वैक्सीनो भव...आज विश्व का हर राष्ट्र इसी ध्येय के साथ काम कर रहा है. वैक्सीन हर देश की प्राथमिकता है. अंतर ये है कि कुछ मुट्ठी भर विकसित देशों के पास संसाधन अपार हैं, इसलिए उन्होंने बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं. लेकिन विकासशील देशों में जहां संसाधन पर्याप्त नहीं हैं, वहां हालात चिंताजनक बने हुए हैं. 


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ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पूरी दुनिया में 10 करोड़ से ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं. जबकि 22 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. वहीं अफ्रीकी संघ की स्वास्थ्य एजेंसी द अफ्रीका सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (Africa Centres for Disease Control and Prevention) के साप्ताहिक आंकड़े बताते हैं कि अफ्रीका में कोरोना मरीजों की मृत्यु दर पिछले एक सप्ताह के दौरान 2.5% थी, जबकि वैश्विक मामलों में मृत्यु दर 2.2% है. 


पिछले साल फरवरी से अब तक अफ्रीका में 35 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित हुए हैं. बीते हफ्ते में अफ्रीका में कोरोना वायरस से 37000 लोगों की मौत हुई. सबसे खराब हालात अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से में है, जहां करीब 17 लाख लोग कोरोना संक्रमित हुए और मरने वालों की संख्या करीब 47 हजार है. चिंता वाली बात ये है कि अफ्रीका महाद्वीप के ज्यादातर देशों में अभी तक टीकाकरण अभियान की शुरुआत नहीं हो पाई है.


दुनिया की 14 फीसदी आबादी के पास है 53 फीसदी वैक्सीन


द पीपल्स वैक्सीन एलायंस संगठनों और एक्टिविस्ट्स का एक समूह है. इसके अनुसार, 'अमीर देश, जिनमें दुनिया की 14% आबादी रहती है, दुनिया की कोरोना संक्रमण के खिलाफ कारगर दवाओं का 53 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा खरीद चुके हैं.' एनेलिटिक्स संस्थान एयरफिनिटि का दावा है कि कनाडा (Canada) के पास इस वक्त वैक्सीन (Corona Vaccine) का इतना बड़ा भंडार है कि वो अपने नागरिकों का 5 बार टीकाकरण कर सकता है. यूरोपियन यूनियन ने भी वैक्सीन के निर्यात पर पाबंदी लगाने की बात कही है. ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण और ग्लोबल सप्लाई चेन पर ये सीधा प्रहार है. स्पष्ट है कि पहले कोरोना वायरस और अब कोविड-19 वैक्सीन ने विकसित और विकासशील देशों के बीच असमानता की खाई को और गहरा कर दिया है.


इसमें कोई संदेह नहीं कि हर राष्ट्र की प्राथमिकता उसके नागरिक होते हैं. लेकिन नागरिकों की आड़ में कोविड-19 वैक्सीन पर एकाधिकार जमाने का प्रयास कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है. कोई भी देश और उसके नागरिक तब तक पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकते जब तक पूरी दुनिया कोरोना वायरस मुक्त नहीं होगी. विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने वैक्सीन राष्ट्रवाद पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा, 'फिलहाल वैक्सीन एक सीमित संसाधन हैं. जितना सम्भव हो सके, हमें उन्हें उतने ही असरदार और न्यायसंगत ढंग से इस्तेमाल में लाना होगा.' लगभग 10 दिन पहले टेड्रोस एडनॉम ने ये भी बताया था कि 49 'ज्यादा आय' वाले देशों में लगभग 4 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं. वहीं एक 'कम आय' वाले देश में 25 टीके ही लग पाए हैं. हालांकि उस देश के नाम का खुलासा उन्होंने नहीं किया.


'राष्ट्र सर्वप्रथम' बनाम 'वसुधैव कुटुंबकम' 


ऐसे समय में जब अमीर देश, 'राष्ट्र सर्वप्रथम' की नीति पर चल रहे हैं, भारत 'वसुधैव कुटुंबकम' की राह पर है. कोविड-19 वैक्सीन की 10 लाख खुराक भारत ने द.अफ्रीका को दी है, जहां कोविड-19 के नए स्ट्रेन की वजह से हालात गंभीर है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि अमीर देशों ने पहले अपने नागरिकों के टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित किया. अमीर-गरीब को लेकर विकसित देशों की सेलेक्टिव सोच की आलोचना हो रही है. वहीं विकासशील भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू होने के कुछ दिनों के अंदर ही 'नेबरहुड फर्स्ट' की नीति के तहत अपने पड़ोसी और मित्र देशों को वैक्सीन मुफ्त दी है. जिसे भारत के विदेश मंत्रालय ने वैक्सीन मैत्री (Vaccine Friendship) का नाम दिया है. 


भारत सरकार ने जहां वर्ष 2021-22 के बजट में कोविड वैक्सीन के लिए 35000 करोड़ आवंटित किए हैं, वहीं भारत सरकार कह रही है कि वो 100 देशों को वैक्सीन भेज रही है. कई जानकार वैक्सीन को भारत की सॉफ्ट पावर से जोड़ते हुए इसे वैक्सीन कूटनीति बता रहे हैं. हालांकि पूर्व राजनयिक अशोक सज्जनहार (Ashok Sajjanhar) ऐसा नहीं मानते. वे कहते हैं कि भारत का वैक्सीन मैत्री 'सॉफ्ट' और 'हार्ड' पावर का एक आदर्श मिश्रण है, जिसे 'स्मार्ट' पावर कहते हैं. पड़ोसी देशों द्वारा भारत का आभार जताया गया है. दरअसल ये वो दृढ़ता और निस्वार्थ भाव है जिसके साथ भारत ने घर पर भारी आवश्यकताओं के बावजूद जरूरतमंदों तक वैक्सीन की मदद पहुंचाने का काम किया है.'


स्वास्थ्य अब विकल्प नहीं मजबूरी बन गया है


बदलते वक्त की नई प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य अब विकल्प नहीं, मजबूरी बन गया है. और संकटकाल में भारत की वैक्सीन से जुड़ी सकारात्मक कोशिश को बदलते वर्ल्ड ऑर्डर से जोड़कर देखा जा रहा है. विश्वगुरु रहे भारत की नई भूमिका पर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा मानते हैं कि भारत की ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल को 'वैक्सीन कूटनीति' के संकीर्ण चश्मे (Narrow Glasses) से नहीं देखा जाना चाहिए. यह भारत की वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है) की पुरानी भावना है, जो भारत को दुनिया में सहायता और सहयोग के लिए प्रेरित करता है.'


संयुक्ट राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटारेज (Antonio Gutierrez) ने भारत की तारीफ करते हुए कहा, ‘भारत की उत्पादन क्षमता दुनिया के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है. और मुझे उम्मीद है कि दुनिया इसका पूरा उपयोग करेगी.' भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है, जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े उत्पादक के तौर पर भारत का वैश्विक उत्पादन में 20 प्रतिशत योगदान है. वहीं वैक्सीन की वैश्विक मांग का 62 प्रतिशत हिस्सा भारत पूरा करता है. जब कोरोनो महामारी की शुरुआत हुई, तब भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine ) और पेरासिटामोल (Paracetamol) के लिए 100 से अधिक देशों ने अनुरोध किया. जिसके बाद ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और इजराइल समेत कई देशों को आपूर्ति कराई गई. अचल मल्होत्रा मानते है कि दुनिया में भारत की पहचान विश्वसनीय फार्मेसी पावर हाउस के तौर पर है. सार्वजनिक क्षेत्र के भारत बायोटेक (Bharat Biotech) द्वारा स्वदेशी वैक्सीन के विकास ने भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है और वैश्विक फार्मा पावर के रूप में भारत के उभरने का मार्ग प्रशस्त किया है.


आयुष्मान वर्ल्ड ऑर्डर


यजुर्वेद में कहा गया है-


ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥


आदान-प्रदान की वैश्विक दुनिया में भारत का दर्शन शास्त्र बड़ा मार्गदर्शक है. भारत के योग और आयर्वेद से आयुष्मान की उत्पति होगी. कोविड-19 विश्व समुदाय के लिए चेतावनी है कि रोगों से लड़ने में एक मजबूत प्रतिरक्षा महत्वपूर्ण है, जिसे रातोंरात विकसित नहीं किया जा सकता है. इस संदर्भ में, भारत का प्राचीन ज्ञान, योग, ध्यान, शाकाहार, वंदना, पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक चिकित्सा ऐसी जीवन शैली प्रदान करते है जो बचपन से अनुकरण करने योग्य है. समझने वाली बात ये है कि भारत दर्शन मनुष्य और प्रकृति में टकराव नहीं, सामंजस्य पर आधारित है, यही सामंजस्य टिकाऊ विकास की भी कुंजी है.


(लेखिका अदिति त्‍यागी ज़ी न्यूज़ में डिप्टी एडिटर हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं)