बड़े लोगों के तौर तरीके भी अनोखे होते हैं. महान बल्लेबाज वह होता है, जो अच्छी गेंदों को भी चौकों और छक्कों में गिना दे. डिविलियर्स ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेकर अपनी पत्नी और परिवार वालों का दिल जरूर जीत लिया है. पर दुनिया भर के क्रिकेटप्रेमियों का दिल एक झटके में जरूर तोड़ दिया है. दक्षिण अफ्रीका ही नहीं पूरी दुनिया उनकी कमी महसूस करेगी. मुझे याद है, एक बार मैंने उनसे पूछा था कि आपकी जिंदगी में क्रिकेट के सिवाय क्या, कुछ और भी है. उन्होंने कहा था, 'जिंदगी केवल क्रिकेट नहीं है. पत्नी है, बच्चे हैं, परिवार है और सबसे बड़ी बात मैं खुद हूं. खुद से मुलाकात का वक्त भी तो होना चाहिए.'  डिविलियर्स की बातें भले ही फिलॉसिफिकल लगती हों, पर इसमें उनके चरित्र की सच्चाई नजर आती है. बिल्कुल उनकी बल्लेबाजी की तरह.


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114 टेस्ट, 228 वनडे और 78 टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके डिविलियर्स हमेशा अपनी बल्लेबाजी की जादूगरी के लिए जाने जाएंगे. स्ट्रोक लगाने के लिए न जाने वह कैसे-कैसे कोणों का प्रयोग कर लेते थे.  वह विश्व के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्हें 360 डिग्री कहा जाता है. ऑफ स्टंप के बाहर की गेंद पर फाइन लेग बाउंडरी लगाना, या लेग स्टंप के बाहर की गेंद को पहले से भांपना और ज्यादा बाहर निकल कर कवर के ऊपर से उठाकर छक्का मार देना डीविलियर्स  की हैरत-अंगेज बल्लेबाजी का एक रंग कहा जा सकता है. जब वह बल्लेबाजी करते हैं, तो दर्शकों तथ विरोधी खिलाड़ियों के मुंह से अनायास 'उह, ओह'  की आवाज सुनी जा सकती है.


उनकी बल्लेबाजी कोई लपेटेबाज की बल्लेबाजी नहीं रही. इसमें नए प्रयोग करने की आरजू, निरंतर सकारात्मकता, हाथों व नजरों का अद्भुत सामंजस्य तथा सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों को भी मामूली साबित करने की हिमाकत शामिल थी. वनडे क्रिकेट में वेस्ट इंडीज के खिलाफ केवल 31 गेंदों में शतक बनाने का कीर्तिमान उनके नाम है. जब वह बल्लेबाजी करते थे, तब गेंदबाज अपनी गेंदों की काबिलियत से ज्यादा ईश्वरीय मदद पर अधिक भरोसा करते थे. वेस्ट इंडीज के खिलाफ 2015 में उनके जिस रिकॉर्ड तोड़ शतक का मैंने जिक्र किया है, उस मैच में उन्होंने 44 गेंदों पर 149 रन बनाए थे. अभी 19 मई को उन्होंने आईपीएल में बेंगलुरु के लिए मैच खेला था. दुख की बात यह है कि अब वह आईपीएल में भी नहीं खेलेंगे.



कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जिनकी वजह से भी दर्शक मैच देखने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा करने के लिए तैयार रहते हैं. गैरी सोबर्स, बैरी रिचर्ड्स, विवियन रिचर्ड्स, सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी, कपिल देव, इमरान खान, इयान बॉथम और विराट कोहली जैसे खिलाड़ी ऐसी ही श्रेणी में आते हैं. खेल में नए नए प्रयोग इनकी कला में देखने को मिलते हैं और खेल में नया रोमांच उभरकर आता है. डिविलियर्स ऐसे ही खिलाड़ियों की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने प्रयोगधर्मिता, साहस, तकनीक व बल्लेबाजी में मानवीय क्षमताओं का नया अध्याय लिखा है. भारत के दर्शक उनके बड़े मुरीद हैं, इसलिए उनके अंतरराष्ट्रीय खेल से संन्यास लेने का सबसे बड़ा सदमा भारतीय दर्शकों को ही लगेगा.


रिटायरमेंट की बात कहते हुए डिविलियर्स ने कहा है कि क्रिकेट खेलते-खेलते अब वह थक गए हैं. मैं शुरू से ही इस बात का जिक्र करता रहा हूं कि अत्याधिक क्रिकेट खिलाड़ियों की क्रिकेटीय जिंदगी को छोटा कर रहा है. क्रिकेट खिलाड़ी थक रहे हैं. फिर भी पैसे के मोह में खेले जा रहे हैं. इससे अंतत: जा कर क्रिकेट का ही नुकसान होने वाला है. पर दुनिया भर के क्रिकेट संगठन धन की कमाई को ही कामयाबी का पैमाना मानते हैं. मान-प्रतिष्ठा, चरित्र, संस्कार से भी ज्यादा पैसों का महत्व हो गया है. पिछले पांच सालों में पैसा जिस कदर इंसान पर हावी हो गया है, वैसा शायद किसी अन्य कालखंड में नहीं. डिविलियर्स जैसे खिलाड़ी द्वारा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा यह दिखाती है कि क्रिकेट की अति प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के करियर को लील रही है.



डिविलियर्स जैसे खिलाड़ी क्रिकेट की धरोहर हैं. जो क्रिकेट खेल को लोकप्रिय, दिलचस्प व रोमांचकारी बनाने में मदद देते हैं. इंसानी शारीरिक क्षमताओं व पैसे के लालच की बीच कोई संतुलन तो बिठाना पड़ेगा. क्रिकेट के खेल में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है. खेल की धार कायम रखने की लिए प्रतिस्पर्धा की धार में से निकलना जरूरी है. पालक भी अपने बच्चों का क्रिकेट में करियर बनवाने के लिए उत्सुक रहते हैं. बच्चे भी पढ़ाई लिखाई में ध्यान कम देने लगे हैं और क्रिकेट के नवाब बनना चाहते हैं. पर हर बच्चा तो नवाब नहीं बन सकता. सफलता कुछ को ही मिलती है और ज्यादातर को मिलती है निराशा.


भारत में ही हम देख सकते हैं कि देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी साल में 250 दिन तो यात्रा व क्रिकेट में ही गुजार देते हैं. इससे उनकी मानसिक वृत्ति व शारीरिक क्षमता पर असर पड़ता है. पारिवारिक खुशी छिन जाती है. कड़ी प्रतिस्पर्धा, बढ़ते पैसे, आकर्षक अनुबंधों व गलाकाटू होड़ ने खिलाड़ियों को भी पैसा बटोरने वाली मशीन बना दिया है. पेशेवर होना एक बात है, पर पेशे का ही जिंदगी बन जाना अलग बात है. आशा है, भारतीय क्रिकेट कंटोल बोर्ड इस दिशा में जरूर सोचेगा. अन्यथा आज डिविलियर्स थक गए हैं, तो कल विराट कोहली भी थक सकते हैं.