बिहार चुनाव: `अहंकार` और बड़बोलेपन ने डुबोई NDA की नैया
एक विचारक ने कहा है कि विनम्रता का मतलब कायरता हर्गिज नहीं होती। विनम्रता सफलता की बुनियाद रखने में सहायक होती है। जो विनम्रता से जीना सीख लेते हैं, उनकी कई परेशानियां खत्म हो जाती हैं। यह मानवीय गुण व्यक्ति को शांति, सहनशीलता, शक्ति और ऊर्जा प्रदान करती है।
लेकिन दूसरी तरफ बड़बोलापन हमेशा नुकसान देता है। जरूरत से ज्यादा बोलना, जरूरत से ज्यादा दिखाने की कोशिश आपकी सहजता को खत्म करती है और आखिरकार आप नुकसान में रहते है। प्रत्येक इंसान में महत्वाकांक्षा का होना जितना अच्छा है, उसकी अति-महत्वाकांक्षा उतनी ही नुकसानदायक होती है क्योंकि 'अति सर्वत्र वर्जयेत।'
'अति सर्वत्र वर्जयेत' यानी किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा होना नुकसान का आधार रखती है। बिहार चुनाव का जो परिणाम आया है और जो तस्वीर उभरी है, उसमें संस्कृत का यह वेद-वाक्य बिल्कुल सटीक बैठता है। इस साल बिहार चुनाव की जब तारीखों का ऐलान हुआ तब बयानबाजी भी शुरू हुई। इसमें बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले दलों के नेता ताबड़तोड़ बयानबाजी करने लगे। इस बयानबाजी में बीजेपी के दिग्गज नेता भी पीछे नहीं रहे। लेकिन वो यह भूल गए थे कि उनका सियासी मैदान में मुकाबला बिहार के उस महागठबंधन से है जिसकी अगुवाई बिहार की राजनीति के दिग्गज नीतीश कुमार और लालू यादव कर रहे थे। बिहार की सियासत के इन दो दिग्गजों को कम आंकने की भूल एनडीए और उसके दिग्गज नेताओं ने की जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। दोनों अलग थे तब बात अलग थी लेकिन एकजुट होने के बाद इनकी सियासी ताकत में इजाफा हो गया।
बिहार के मुजफ्फरनगर में परियोजनाओं का उदघाटन करने पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के सामने ही उनके राजनीतिक डीएनए पर ही प्रश्न उठा दिया। उनके इस बयान को नीतीश ने मुद्दा बनाते हुए पूरे राज्य में अभियान छेड़ दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को 50 लाख बिहारियों का डीएनए जांच के लिए भेजने की घोषणा कर दी। इसके बाद बीजेपी बैकफुट पर जाती दिखी।
साथ ही एक चुनावी सभा में आरजेडी प्रमुख लालू यादव पर पीएम मोदी ने जमकर निशाना साधा था और उन्होंने लालू को शैतान तक कहा दिया। उन्होंने कहा कि आपके गांव में, शरीर में कभी शैतान आ सकता है? लेकिन लालूजी ने, जैसे रिश्तेदार आते हैं, उस शैतान को पहचान लिया है। मेरे मन में सवाल है, इस शैतान को यही पता कैसे मिला, जिसका पता शैतान ने ढूंढ़ लिया है बिहार उसकी तरफ कभी नहीं देखेगा। हम समझते थे हमारी लड़ाई इंसान से हैं, लेकिन शैतान हमारे पीछे पड़ा हुआ है।
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बेतिया में अपनी एक चुनाव रैली के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने विवादित बयान दिया। उन्होने कहा कि अगर भाजपा बिहार में चुनाव हारी तो जेल में बैठा शाहबुद्दीन खुश होगा और पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे। अमित शाह ने बेगूसराय में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तथा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चारा चोर तक कह डाला और कहा कि चारा चोर लालू की वजह से ही बिहार बदनाम हुआ। हालांकि जेडीयू और आरजेडी के नेता भी विवादित बयान देने में कम नहीं रहे। लेकिन इन सबसे में ज्यादा छवि बीजेपी और उनके नेताओं की खराब होती चली जा रही थी। यही गलती बीजेपी के नेताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी की थी जिसका खामियाजा उसने भुगतना पड़ा था।
बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार नीत महागठबंधन के बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए पर बड़ी विजय की ओर अग्रसर होने के बीच विभिन्न दलों के नेता और राजनीतिक विश्लेषक इसे ‘धन के उपर सिद्धांतों’ की जीत और ‘असहिष्णुता की पराजय’ के रूप में पेश किया । 'असहिष्णुता' इस चुनाव के लिए एक मुद्दा के रुप में उभरा था। यह तब ज्यादा हावी होता नजर आया जब साहित्य समेत कई क्षेत्रों के लोगों ने अपने पुरस्कार को वापस कर दिया था। बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए नेताओं की गलती से इस मुद्दे को बल मिला लेकिन इससे कुल मिलाकर बीजेपी और उसके गठबंधन को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।
सियासी जानकारों के मुताबिक आरक्षण के मुद्दे पर जो बयानों की जंग शुरू हुई उससे भी पार्टी को चुनाव में नुकसान हुआ और आखिरकार हार में तब्दील हो गया। हालांकि वरिष्ठ भाजपा नेता रवि शंकर प्रसाद ने चुनावी नतीजों के बाद इन दलीलों को खारिज कर दिया कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की आरक्षण वाली टिप्पणी का बिहार में भाजपा के चुनावी प्रदर्शन पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ा और कहा कि हार के कारणों का विस्तार से विश्लेषण किया जाएगा।
दरअसल भागवत के इस बयान को लालू प्रसाद ने सही मौके पर लपका और खूब भुनाया। इस बयान के बाद बीजेपी बैकफुट पर चली गई। बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता से लेकर आलाकमान तक को इस बयान पर सफाई देनी पड़ी। महागठबंधन ने इसे मुद्दा बनाकर खूब भुनाया और यह मुद्दा भी आखिरकार एनडीए के खिलाफ चला गया। गौर हो कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 21 सितंबर को एक इंटरव्यू में कहा था कि आरक्षण पर राजनीति हुई है और इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। आरक्षण की नीति की समीक्षा किए जाने की उन्होंने वकालत की थी।
अंत में यह बात सामने आती है कि सियासत के मैदान में भी हार और जीत उसके दो ही पहलू होते है। बीजेपी गठबंधन बिहार के महागठबंधन से हार गया। इस हार के कई कारक हो सकते है जिसका विश्लेषण का दौर लंबा चल सकता है। लेकिन जीतने वाले को सब सलाम करते है और हारने वाले की भद्द पिटती है। अमुक पार्टी की चुनावी रणनीति के अलावा हार और जीत का फासला कई मुद्दों पर तय होता है। लेकिन एक बात साफ है कि चुनाव में बीजेपी के कई नेता अपनी जीत पक्की मानकर चल रहे थे। जबकि जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जमीनी धरातल पर सियासी कवायद में जुटा था। बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित नहीं करके भी बड़ी गलती की। क्योंकि इसका जनता के बीच संदेश यह जाता है कि दावा करनेवाली पार्टी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है और उसमें उम्मीदवारों का अभाव है या पार्टी अंतरकलह का शिकार है। यकीनन बिहार चुनाव का यह परिणाम देश की राजनीति को प्रभावित करनेवाला हो सकता है।