ललित फुलारा


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भारत के खुदरा दवा बाजार में घुसपैठ करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने केंद्र शासित प्रदेशों और सभी राज्य सरकारों को इंटरनेट पर दवाओं की अनधिकृत बिक्री करने वाले ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया है। इस आदेश के बाद अब ई-कॉमर्स कंपनियां इंटरनेट के माध्यम से दवाओं की बिक्री का कारोबार नहीं कर पाएंगी। दरअसल, देशभर के फार्मासिस्ट काफी लंबे वक्त से ऑनलाइन दवा बिक्री का विरोध कर रहे हैं। इस फैसले के बाद अब कुछ नामी गिरामी भारतीय और विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं।


* देश में घरेलू दवा बाजार 15 बिलियन डॉलर के करीब है।


*लंबे वक्त से दवाओं की ऑनलाइन बिक्री का चल रहा था विरोध


ऑनलाइन दवाओं की बिक्री को रोकने के लिए ज्वॉइंट ड्रग कंट्रोलर एस एस्वर्य रेड्डी ने 30 दिसंबर 2015 को सभी राज्य सरकारों को खत लिखा था। रेड्डी ने अपने खत में राज्य सरकारों को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के नियमों का उल्लंघन करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। लंबे समय से ई-फार्मेसी का विरोध कर रहे संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। आरटीआई कार्यकर्ता विनय कुमार भारती का कहना है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के इस फैसले का देशभर के फार्मासिस्टों ने गर्मजोशी से स्वागत किया है।


उनका कहना है कि इस आदेश के बाद अब दिल्ली, मुंबई, पुणे आदि बड़े शहरों में ई-कॉमर्स कंपनियों ने अपने पोर्टल को ब्लॉक करना शुरू कर दिया है। अभी तक ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के नियमों का उल्लंघन करके खुलेआम यह खेल चल रहा था।


* मई 2015 में महाराष्ट्र की एफडीए ने स्नैपडील के खिलाफ ऑनलाइन दवाएं बेचने का केस दर्ज किया था। 


* 31 अगस्त 2015 को फार्मासिस्टों ने महाराष्ट्र एफडीए ऑफिस के बाहर चाय बेचकर किया था प्रदर्शन। 


इस आदेश से पहले अक्टूबर 2015 में मुंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को ऑनलाइन ड्रग बिक्री के जांच के आदेश दिए थे। वहीं, ऑनलाइन दवाओं की बिक्री के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में एक याचिका भी डाली गई थी। महाराष्ट्र की एफडीएन ने मई 2015 में स्नैपडील के खिलाफ ऑनलाइन दवाएं बेचने का केस भी दर्ज किया था। इसी तरह, फिल्फकार्ट, शॉप क्लूज़ डॉट कॉम और कुछ अन्य वेबसाइटों को भी नोटिस भेजा गया था। 


विनय का कहना है कि नोटिस के बाद कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों ने तो ऑनलाइन दवा बेचना बंद कर दिया था लेकिन कुछ ने इसके बाद भी दवाओं की बिक्री जारी रखी थी। इनमें मेड डॉट कॉम मेडिप्ल प्रमुख है। विनय कहते हैं कि जब तक सख्ती के साथ गैर-कानूनी तरीके से दवाओं की बिक्री करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ एफआईआर नहीं की जाती तब तक दवाओं के अनधिकृत बिक्री का यह खेल रुकने वाला नहीं है।


*सबसे पहले महाराष्ट्र से हुआ था ई-फार्मेसी का विरोध


* वर्तमान में दो तरह से चल रहा है इंटरनेट पर दवाओं की बिक्री का खेल


सबसे पहले ई-फार्मेसी का विरोध महाराष्ट्र के फार्मासिस्ट संगठन ने किया था। इसके बाद से पूरे देशभर के फार्मासिस्ट और केमिस्ट ई-फॉर्मेसी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। महाराष्ट्र में ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन के बाहर प्रदर्शन कर रहे फार्मासिस्टो ने एफडीए मुख्यालय बांद्रा में 31 अगस्त को चाय बेचकर आंदोलन भी किया था।  वर्तमान में देश में दो तरह से ई-फार्मेसी का कारोबार चल रहा है। कुछ ऑनलाइन वेबसाइट्स, पाटर्नर फार्मेसियों से दवा खरीद कर उपभोक्ता के घर तक दवाओं की डिलीवरी करती हैं। कुछ फार्मेसियां ऑनलाइन ऑर्डर पर अपने आउटलैट के जरिए दवा पहुंचाती है।


 


* मेराफार्मेसी.कॉम, मेडिकेयर.कॉम, 3जी केमिस्ट.कॉम, नेटमेड्स.कॉम आदि कंपनियां इंटरनेट के माध्यम से करती हैं दवाओं की बिक्री


दरअसल, देश में ऑनलाइन फार्मेसी का ढांचा अभी बेहद लचर और कमजोर है। इसे अधिक कारगर और उपभोक्ता हितों के अनुकूल बनाने के लिए सरकार को ऑनलाइन फार्मेसी लाइसेंस जारी करने के लिए विस्तृत जांच करनी होगी। विनय के मुताबिक, इंटरनेट के माध्यम से दवाओं की खरीद पर कई बार देखा गया है कि ऑनलाइन फार्मेसी अपना फर्जी आईपी एड्रेस देती हैं। ऐसे में उपभोक्ता एक्सपायर्ड दवा मिलने की स्थिति में ऑनलाइन फार्मेसी का पता ही नहीं चल पाता है। सरकार को चाहिए कि किसी भी ऑनलाइन फार्मेसी को लाइसेंस देने से पहले उसका ट्रेक रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट और अन्य जानकारियां हासिल करें। न्यूरो सर्जन डॉ मनीष कुमार का कहना है कि ऑनलाइन फार्मेसी पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में काफी देरी से निर्णय लिया गया है। सरकार को गैर-कानूनी और अनधिकृत तौर पर दवा बेचने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। इस निर्णय का व्यापक तौर पर स्वागत किया जाना चाहिए।


  * सरकार ने डॉ हर्षदीप कांबले की अधय्क्षता में एक उपसमिति का गठन किया है।


ऑनलाइन फार्मेसी के नियमन के लिए केंद्र ने महाराष्ट्र के खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) कमिश्नर डॉ. हर्षदीप कांबले की अध्यक्षता में एक उपसमिति का गठन किया है। इसमें आईटी एक्सपर्ट समेंत कई राज्यों के एफडीए अफसर और केमिस्ट संगठनो के प्रतिनिधि हैं। इन्हें भारत में ऑनलाइन दवा कारोबार को समझकर ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट के नियमों में बदलाव हेतु मंथन कर समाधान तलाशना है।


* फार्मासिस्ट भी कर रहे हैं सलाहकार समिति में जगह देने की मांग


वहीं, इस संबंध में महाराष्ट्र रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश तांदळे ने एफडीए कमिश्नर डॉ. हर्षदीप कांबळे को पत्र लिखा कर फार्मासिस्ट सदस्यों को भी सलाहकार समिती में जगह देने को कहा है। कैलाश तांदले का कहना है कि वर्तमान में खुदरा दवा विक्रेता डॉक्टर की लिखी दवाइयों पर असमंजस की स्थिति में फोन पर डॉक्टर से संपर्क करके दवा के बारे में पूछ लेता है। लेकिन, क्या ऑनलाइन दवा बेचने वाली कंपनियां इतनी विश्वसनियता दे पाएंगी? अगर किसी ने फर्जी प्रिस्क्रिप्शन पर नशीली और गर्व निरोधक दवाओं का ऑडर किया तो क्या होगा?  हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ऑनलाइन दवा खरीद के लिए डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन के आधार पर दवाएं खरीदी जा सकेंगी या नहीं।


कई बार लोग ऑनलाइन कंपनियों से बिना डॉक्टर के सलाह के भी दवा खरीद लेते हैं। जो कि बेहद खतरनाक है। विशेषज्ञ पहले से ही ऑनलाइन दवा बिक्री को लेकर कई तरह के संदेह जताते आए हैं। इसमें भी संदेह है कि क्या दवा लिखने वाले की प्रामाणिकता को जांचने की जिम्मेदारी दवा कंपनियां ले पाएंगी या नहीं?  भारत में ड्रग की खरीद और बिक्री ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1940 रुल 1945 और फार्मेसी एक्ट 1948 के की धारा 42 तहत की जाती है। इसके नियमों के मुताबिक मरीज पंजीकृत चिकित्सक के पर्च पर ही दवाओं की खरीद की जा सकती है साथ ही दवा फार्मासिस्ट द्वारा ही दिए जाने का प्रावधान है। एक्ट के उलंघन करने पर 3 हज़ार रुपये का जुर्माना और एक साल की कैद का प्रावधान है।