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राज्यों के शिक्षा बोर्डों में गिरावट का दौर काफी दिनों से चल रहा था और अब सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकण्डरी एजूकेशन (सीबीएसई) भी सवालों के घेरे में आ गई है. बोर्ड परीक्षाओं और मूल्यांकन में लापरवाही से हजारों विद्यार्थियों का भविष्य और करियर चौपट होने के बावजूद सीबीएसई की कार्यप्रणाली में बदलाव न आना दुर्भाग्यपूर्ण है. 


सीबीएसई द्वारा अदालतों में मुकदमेबाजी को बढ़ावा 
नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार देश की जनता 3 करोड़ मुकदमों के बोझ से त्रस्त है, जिसमें 46 फीसदी मामले सरकार (राज्य, केन्द्र एवं पीएसयू) की वजह से है. शिकायतों का समय सीमा के भीतर समाधान हेतु सीबीएसई द्वारा जवाबदेह व्यवस्था नहीं बनाने की वजह से छात्र अदालतों में जाने के लिए विवश होते हैं. अदालत द्वारा पारित आदेश को यदि सीबीएसई सभी छात्रों के हित में लागू करके नीतियों में तुरंत बदलाव कर दे तो मुक़दमे भी कम हो जाएंगे. अब वक्त आ गया ही कि सीबीएसई से सम्बन्धित मुकदमों का लीगल ऑडिट कराके अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी ही चाहिए. 


सीबीएसई द्वारा छात्रों से गैर-कानूनी अंडरटेकिंग क्यों? 
गलत उत्तर पुस्तिका को चुनौती देना छात्रों का हक है और उन्हें ठीक करना सीबीएसई की शैक्षणिक और कानूनी जिम्मेदारी भी है. कक्षा 12वीं के छात्र निर्धारित भुगतान करके सीबीएसई से अपनी उत्तर पुस्तिका (आंसर शीट) की कॉपी लेने का प्रावधान है. इस वर्ष सीबीएसई ने नियमों में बदलाव करके छात्रों से लिखित अंडरटेकिंग लेना शुरू कर दिया, जिसके अनुसार आंसर-शीट में गलती के बावजूद उसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. कानून के अनुसार 18 वर्ष के कम उम्र के बच्चों से इस प्रकार की अंडरटेकिंग नहीं ली जा सकती इसलिए अभिभावकों को भी उसमें हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया. दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 23 जून को पारित आदेश के बाद ऐसी अंडरटेकिंग अब गैर कानूनी हो गई है. 


 


सीबीएसई द्वारा मार्किंग स्कीम का प्रकाशन बंद क्यों? 
सीबीएसई द्वारा पिछले वर्ष जारी दिशा-निर्देश के अनुसार मार्किंग स्कीम परीक्षकों के लिए मार्गदर्शक ही है. इसके अनुसार परीक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के आंसर्स में बेहतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा विश्लेषण को विशेष महत्व देना चाहिए. जिसकी बजाय अधिकांश परीक्षक मार्किंग स्कीम को पत्थर की लकीर मानकर रट्टामार विद्यार्थियों को अन्यायपूर्ण तरीके से पूरे नम्बर दे देते हैं. इस स्थिति को सुधारने की बजाए सीबीएसई द्वारा विभिन्न विषयों की मार्किंग स्कीम का प्रकाशन ही इस वर्ष से बंद कर दिया गया, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने सही ही बहाल करने का आदेश दिया है. 


सीबीएसई द्वारा गलती होने पर पुनर्मूल्यांकन क्यों नहीं? 
छात्र अपनी आंसर शीट के नंबरों से संतुष्ट नहीं होने पर निर्धारित फीस का भुगतान करे बेहतर पुनर्मूल्यांकन करा सकते थे, जिस व्यवस्था को सीबीएसई ने इस वर्ष से खत्म कर दिया. उड़ीसा हाईकोर्ट ने अनेक याचिकाकर्ता छात्रों को पुनर्मूल्यांकन की राहत दी. अनेक छात्रों की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में पुनर्मूल्यांकन (रिवेरिफिकेशन) की सुविधा का लाभ अधिकांश छात्रों को फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व बेसिस पर देने का आदेश दिया है. सरकार अपनी गलतियों को ठीक करे यह उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है, फिर छात्रों के साथ अन्याय को दुरुस्त करने से सीबीएसई कैसे भाग सकती है? 


यूपी बोर्ड की तर्ज पर टॉपर्स की कॉपी ऑनलाइन हों 
बिहार में टॉपर्स के फर्जीवाड़े से सबक लेते हुए उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने यह फैसला लिया कि यूपी बोर्ड में टॉपर्स विद्यार्थियों की कापी, वेबसाईट में ऑनलाइन पोस्ट की जाएगी. इस कदम से टॉपर्स की प्रामणिकता पुष्ट होने के साथ अन्य विद्यार्थी अपने नंबरों का तुलनात्मक अध्ययन भी कर सकेंगे. 


सीबीएसई में नंबरों के साथ छात्रों की मौलिकता भी बढ़े 
सीबीएसई की परीक्षा प्रणाली में नंबर और प्रतिशत हर वर्ष बढ़ने के बावजूद विद्यार्थियों की रचनात्मकता और मौलिक ज्ञान में निरंतर हृास की खबरें हैं. नंबरों के इस खेल के सही नियमन की बजाए, सीबीएसई पारदर्शी व्यवस्था को ही ख़त्म करने पर तुली हुई है. इस गोरखधंधे को ठीक करने के लिए सरकार ने यदि जरुरी कदम नहीं उठाये तो, सीबीएसई के अन्याय से पीड़ित युवा-छात्र देश में जिम्मेदार नागरिक की महती भूमिका का निर्वहन कैसे करेंगे? 


लेखक @viraggupta संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)