एक ऐसे युग में जिसे चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए जाना जाएगा, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा और इंटरनेट ऑफ थिंग्स की बड़ी भूमिका की उम्मीद की जा रही है, वहां 5G टेक्नोलॉजी से ज्यादा फायदा लेना ये तय कर सकता है कि आगामी महाशक्ति बनने की लड़ाई में कौन जीतेगा. हालांकि, मौजूदा दौर में कोरोना वायरस महामारी के दौरान भू-राजनीतिक घटनाक्रम होने से चीन की भारी भरकम ग्लोबल 5G स्ट्रैटजी या तो कमजोर पड़ सकती है या फिर टल सकती है, जो कि बीजिंग के डिजिटल सिल्क रोड प्लान के लिए भी काफी अहम है.


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कोरोना वायरस के आने से पहले चीन की योजनाओं के खिलाफ अमेरिका की अगुवाई में खड़ा होने वाला देशों का छोटा समूह अब और देशों के शामिल होने से बड़ा हो सकता है क्योंकि मौजूदा महामारी के दौरान जवाबदेही, जिम्मेदारी और प्रोपगेंडा पर चीन के व्यवहार से इन देशों का बीजिंग पर विश्वास उठ गया है. 


भू-राजनीतिक लड़ाई
आधुनिक इतिहास में तकनीकी वर्चस्व हासिल करना भू-राजनीतिक लड़ाई का प्रमुख हिस्सा रहा है, और यही बात अमेरिका-चीन के बीच जारी मुकाबले के लिए भी है. इस बात की अहमयित समझते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने पिछले कुछ वर्षों से चीन के प्रमुख 5G प्लेयर हुआवेई (Huawei) और दूसरे प्लेयर ZTE के खिलाफ ग्लोबल कैंपेन छेड़ दिया है. उन्होंने आरोप लगाए हैं कि चीन ने 5G टेक्नोलॉजी से जुड़ी इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी की चोरी की है और साथ ही ट्रंप ने इसके जरिए जासूसी से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होने का मुद्दा भी उठाया.


इसका नतीजा ये हुआ कि ट्रंप प्रशासन ने हुआवेई के खिलाफ कई कदम उठाने की घोषणा कर दी. जिसमें खासतौर पर अमेरिका और उससे आगे सस्ती दरों पर 5G उपकरण मुहैया कराने की हुआवेई की क्षमता को कम करने की कोशिश की गई. महामारी के दौरान सबसे ताजा पाबंदी ये लगाई गई कि हुआवेई विदेशों में अपने सेमीकंडक्टर बनाने के लिए अमेरिकी टेक्नोलॉजी और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं करेगा. अमेरिका ने हुआवेई पर एक्सपोर्ट कंट्रोल के उपायों को कमजोर करने का आरोप लगाया है. 



महामारी के दौरान बढ़ रही चीन विरोधी भावना
अमेरिकी सरकार ने महामारी के दौरान बढ़ रही चीन विरोधी भावनाओं का फायदा उठाते हुए नई पाबंदियां लगाई हैं. अमेरिका की लगाई नई पाबंदी से हुआवेई का R&D वर्क प्रभावित होगा. इसकी बिजनेस कॉस्ट भी बढ़ जाएगी क्योंकि चिप बनाने वाली कंपनियां चीन की हुआवेई को चिप सप्लाई नहीं कर सकतीं अगर वो अमेरिकी टेक्नोलॉजी पर बनी हों. इसके अलावा, वर्तमान में इस टेक्नोलॉजी का चीन में विकल्प भी नहीं है. इस पाबंदी से हुआवेई को यूरोपियन यूनियन समेत दुनियाभर में कंपोनेंट्स सप्लाई करने वाली कंपनियां भी प्रभावित होंगी, जिससे हुआवेई की इंटरनेशनल सेल्स को भारी नुकसान होगा. इस कार्रवाई के बाद चीन इस कदर तिलमिला गया है कि उसने आगे और ऐसे कदम उठाए जाने पर चीन में बड़े पैमाने पर कारोबार कर रही अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ बदले की नीयत से कार्रवाई करने की धमकी दी है.


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एक तरफ ट्रंप प्रशासन अपने देश में हुआवेई के खिलाफ लगातार कार्रवाई कर रहा है साथ ही दुनियाभर में अपने साथी देशों को हुआवेई पर बैन लगाने के लिए राजी कर रहा है ताकि चीन की कंपनी उनके टेलीकम्युनिकेश नेटवर्क तक पहुंच ना बना सके. जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे कुछ साथी देशों ने अमेरिका के हुआवेई पर पाबंदी लगाने की योजनाओं का समर्थन किया है, तो वहीं कनाडा और यूरोपियन यूनियन महामारी से पहले इस मुद्दे पर चर्चा ही कर रहे थे. यूरोपियन यूनियन के कई सदस्य देश इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं क्योंकि चीन का इनमें से कई देशों में काफी प्रभाव है.


इसके अलावा, महामारी से पहले अमेरिका को यूनाइटेड किंगडम से निराशा हुई जिसने संकोच करते हुए कुछ महीने पहले हुआवेई को अपने नेटवर्क के लिए सीमित पहुंच दे दी. फिर भी, चूंकि वायरस की उत्पत्ति के प्रति जवाबदेही, सप्लाई चेन निर्भरता को लेकर भरोसा और ग्लोबल मीडिया में तूफानी हमलों के जरिए प्रॉपगेंडा को लेकर चीन पर सवाल उठ रहे हैं, जिसके बाद यूके में चीन विरोधी लॉबी इस मौके को भांपते हुए बोरिस जॉनसन प्रशासन को ये समझाने में जुट गई है कि हुआवेई पर कार्रवाई की जाए जैसा कि ब्रिटिश मीडिया का सुझाव है. पिछले सप्ताह द फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया कि यूके सरकार अगले तीन साल में ब्रिटेन के 5G नेटवर्क से हुआवेई को पूरी तरह से बाहर निकालने की योजना बना रही है. पिछले कुछ महीनों में ही हुआवेई को लेकर यूके की सोच में बहुत बड़ा बदलाव आया है. 


जनवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में, यूरोपियन कमीशन ने किसी भी भारी जोखिम वाले 5G सप्लायर पर पूरी तरह बैन लगाने के बजाय कड़े नियमों की सिफारिश की थी, जिसमें अहम और संवेदनशील संपत्ति को बाहर रखने और अलग-अलग वेंडरों के सुनिश्चित करने की रणनीति शामिल थी. इसी तरह, फरवरी 2020 में जर्मनी की सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों ने 5G नेटवर्क में विदेशी वेंडरों की सीमित हिस्सेदारी की मांग वाले प्रस्ताव का समर्थन किया क्योंकि क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) में एक चीन विरोधी समूह मर्केल प्रशासन पर हुआवेई के खिलाफ पूरी तरह से पाबंदी लगाने का दबाव बना रहा है.


इसके अलावा, CDU गठबंधन में शामिल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी सप्लायर कंपनियों के देशों के गवर्निंग सिस्टम को देखते हुए उनकी राजनीतिक विश्ववसनीयता पर सवाल उठा रही है. ऐसे में जब जर्मनी की संसद में 5G नेटवर्क सप्लायर से अतिरिक्त जानकारी मांगने वाला ड्राफ्ट बिल पेश किया जाएगा तो हुआवेई जैसी कंपनियों को झटका लगना तय है. हैंडेल्सब्लाट (Handelsblatt) की रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू राजनीतिक तरजीह और अमेरिकी कार्रवाई के बाद कारोबार की बढ़ती लागत को देखते हुए डॉइच टेलीकॉम (Deutsch Telekom) और वोडाफोन पहले से ही अपने नेटवर्क के संवेदनशील हिस्से से हुआवेई के उपकरणों को हटाने पर विचार कर रहे हैं. 



हालांकि ये सुझाव एकदम प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं करते, जैसा कि अमेरिका चाहता है, फिर भी वे हुआवेई जैसे विदेशी वेंडरों के खिलाफ काफी कठोर नियंत्रण व्यवस्था के पक्ष में हैं. यही नहीं, इसमें कोई हैरानी नहीं होगी अगर फ्रांस-जर्मनी के नए कोविड-19 प्लान के तहत औद्योगिक रणनीति के तौर पर यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश विदेशी कंपनियों के मुकाबले नोकिया और एरिक्सन जैसे लोकल EU 5G प्लेयर को तरजीह दें. फ्रांस-जर्मनी के बीच करार "रणनीतिक क्षेत्रों में गैर-यूरोपीय संघ के निवेशकों की स्क्रीनिंग" को मजबूत करने और यूरोपियन कॉम्पिटिशन पॉलिसी में "सरकारी मदद और प्रतिस्पर्धा नियमों की अनुकूलता में तेजी लाने" पर जोर देता है.


इसके अलावा, एक तरह की नीतिगत प्राथमिकता में, यूरोपीय संघ के विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि जॉसेप बॉरेल फॉन्टेल्स ने कई मीडिया आउटलेट्स में प्रकाशित अपने लेख में सुझाव दिया कि राज्य-केंद्रित चीनी दृष्टिकोण यूरोपीय संघ के मल्टी-स्टेकहोल्डर अप्रोच के खिलाफ है जो कि साइबर डोमेन में मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए सम्मान पर आधारित है. इसके साथ ही उन्होंने रणनीतिक क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता से बचने की अपील की है. इन घटनाक्रम से साफ है कि OECD (Organisation for Economic Co-operation and Development) के ज्यादातर देशों में हुआवेई की पहुंच पर पाबंदी रहने वाली है, जिससे चीन की राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही महत्वाकांक्षाएं सीमित रहेंगी.


हाई वैल्यू मार्केट में ASEAN एक ऐसा क्षेत्र है जहां वियतनाम को छोड़कर हुआवेई के लिए ज्यादा अच्छा माहौल मिलेगा. हालांकि वियतनाम ने हुआवेई पर बैन नहीं लगाया है, लेकिन ये दावा करता है कि इसने देश के रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाली वियतनाम की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी वियतटेल के जरिए अपना 5G टेक विकसित कर लिया है, जिसको लेकर जानकार मानते हैं कि ये चीन के हुआवेई की उपेक्षा करने में मददगार साबित होगा. कंपनी ने दावा किया है कि उसकी फिलहाल हुआवेई के साथ काम करने की कोई योजना नहीं है. ये हालात ज्यादा बदलने वाले नहीं हैं क्योंकि चीन साउथ चाइना सी में आक्रामकता बढ़ाने में लगा है. इसके अलावा, ब्राजील और भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले प्रमुख देशों को भी अभी इस बारे में फैसला लेना बाकी है. 


भारत उन शुरुआती देशों में से एक था जिसने करीब एक दशक पहले ही हुआवेई के बारे में जासूसी से जुड़ी चिंता का मुद्दा उठाया था. भले ही सरकार ने हुआवेई को ट्रायल के लिए इजाजत दे दी है, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार को अस्पष्टता का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि देश का रणनीतिक समुदाय राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों को लेकर बेहद चिंतित हैं. भारत-चीन सीमा पर जारी टकराव और कड़े डेटा प्रोटेक्शन कानून को लाने की भारत सरकार की योजना से भी ये स्थिति और कठिन होने वाली है.


भारत की स्थिति
इसके अलावा, हाल ही में इंडिया में 5G को लेकर भी कुछ दिलचस्प घटनाक्रम हुए हैं. पहला, एयरटेल, जो कि हुआवेई की समर्थक है, जिसने हुआवेई को लेकर जारी अनिश्चितता के बीच अपने 4G नेटवर्क को आधुनिक बनाने और इसका विस्तार करने के लिए नोकिया के साथ 1 बिलियन डॉलर की डील की है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में 5G नेटवर्क के लिए भी किया जाएगा. दूसरा, रिलायंस जियो, भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी, जिसने खुद का 5G टेक विकसित करने का दावा किया है. यही नहीं, जियो ने यह भी दावा किया है कि ये दुनिया की एकमात्र कंपनी है जो अपने 4G और 5G नेटवर्क में चीन के किसी भी उपकरण का इस्तेमाल नहीं करती और आगे भी इस बात पर कायम रहेगी. 


ये सभी घटनाक्रम बताते हैं कि दुनियाभर में चीन की 5G योजनाओं के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि इसे अमेरिकी नेतृत्व में चल रहे अभियान का सामना करना पड़ रहा है. जब महामारी के दौरान भू-राजनीति की तस्वीर साफ हो जाएगी, तब भी किसी को ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हुआवेई के लिए हालात बेहतर हो जाएंगे, खासकर जब चीन ने ईस्ट चाइना सी, साउथ चाइना सी, ताइवान स्ट्रेट, हांग कांग और भारत-चीन सीमा में सैन्य आक्रामकता बढ़ा दी है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय, जिसमें खासकर चीन की आक्रामकता का शिकार देश शामिल हैं और पश्चिमी देश जो कि अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानवाधिकारों की चिंता करते हैं, अपने रुख में जल्द नरमी नहीं लाएंगे अगर महामारी को लेकर झगड़ा जारी रहता है.


(लेखक ईस्ट एशिया सेंटर, मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में रिसर्च इंटर्न हैं)


(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)