Eight Years of PM Modi: भारतीय सभ्यता सबसे पुरानी सभ्यता है लेकिन इसके बावजूद वह और समृद्ध होती चली जा रही है. बहुत सारे लोग इस बात से आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि कैसे 5,000 साल से भी अधिक पुरानी यह सभ्यता अभी तक ना सिर्फ जीवित है बल्कि आज भी वह वैश्विक मानवीय मूल्यों की मशाल थामे हुए है. भारतीय सभ्यता के दुनिया की अग्रणी ताकत बनने की वजह यह है कि उसने सदियों से मूलभूत बुनियादी मानव मूल्यों पर आधारित अपनी संस्कृति विकसित की है और वे मूल्य हैं मानवतावाद और सार्वभौमिकतावाद. 


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विज्ञान के नियमों की तरह भारतीय संस्कृति ने भी 'जीवन के नियम' विकसित किए हैं, जो कि समय और स्थान से परे है. ये मूल्य पूरी मानव जाति पर लागू होते हैं, भले ही उनका भौगोलिक या सामयिक पहलू कुछ भी हो. इसलिए इसे सनातनी-परंपरा भी कहा जाता है.


अगर आप यह सवाल करें कि अमेरिकी संस्कृति का मूल क्या है तो इसका जवाब होगा पूंजीवाद और हस्तक्षेप ना करने की नीति यानी ऐसी नीति जिसमें सरकार व्यापार या उद्योग में हस्तक्षेप नहीं करती. भारतीय सभ्यतागत मूल्यों में भौतिक-समृद्धि और विकास की कोई मनाही नहीं है लेकिन वह सिर्फ भौतिक प्रगति को ही मानवीय सफलता के एकमात्र फलसफे के रूप में नहीं देखते.


इन मूल्यों के मूल में आध्यात्मवाद है, जिसे वेदांत दर्शन, अद्वैत-द्वैत दर्शन और भक्ति आंदोलन इत्यादि से विभिन्न अभिव्यक्तियां मिलती हैं. भौतिक सफलताओं को पीछे छोड़ने वाली आध्यात्मिक धाराओं के इन तरीकों को मानवीय कलाओं, चित्रकारी, पूजन और भक्ति के जरिए प्रकटीकरण किया जाता है और इन सभी प्रकार के प्रकटीकरण के केंद्र में मंदिर हैं.


हाल ही में हमने भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक मूल्यों का पुनरुद्धार होते देखा है, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान. इस सनातनी-संस्कृति ने युगों तक ऐसा पुनरुद्धार नहीं देखा था. भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार की प्रमुख रूपरेखाएं इस प्रकार हैं:


  • सांस्कृतिक पुनरुद्धार हिन्दुत्व और अन्य भारतीय आस्थाओं के मूल मूल्यों पर आधारित रहे हैं और वे मूल्य मानवतावाद और सार्वभौमिकतावाद ही हैं.

  • इस पुनरुद्धार ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को समकालिक बना दिया है और इस वजह से हिन्दुत्व, बौद्ध, जैन और अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक मूल्यों जैसी विभिन्न अभिव्यक्तियों का वह केंद्र बन गया है.

  • ये सांस्कृतिक मूल्य सांस्कृतिक कूटनीति से बने हैं. इन्हें वैश्विक स्तर पर प्रोजेक्ट किया जाता है और उनका वैश्वीकरण किया जाता है.

  • घरेलू मोर्चे पर, हिन्दुत्व और भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों के साथ ही इनके प्रतीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है और उनका पुनरुद्धार किया गया है.

  • यह सांस्कृतिक पुनरुद्धार छिपकर या गुप्त तरीके से नहीं किया गया है. बल्कि इसे अविस्मरणीय, प्रगतिशील और मिशन स्तर पर किया गया है.

  • भौतिक स्तर पर, हिन्दुत्व के भौतिक प्रतीकों का स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर पुनरुद्धार किया जा रहा है. साथ ही ना सिर्फ मूल्यों का पुनरुद्धार किया जा रहा है बल्कि उसे प्रोजेक्ट भी किया जा रहा है. इन सांस्कृतिक केंद्रों का विकास किया जा रहा है ताकि उन्हें सांस्कृतिक-पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके.

  • किसी भी धर्मपरायण हिन्दू को चार धाम (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी) सप्त-पुरी (सात धार्मिक नगरी अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांटी, अवंतिका और द्वारका) और 12 ज्योर्तिलिंग (केदारनाथ और काशी सहित भगवान शंकर के 12 शहर) की यात्रा अपने जीवनकाल में एक बार जरूर करनी चाहिए. इसे अतिपवित्र माना जाता है.

  • काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना, राम मंदिर पुनर्निर्माण, मथुरा-वृंदावन पुनरुद्धार, गुजरात में उमियाधाम मंदिर, दक्षिण के मंदिर और कई सारे ऐसे केंद्रों का पुनरुद्धार किया जा रहा है. उत्तराखंड में हर मौसम के अनुकूल चार-धाम रोड करीब-करीब तैयार होने वाला है. भगवान राम से संबंधित धार्मिक स्थलों को जोड़ने वाले रामायण सर्किट का भी पुनरुद्धार हो रहा है.


भारतीय संस्कृति को दुनिया भर में आगे बढ़ाया गया है. प्रधानमंत्री जब विदेश दौरे पर जाते हैं तो वहां के संवैधानिक मुखिया को भगवद्गीता भेंट करते हैं. अपने दौरों पर वह खोई विरासतों, वह चाहे चोरी की गई हों या बलपूवर्क ली गई हों, को वापस लाना सुनिश्चित करते हैं.  इनमें कई प्राचीन कलाकृतियां, देवी-देवताओं की मूर्तियां और भारतीय कला व संस्कृति से जुड़े अन्य धरोहर शामिल हैं. फिर इस संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'सॉफ्ट पावर' के रूप में प्रोजेक्ट किया किया जाता है.


 उन्होंने नेपाल, जापान और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ बौद्ध सांस्कृतिक मूल्यों को रेखांकित करते हुए प्राचीन सांस्कृतिक जड़ों को पुनर्जीवित किया है. वह जब भी कभी किसी विदेशी भूमि पर कदम रखते हैं तो सबसे पहले वह भारतीय संस्कृति पर केंद्रित सामान्य सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जीवित कर संबंधों को जोड़ने का काम करते हैं.


उन्होंने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दिलाकर भारत की योग परंपरा को वैश्विक बना दिया. आयुर्वेद, जिसे दुनिया को भारत की ओर से उपहार कहा जाता है, उसे युद्ध-स्तर पर वैश्विक बनाया जा रहा है.
हर कोई यह देख सकता है कि पीएम मोदी ने गर्व और विश्वास के साथ भारत दौरे पर आए विदेशी राष्ट्राध्यक्षों या मेहमानों के सामने भारतीय सांस्कृति केंद्रों की अहमियत दर्शायी है. कैसे कोई वह दृश्य भूल सकता है जब उन्होंने वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर गंगा आरती की थी.


यह उन बड़ी गलतियों को सुधारना है जिन्हें निहित स्वार्थों के चलते पहले किया गया था. शिक्षा के क्षेत्र में हो या इतिहास की पुस्तकों में, ऐसे स्वार्थी तत्वों ने भारतीय संस्कृति को खराब स्वरूप में पेश किया. जो वास्तविकता और सच्चाई थी, उन्हें शोध का हिस्सा बना दिया गया. भारतीय सांस्कृतिक साहित्य का डिजिटलीकरण हो रहा है. पिछले आठ वर्षों के शासन में प्रधानमंत्री मोदी भारतीय संस्कृति और सभ्यता के ऐसे ब्रांड-एम्बेसडर के रूप में उभरे हैं, जिसका कर्ज नहीं चुकाया जा सकता.


(लेखक एक स्वतंत्र स्तंभकार और टिप्पणीकार हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं)