Science News: चांद पर भारत की धमाकेदार एंट्री के बाद अंतरिक्ष विषय पर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है. अंतरिक्ष के बारे में लोगों की जानने की इच्छा हमेशा से रही है. लेकिन चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद विज्ञान से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रखने वाले लोग भी अंतरिक्ष के बारे में जानना चाहते हैं. ऐसे में आपका यह जानना जरूरी है कि अंतरिक्ष की राह आसान नहीं है. भले ही आधुनिक युग में तमाम उन्नत तकनीक हमारे पास हैं लेकिन अंतरिक्ष से जुड़े मिशन का सक्सेस रेट अब भी 50% ही है. 


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फेल हो गया था चंद्रयान-2 मिशन


चंद्रयान-3 मिशन के पहले का भारत का मून मिशन इसका बड़ा उदाहरण है.  2019 में जब भारत ने चंद्रयान-2 मिशन शुरू किया था तब भी देश में उत्साह का माहौल था. लेकिन यह मिशन सफल नहीं हो पाया था और चांद की बंजर सतह पर चंद्रयान-2  के मलबे एक किलोमीटर लंबी लकीर ही खींच सके. पुरानी गलतियों का सुधारते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चार साल बाद अब जीत के साथ चंद्रयान-3 मिशन की शुरुआत की और इसे अंजाम तक पहुंचा दिया. चंद्रयान-3 का रोवर अब चांद की सतह पर रहस्यों को खंगाल रहा है.



फेल हो गया लूना-25 मिशन


अब बात करते हैं रूस की, भारत के चंद्रयान-3 मिशन के कुछ दिनों के अंतराल पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस ने लूना-25 मिशन शुरू किया. लेकिन लूना-25 चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर सका. यह चांद की सतह से टकराकर बिखर गया. इन दोनों अंतरिक्ष मिशन से यह साफ है कि चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की पहली सफलता के करीब 60 साल बाद अंतरिक्ष यान मिशन अब भी बेहद मुश्किल और खतरनाक है. हाल के वर्षों में नजर डालें तो पता चलता है कि कई बड़े-बड़े देशों को इस दिशा में विफलता हाथ लगी है.


मात्र 4 देश ही चांद पर कर सके हैं सॉफ्ट लैंडिंग


चंद्रमा एकमात्र खगोलीय स्थान है जहां (अब तक) मनुष्य गए हैं. वहां सबसे पहले जाना समझ में आता है: यह लगभग 4,00,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हमारा सबसे निकटतम ग्रहीय पिंड है. इसके बावजूद अभी तक मात्र चार देश ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं.


इन देशों ने बनाई चांद तक पहुंच


सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह सफलता हासिल की थी. लूना 9 मिशन लगभग 60 साल पहले फरवरी 1966 में चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरा था. अमेरिका ने जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन के जरिए सफलता हासिल की. इसके बाद चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की सफलता के साथ इस समूह में शामिल हो गया और अब भारत भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंच गया है.



दुर्घटनाग्रस्त होना असामान्य बात नहीं


जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ ने 19 अगस्त, 2023 को घोषण की कि ‘‘लूना 25 अंतरिक्ष यान के साथ संपर्क बाधित’’ हुआ है. इसके बाद 20 अगस्त को यान से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे. रॉसकॉसमॉस को बाद में पता चला कि लूना 25 दुर्घटनाग्रस्त हो गया है.


रूस के हाथ लगी असफलता


पूर्ववर्ती सोवियत संघ से लेकर आधुनिक रूस तक 60 साल से भी अधिक के अनुभव के बावजूद यह मिशन असफल हो गया. हमें नहीं पता कि वास्तव में क्या हुआ, लेकिन रूस के मौजूदा हालात इसका एक कारक हो सकते है. यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस में तनाव अधिक है और संसाधनों का अभाव है.


इजराइल का बेरेशीट लैंडर


इजराइल का बेरेशीट लैंडर भी अप्रैल, 2019 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसी साल सितंबर में भारत ने चंद्रमा की सतह पर अपना लैंडर ‘विक्रम’ भेजा था, लेकिन वह उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. नासा ने बाद में अपने ‘लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर’ द्वारा ली गई एक तस्वीर जारी की जिसमें विक्रम लैंडर का मलबा कई किलोमीटर तक फैले लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरा हुआ नजर आ रहा था.



अंतरिक्ष अब भी जोखिम भरा


अंतरिक्ष मिशन एक जोखिम भरा काम है. केवल 50 प्रतिशत से अधिक चंद्र मिशन सफल होते हैं. यहां तक कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रह मिशन भी शत-प्रतिशत सफल नहीं होते. उनकी सफलता दर 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है. हम मानव रहित मिशन की तुलना मानव युक्त मिशन से कर सकते हैं: लगभग 98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल होते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों से युक्त मिशन की मदद के लिए पृथ्वी पर काम करने वाले वैज्ञानिक अधिक ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे, उनके लिए प्रबंधन अधिक संसाधनों का निवेश करेगा और उनकी सुरक्षा की प्राथमिकता के मद्देनजर देरी को स्वीकार किया जाएगा.


बड़ी चुनौतियां बरकरार हैं


यदि मनुष्यों को पूर्ण विकसित अंतरिक्ष-सभ्यता का निर्माण करना है, तो हमें बड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा. लंबी अवधि, लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा को संभव बनाने के लिए कई समस्याओं का समाधान करना होगा. प्रगति धीरे-धीरे होगी, छोटे कदम धीरे-धीरे बड़े बनेंगे. इंजीनियर और अंतरिक्ष प्रेमी अंतरिक्ष मिशन में अपनी दिमागी ताकत, समय और ऊर्जा लगाते रहेंगे तथा वे धीरे-धीरे और अधिक कामयाब होते जाएंगे. शायद एक दिन हम ऐसा समय देखेंगे जब अंतरिक्ष यान में यात्रा करना कार में बैठने जितना ही सुरक्षित होगा.


(एजेंसी इनपुट के साथ)