नई दिल्ली: सूरज के दक्षिणी हिस्से से चली एक सौर्य आंधी (Solar Wind On Earth) आने वाले दिनों में धरती पर पहुंच सकती है. अमेरिका की नैशनल ओशैनिक ऐंड अटमॉस्फीयर अथॉरिटी  (NOAA), के स्पेस वेदर एक्सपर्ट्स ने कहा है कि ये सोलर पार्टिकल 500 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से स्पेस में चल रहे हैं. ये अब तक सूरज से 15 करोड़ किमी दूर निकल चुके हैं. माना जा रहा है कि रविवार या सोमवार तक (Northern Lights This Weekend) यह धरती के वायुमंडल से टकरा भी सकते हैं.


क्या होगा असर?


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NOAA के एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस सौर्य तूफान की वजह से आर्कटिक ऑरोरा (Aurora) पैदा हो सकता है. ऑरोरा वह रोशनी होती है जो धरती के मैग्नेटोस्फीयर में सोलर विंड (Solar Wind On Earth) के टकराने से पैदा होती है. इस तरह से नीले और हरे रंग की रोशनी एक दिलकश नजारा पेश करती है जिसे देखने के लिए लोग इंतजार में रहते हैं. ये उत्तरी गोलार्ध में Northern Lights या ऑरोरा बोरियैलिस की शक्ल में आसमान में अद्भुत छटा बिखेरते हैं.


सौर्य तूफान से नुकसान भी?


आपको बता दें कि सौर्य तूफानों का असर सैटलाइट पर आधारित टेक्नॉलजी पर भी हो सकता है. सोलर विंड की वजह से धरती का बाहरी वायुमंडल गरमा सकता है जिससे सैटलाइट्स पर सीधा असर होता है. इससे जीपीएस नैविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटलाइट टीवी में अवरोध पैदा हो सकती है. पावर लाइंस में करंट तेज हो सकता है जिससे ट्रांसफॉर्मर भी उड़ सकते हैं. लेकिन ऐसा कम ही होता है क्योंकि धरती का चुंबकीय क्षेत्र इसके खिलाफ सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है.


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गंभीरता से रिसर्च की जरूरत


गौरतलब है कि आखिरी बार इतना शक्तिशाली तूफान 1859 में आया था जब यूरोप में टेलिग्राफ सिस्टम बंद हो गया था. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सौर्य तूफानों को स्टडी किया जाना और उनसे अपनी टेक्नॉलजी और उपकरणों को बचाना बहुत जरूरी है. ये रेडिएशन ट्रिलियन डॉलर का नुकसान धरती को पहुंचा सकते हैं. इन ध्वस्त इंफ्रास्ट्रक्चर को दोबारा खड़ा करने में कई साल लग जाते हैं.


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