत हो चुकी है? वैज्ञानिकों को क्यों सता रही चिंता
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Kessler Syndrome: क्या अंतरिक्ष में विनाश की शुरुआत हो चुकी है? वैज्ञानिकों को क्यों सता रही चिंता

Kessler Syndrome Explained In Hindi: कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि हम अंतरिक्ष में किसी विनाशकारी दुर्घटना से बस कुछ पल दूर है. इसे 'केसलर सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता है.

Kessler Syndrome: क्या अंतरिक्ष में विनाश की शुरुआत हो चुकी है? वैज्ञानिकों को क्यों सता रही चिंता

Kessler Syndrome: नवंबर 2024 में, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स की जान पर बन आई थी. अंतरिक्ष में मलबे का एक टुकड़ा स्टेशन की ओर बढ़ रहा था. ISS पर लगे रूसी स्पेसक्राफ्ट ने पांच मिनट के लिए अपना इंजन चलाकर स्पेस स्टेशन को रास्ते से हटाया नहीं होता तो विनाश तय था! NASA के मुताबिक, अगर स्पेस स्टेशन ने अपना रास्ता नहीं बदला होता, तो मलबा उसके कक्षीय पथ से 2 ½ मील (4 किलोमीटर) के भीतर से गुजर सकता था. चिंता की बात यह है कि यह कोई इकलौती घटना नहीं थी. नवंबर 2000 में स्पेस स्टेशन पर एस्ट्रोनॉट्स की परमानेंट मौजूदगी शुरू होने के बाद से दर्जनों बार इसी तरह ISS को खतरे के रास्ते से हटाना पड़ा है. वैज्ञानिकों के एक समूह को लगता है कि हम उस पल के करीब पहुंच चुके हैं, जिसकी चार दशक से भी पहले भविष्यवाणी की गई थी. अंतरिक्ष में विनाश की उस भविष्यवाणी को 'केसलर सिंड्रोम' कहते हैं.

'केसलर सिंड्रोम' क्या है?

1978 में नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड केसलर ने एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया. इसी पेपर में उन्होंने केसलर सिंड्रोम की परिकल्पना दी. इसके अनुसार, पृथ्वी की कक्षा में मलबे की मात्रा इतनी बढ़ सकती है कि वे आपस में टकराकर और अधिक मलबा उत्पन्न करेंगे, जिससे एक चेन रिएक्शन शुरू होगा. जिसका नतीजा यह होगा कि अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों और भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए सुरक्षित रास्ता खोजना बेहद मुश्किल हो जाएगा.

रिसर्चर्स भले ही इस बात पर सहमत नहीं कि अंतरिक्ष में कितने मलबे के बाद ऐसी स्थिति आएगी, लेकिन वे इस बात पर रजामंद हैँ कि स्पेस जंक बेहद गंभीर समस्या बन गया है. CNN ने वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष ट्रैफिक के एक्सपर्ट्स से बात करके रिपोर्ट दी है कि इस मसले का तत्काल हल खोजने की जरूरत है.

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अंतरिक्ष में कितना मलबा है?

पृथ्वी की कक्षा में मलबे के लाखों टुकड़े मौजूद हैं, जिनमें से कई 10 सेंटीमीटर से बड़े हैं. ये तेज गति से घूमते हुए सक्रिय उपग्रहों, अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और अन्य अंतरिक्ष यानों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. 2009 में, एक निष्क्रिय रूसी उपग्रह और एक सक्रिय अमेरिकी संचार उपग्रह के बीच टक्कर हुई, जिससे हजारों नए मलबे के टुकड़े पैदा हुए.

यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के अनुसार, 1957 में पहली अंतरिक्ष उड़ान से लेकर अब तक, 650 से ज्यादा बार अंतरिक्ष में 'ब्रेकअप, धमाके, टकराव और अन्य विपरीत घटनाएं' दर्ज की जा चुकी हैं. रूस ने तो 2021 में हथियारों की टेस्टिंग में एक सैटेलाइट को मार गिराया था, जिससे मलबे के 1,500 से अधिक टुकड़े निकले.

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क्या शुरू हो चुका है 'केसलर सिंड्रोम'?

केसलर सिंड्रोम कोई अचानक होने वाली घटना नहीं. वैज्ञानिक इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या ऐसा पहले ही शुरू हो चुका है. केसलर का प्रयोग वैज्ञानिकों से एण्‍क सवाल पूछता है कि अगर सभी तरह के रॉकेट लॉन्च रोक दिए जाएं तो कभी क्या अंतरिक्ष में टकराव से कक्षा में मौजूद पिंडों की संख्या बढ़ जाएगी. अभी हम उस बिंदु पर पहुंचे हैं या नहीं, यह साफ नहीं.

अंतरिक्ष मलबा और केसलर सिंड्रोम की चुनौती बेहद गंभीर है, लेकिन अगर सभी देश सहयोग करें और जिम्मेदारी से स्पेस एक्सप्लोरेशन करें तो शायद हम इस समस्या का समाधान खोज सकते हैं.

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