Life Extension Foundation facility: मरने के बाद जिंदा होने की हसरत, अबतक इतने लोगों ने फ्रीज कराए शरीर; चौंकाने वाला दावा
How cryonics is seeking to defy mortality: क्या मृत्यु के बाद जीवन संभव है? इसका सही जवाब किसी के पास नहीं है. इसके बावजूद सैकड़ों लोग विज्ञान (Science) पर भरोसा करते हुए भविष्य में ऐसा होने की उम्मीद में करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं. दरअसल एक कंपनी ने कुछ समय पहले जब मृत शरीर को सुरक्षित रखने के लिए एक करोड़ साठ लाख रुपये और सिर्फ मस्तिष्क को सुरक्षित रखने के लिए 65 लाख रुपये लेने की फीस रखी तो मौत के बाद जिंदगी का सवाल एक बार फिर से लोगों के जेहन में घूमने लगा. इसी आस में अबतक दुनियाभर के करीब 500 से ज्यादा लोग अपने शरीर को क्रायोप्रिजर्व यानी संरक्षित और सुरक्षित करा चुके हैं. इनमें से कई लोग जीवित हैं तो कुछ की मौत हो चुकी है. वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें से 300 से ज्यादा शव सिर्फ अमेरिका और रूस में रखे गए हैं.
इंसान चांद पर जा चुका है. मंगल पर पहुंचने की तैयारी है. दूसरी ओर मेडिकल साइंस भी जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने और मृत्यु दर कम करने में लगातार अहम भूमिका निभा रही है. इसके बावजूद वैज्ञानिक अभीतक ऐसी संजीवनी नहीं ढूंढ पाए हैं जो मरे हुए लोगों को जिंदा कर दे. यानी मौत वो प्वाइंट है, जहां विज्ञान भी हार जाता है. अभी ये असंभव है, लेकिन कुछ कंपनियों का दावा है कि वो इंसान की मौत होने के बाद उसे फिर से जिंदा कर देंगी. इसके लिए शवों को लंबे समय तक फ्रीज यानी क्रायोप्रिजर्व्ड (Cryopreserved) करना पड़ेगा. इस तकनीक को क्रायोनिक्स तकनीक नाम दिया गया है.
दुनियाभर में करीब 500 से ज्यादा लोगों ने अपने शरीर क्रॉयोप्रिजर्व कराए हैं. यानी कानूनी तौर पर भले ही ये लोग मर चुके हैं, लेकिन क्रायोनिक्स तकनीक में भरोसा रखने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि वो अभी सिर्फ बेहोश हुए हैं. इस तकनीक के जरिये उन्हें फिर से जिंदा किया जा सकता है. यही वजह है अब सैकड़ों लोग मरने से पहले अपने परिवार के सामने यह इच्छा जता रहे हैं कि उनके शरीर को दफनाने के बजाए इस तकनीक के जरिये सुरक्षित रखा जाए ताकि मरने के बाद, भविष्य में वो दोबारा लौट कर आ सकें.
अपना शरीर सुरक्षित कराने वालों में ब्रिटेन के पेंशनर्स से लेकर रूस, अमेरिका और कई देशों के लोग हैं जिन्होंने एक कंपनी के साथ करार करते हुए उन्हें ये बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. अमेरिकी साइंटिस्ट रिचर्ड गिब्सन के मुताबिक, जब लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखने के बावजूद किसी इंसान को नहीं बचाया जा सकता है तब मौत के बाद उसके शरीर को फ्रीजर में इस आस में रखा जाता है कि भविष्य में विज्ञान के और एडवांस होने पर उस इंसान को फिर से जिंदा करना संभव हो सकेगा.
एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी सदर्न क्रायोनिक्स (Southern cryonics) ने कुछ समय पहले दावा किया था कि वो इंसानी शवों को -200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुरक्षित रखती है. अगर भविष्य में कोई ऐसी तकनीक बनी कि मृत इंसान को जिंदा किया जा सके तो इन लाशों को निकालकर फिर से जिंदा कर दिया जाएगा. सदर्न क्रायोनिक्स के मुताबिक, शव स्टील चैंबर में उलटा रखा जाता है. इससे चैंबर लीक होने की स्थिति में भी ब्रेन के सुरक्षित रहने की उम्मीद ज्यादा रहती है.
2016 में लंदन के एक हाईकोर्ट में कैंसर की मरीज एक किशोरी ने अपील दायर कर कहा था कि उसकी मौत होने वाली है. लिहाजा, उसे फिर से जीने का अधिकार मिलना चाहिए. दरअसल उसके परिवार को भरोसा था कि आने वाले समय में मृत लोगों को जिंदा करने की तकनीक विकसित होगी और उनकी बेटी को नया जीवन मिल जाएगा. इसलिए डेड बॉडी को प्रिजर्व कराने की इजाजत मांगी गई थी.
दुनिया के कई देशों में इस तरह से शवों का बहुत निचले तापमान और लिक्विड नाइट्रोजन की मदद से सुरक्षित किया जा रहा है. अकेले अमेरिका के एरिजोना में स्थित एल्कोर लाइफ एक्सटेंशन फाउंडेशन के एक सेंटर पर अबतक करीब 200 मनुष्यों और 100 पेट्स (पालतू जानवरों) को क्रायोसंरक्षित किया जा चुका है. हालांकि, भारत की बात करें तो इंडियन फ्यूचर सोसायटी के मुताबिक, भारत में शव को फ्रीज करके रखने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है. यहां कोर्ट और सरकार से इजाजत लेना काफी मुश्किल है.
वहीं आपको ये भी बताते चलें कि ब्रेन कैंसर से पीड़ित एक थाई लड़की मैथरीन नवरातपोंग साल 2015 में 2 साल की उम्र में क्रायोप्रिजर्व्ड कराई गई थी. एल्कोर कंपनी के सीईओ मैक्स मोर ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को बताया, 'उसके माता-पिता दोनों डॉक्टर थे और बच्ची की कई ब्रेन सर्जरी हुई थीं, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ भी काम नहीं आया और वो मर गई. ऐसे में डॉक्टर दंपत्ति एक ऐसा संगठन बनाना चाहते थे जो लोगों को जीवन का दूसरा मौका दे सके.' कंपनी ने बताया कि किसी व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत घोषित किए जाने के बाद क्रायोप्रिजर्वेशन की प्रक्रिया शुरू होती है।
'मेट्रो यूके' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सदर्न क्रायोनिक्स और एल्कोर जैसी कंपनियों ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या भविष्य में मौत के बाद जिंदा होना संभव हो सकेगा. ये विचार किसी साइंस फिक्शन मूवी से लिया गया आइडिया लगता है, क्योंकि 1960 के दशक में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री में कुछ इसी तरह के कॉन्सेप्ट को दिखाया गया था.
कुछ वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक से मृत शरीरों को सुरक्षित रख भविष्य में फिर से जिंदा किया जा सकेगा. इसलिए लोगों में अपने शरीर को प्रिजर्व कराने का चलन बढ़ा है. वहीं क्रायोनिक्स के विरोधी मिरियम स्टॉपर्ड ने कहा कि इस तरह के विचार अवास्तविक है. इसलिए ये सब कवायद करने की कोई जरूरत नहीं है. वहीं न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिकल एथिक्स डिवीजन के प्रमुख आर्थर कैपलन के मुताबिक, 'बॉडी को सुरक्षित करके फिर से जीवन पाने की धारणा कोई विज्ञान कथा नहीं बल्कि कपोल कल्पना और बेवकूफी है.