Coronavirus: कोरोना वायरस को आखिर किस तरह बनाया गया?
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Coronavirus: कोरोना वायरस को आखिर किस तरह बनाया गया?

COVID-19 के अब तक किसी भी प्राकृतिक स्रोत की पहचान नहीं की गई है. 

Coronavirus: कोरोना वायरस को आखिर किस तरह बनाया गया?

कोरोना वायरस के बारे में एक आम धारणा ये बनाई गई है कि ये प्राकृतिक घटना है. हालांकि इससे अलग राय रखने वाली आवाजों को अभी साइंटिफिक लिटरेचर तक में तरजीह नहीं मिली है. हालांकि इसकी उत्‍पत्ति के कारणों को जानने का मकसद किसी पर दोष मढ़ना नहीं है बल्कि ये तो महज वैज्ञानिक जांच की प्रक्रिया का हिस्‍सा है. साइंटिफिक जर्नल नेचर में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में ये बताया गया कि दोबारा संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कोविड-19 की उत्पत्ति के कारणों को जानना जरूरी है लेकिन फिर भी इसके स्रोत का ठीक से पता लगाना मुश्किल रहा है. यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन के वैज्ञानिक लूसी वैन डॉर्प ने कहा, 'ये बहुत मुमकिन है कि हम इसका पता नहीं लगा पाएं. वास्तव में ये काफी खुशनसीबी होगी अगर हमें इसके बारे में कोई जानकारी मिल जाए.'

अगर कोविड-19 बायोइंजीनियरिंग के जरिए तैयार किया गया तो जाहिर है कि इसके प्राकृतिक स्रोत जैसी चीज के बारे में पता लगाना असंभव होगा. हालांकि कोरोना वायरस पर सैकड़ों वैज्ञानिक लेख प्रकाशित हुए हैं, लेकिन उनमें से कुछ वर्तमान चर्चा के लिए अहम हैं. 

कोरोना शरीर में प्रवेश कैसे करता है?
वास्‍तव में कोरोना वायरस पर रिसर्च 2002-2004 की महामारी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस (SARS, SARS-CoV or SARS-CoV-1) से शुरू नहीं हुई. कोरोना वायरस के बारे में जानने के लिए और दिलचस्पी 2012 में फैले मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS or MERS-CoV) के बाद जगी. 

इन दोनों बीमारियों के बारे में ज्यादातर वैज्ञानिक पड़ताल कोरोना वायरस के विशेष घटक स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन पर केंद्रित थी, जिसके जरिए वायरस खुद को मानव कोशिका से चिपका लेता है और शरीर में प्रवेश कर जाता है. जाहिर है कि स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन की प्रक्रियाओं को समझना और इनमें बदलाव करना चिकित्सा विज्ञान के लिए काफी अहम साबित हो सकता है.

स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन
रिसर्च का ज्यादातर फोकस स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन या एस-प्रोटीन के प्रोटीन भाग द्वारा नियंत्रित घटनाक्रम पर केंद्रित रहा, जिसके दो खंड होते हैं, पहला एस1 जो कि मुख्य रूप से मानव कोशिका से जुड़ने में मदद करता है और दूसरा एस2, जो कि कोशिका झिल्ली में छेद करने और उसमें प्रवेश करने का काम करता है. 

एस1 खंड में रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (RBD) कहे जाने वाले प्रोटीन के निर्माण ब्लॉक अमीनो एसिड का अनुक्रम होता है, जिससे कोरोना वायरस की विशेष ग्राही से जुड़ने की क्षमता तय होती है, वो ग्राही चाहे इंसान हो या फिर जानवर. कोरोना वायरस में अनुक्रम परिवर्तन अक्सर होते रहते हैं, जो धीरे धीरे समय के साथ अलग-अलग जानवरों या फिर जानवरों और इंसानों के बीच फैलने में सक्षम एक नई RBD संरचना का निर्माण करते हैं. 

SARS और MERS दोनों के लिए सर्वसम्मति से वैज्ञानिक राय है कि ये चमगादड़ से पैदा हुआ फिर बीच में मेजबान पशु, मुश्क बिलाव और ऊंट से फैलता गया और इस तरह इसने इंसानों को भी संक्रमित करने की क्षमता हासिल कर ली. अगर इस तरह का दावा वैज्ञानिक तौर पर मान्य है, तो शुरुआत में ये मान लेना तर्कसंगत है कि COVID-19 भी इसी तरह जानवरों से मनुष्यों में फैल गया. 

शुरुआती SARS महामारी के शोधकर्ताओं की भी यही धारणा थी, जिन्होंने महामारी के पैदा होने के बारे में सटीक जानकारी पाने के लिए स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन के एस1 खंड के अंदर RBD पर अपना ध्यान केंद्रित किया.  2003 में ये पता चला था कि इंसानों के फेफड़े, गुर्दे, आंत और रक्त वाहिनी में मौजूद एंजियोटेंसिन कनवर्टिंग एंजाइम-2 (ACE2) SARS RBD के लिए रिसेप्टर का काम करता है. 

जैसा कि पहले बताया गया कि SARS चमगादड़ों से फैला, लेकिन ये इसका सीधा स्रोत नहीं था. 2008 में SARS की उत्पत्ति को समझाने के लिए एक बायोइंजीनियरिंग स्टडी की गई, जिसमें वैज्ञानिकों ने SARS RBD को एक गैर मानव संक्रमित चमगादड़ कोरोना वायरस से जोड़ दिया, और इस तरह चमगादड़ से जन्मे एक नए वायरस को पैदा कर दिया जो कि इंसानों को संक्रमित कर सकता था.

2012 में MERS के प्रकोप के बाद चमगादड़ से कोरोना वायरस के इंसानों में फैलने को समझने के लिए 2014 में एक लेख आया, जिसमें वैज्ञानिकों को ये पता चला कि इंसानों में संक्रमण के लिए ना केवल एस1 बाइंडिंग जरूरी है, बल्कि एस1/एस2 जंक्शन पर एस प्रोटीन को काटना भी जरूरी है, तभी एस2 खंड से झिल्ली में छेद होता है और कोशिका में वायरस प्रवेश करता है. 

एस1 प्रोटीन की संरचना से निर्धारित ग्राही बंधन, दरार और झिल्ली संलयन ही वो अहम फैक्टर हैं जो इंसान में वायरस फैलने और उसे रोगी बनाने का काम करते हैं. ये अब पता चल चुका है कि SARS की तरह ही कोविड-19 भी ACE2 को अपने ग्राही की तरह इस्तेमाल करता है और एस1/एस2 जंक्शन पर एक भेदन स्थल होता है.

जो दिख रहा है, वैसा है नहीं
मौजूदा पारंपरिक जानकारी के मुताबिक, शुरुआती कोविड-19 , चमगादड़ों में घूमते हुए परिवर्तित हुआ, फिर शायद बीच में एक मेजबान के माध्यम से इंसानों को संक्रमित करने की क्षमता हासिल की, जो बाद में वुहान सीफूड मार्केट में आने या वहां काम करने वाले लोगों में फैल गया. ये निष्कर्ष वैज्ञानिक तौर पर उतना पुख्ता नहीं है जितना कुछ लोग चाहेंगे कि आप मानें. 

जनवरी 2020 के आखिर तक ये पहले ही पता लग गया था कि 2019 में 1 दिसंबर से 10 दिसंबर तक अस्पताल में भर्ती हुए शुरुआती मरीज उस मार्केट में नहीं गए थे और वहां पर चमगादड़ भी नहीं बेचे गए थे. नेचर के लेख में कहा गया कि SARS-CoV-2 का निकटवर्ती स्रोत व्यापक तौर पर इस थ्योरी का समर्थन करने के लिए बताया गया कि ये कुदरती तौर पर जन्मा. लेकिन इसने कुछ ऐसे संदेह भी पैदा किए जिन्हें व्यापक तौर पर नहीं उठाया गया. 

SARS-CoV-2 की चमगादड़ SARS-CoV जैसे कोरोना वायरस से समानता को देखते हुए, ये मुमकिन है कि चमगादड़ अपने अग्रगामी के लिए मेजबान का काम करते हों. हालांकि, राइनोफस एफिनिस चमगादड़ से लिया गया सैंपल RaTG13 लगभग 96% SARS-CoV-2 के समान है, लेकिन इसकी नोक RBD में झुक जाती है, जिससे ये साफ होता है कि यह इंसानी ACE2 से जुड़ नहीं सकती है.

पैंगोलिन
वास्तव में, COVID-19 का RBD चमगादड़ के बजाय काफी हद तक पैंगोलिन के जैसा है, लेकिन COVID-19 के लिए मध्यवर्ती मेजबान के रूप में पैंगोलिन को खारिज कर दिया गया है. किसी को भी इस नतीजे पर पहुंचने के लिए माफ किया जा सकता है कि COVID-19 में चमगादड़ संरचना वाला बैकबोन है, लेकिन एक पैंगोलिन जैसा आरबीडी, जो कि प्राकृतिक रूप से होने वाली थ्योरी के हिसाब से अब तक एक पहेली है.

इसके अलावा, COVID-19 की S1/S2 पॉलीबेसिक क्लीवेज साइट, कोरोनाावायरस में रोगजनकता और संक्रामकता बढ़ाने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाने वाली एक खास विशेषता 45 चमगादड़, 5 ह्यूमन SARS, 2 मुश्क बिलाव, 1 पैंगोलिन और 1 रकून डॉग कोरोना वायरस में से किसी में भी नहीं दिखी, जिनमें S1/S2 जंक्शन संरचनाएं हैं  जो या तो COVID-19 के समान या लगभग समान हैं.

COVID-19 की तुलना में दूसरे कोरोना वायरस में S1/S2 दरार साइट की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए की गई स्टडी में ये उन तकनीक को बताया गया है जिनसे भेदन स्थल को कृत्रिम तौर पर भी बनाया जा सकता है. सच्चाई ये है कि COVID-19 के किसी भी प्राकृतिक स्रोत की पहचान नहीं की गई है. मौजूदा वैज्ञानिक सबूत बायोइंजीनियरिंग की बात पर जोर देते हैं और बताते हैं कि ऐसा करने की स्पष्ट क्षमता मौजूद है, ऐसे में सभी इस वायरस की उत्पत्ति के बारे में व्यापक जांच की मांग करते हैं.

(लॉरेंस सेलिन रिटायर्ड यूएस आर्मी कर्नल हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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