मोदी सरकार ! इकबाल जरुरी है...।
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से बीजेपी 'मिशन यूपी ' की शुरुआत कर रही है... कही से भी करे ये पार्टी का मामला है ,लेकिन बलरामपुर क्यों ? शायद इसलिए कि बलरामपुर का सरोकार अटल जी से रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे अपना कर्मभूमि माना था और यही से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था । लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में न तो अटल की चर्चा थी ,न ही आडवाणी की और न ही पंडित दीनदयाल की.... सिर्फ मोदी। इसी मोदी को आगे करके पार्टी ने केंद्र सहित 7 राज्यों में सरकार बनाली ,लेकिन आज अलग अलग राज्यों में अलग अलग आदर्श और नाम ढूंढे जा रहे है, तो क्या मोदी की चमक फीकी पड़ रही है या यूँ कहे की मोदी सरकार का इकबाल कमजोर हो रहा है ? क्या इसके लिए देशी-विदेशी एन जी ओ जिम्मेदार है ?
मोदी सरकार की जन-धन और फसल बीमा योजना इस दशक का सबसे बड़ा रेफोर्मेशन माना जा सकता है लेकिन अगर चर्चा सिर्फ जेएनयू के देश भक्त और देश द्रोही की हो रही है तो माना जा सकता है कि सरकार दिशाहीन है। बीजेपी के एक विधायक यूनिवर्सिटी में शराब की बोतल और कॉन्डोम की गिनती कर रहे हैं और दिल्ली पुलिस पिछले 50 घंटे से कैंपस के बाहर खड़ी हो कर यह इन्तजार कर रही है कि तथाकथित देशद्रोही छात्र देश के कानून का पालन करे, वही मुल्क की 1.5 अरब लोग बड़ी उम्मीद से सरकार के बजट फैसले का इंतजार कर रहे हैं लेकिन संसद जे एन यू और हैदराबाद यूनिवर्सिटी मामले पर चर्चा के लिए अड़ी है..... मुठी भर जाट आंदोलनकारी पुरे हरियाणा को जला डाला और सरकार उन्हें पुचकारने में लगी है यहाँ भी साजिश की बात हो रही है। कश्मीर के पोमपोर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में हमने तीन ब्रिलिएंट कमांडो खो दिए। जवानो ने अपनी जान देकर 500 से ज्यादा लोगों को फायरिंग रेंज से बाहर निकाला। लेकिन कुछ लोग वहा भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे। ठीक उसी वक्त राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर देश के दो होनहार नेता राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल सेडिशन कानून और बोलने की आज़ादी छीनने के लिए मोदी सरकार को जी भर गरिया रहे थे।
अरविन्द केजरीवाल के आरोप गौर करने लायक है या नहीं यह बहस का विषय है लेकिन बोलने की आज़ादी रोकने का आरोप टोटल बकवास माना जा सकता है। यहाँ प्रधानमंत्री से ज्यादा साक्षी महराज ,साध्वी निरंजना ,गिरिराज ,महेश शर्मा जैसे धुरंधर नेता अखबारों में छपते है। यहाँ पार्टी के प्रवक्ता हर विषय पर बाइट देने के लिए सदा उपलब्ध हैं। बांकी कसर सोशल मीडिया पूरा कर देता है। ये वही सोशल मीडिया है जिसके ट्रेन्डिन्डिंग कभी नमो हुआ करता था आज #jnu हो गया है। फिर दिक्कत कहाँ है ,दिक्कत सोच में है। मोदी सरकार कांग्रेस की रणनीति अपनाकर लम्बी पारी खेलने की जुगत लगा रही है। प्रधानमंत्री शायद अपनी ही बात भूल चुके है कि "कितनी दूर चले और कहाँ पहुंचे इसका विशेष महत्व नहीं है महत्व यह है इस यात्रा का अनुभव कैसा रहा " फार्मूला से भले पहले सियासत चलती रही हो देश चलता रहा हो लेकिन आज इसका कोई मह्त्व नहीं है ,मोदी सरकार में चार जाट मंत्री और राज्य के छह जाट मंत्री हरियाणा को जलने से नहीं बचा सके तो माना जा सकता है समाज में जात का नहीं त्याग का मह्त्व रहा है। देश ने प्रधानमंत्री मोदी जाति के फॉर्मूले से प्रधानमंत्री नहीं बनाया था लेकिन उन्होंने मंत्रिमंडल का गठन में कॉंग्रेसी परंपरा का पालन किया अपने ही आदर्श को किनारा कर दिया। नतीजा दो साल बाद देश के सामने है। अगर एक अख़लाक़ , रोहित वेमुला सरकार के किये कराये पर पानी फेर सकता है तो माना जा सकता सरकार की संरचना में कोई खोट है या सरकार मंजिल से भटक चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी परिवर्तन के आदर्श हैं लेकिन इस दौर में इमेज के प्रति कुछ ज्यादा सावधान हो चले है। अनेकता में एकता इस देश की सांस्कृतिक पहचान है लेकिन घर हो या देश सिर्फ इक़बाल से चलता है और इसके लिए इमेज से जरुरी वह फैसला है जिसके सामने लोग,समाज और संप्रदाय नहीं सिर्फ देश देश होता है। जय हिन्द !
(लेखक ज़ी मीडिया में वरिष्ठ पत्रकार हैं)