ऑटोमेशन है तो आफत है. मशीन है तो मुसीबत है. यूं तो ऑटोमेटेड टेलर मशीन यानी एटीएम बना है आपको चुटकियों में कैश देने के लिए लेकिन वही एटीएम जब मजाक के मूड में हो तो पसीने छुड़ा देता है. बैंकों के 'कंडीशंस अप्लाई' की तिकड़म में कंज्यूमर ऐसा उलझता है कि अपना ही कैश वापस लेने के लिए केस लड़ना पड़ता है. कुछ जरूरी बातों की जानकारी हो तो इस लड़ाई में आपकी जीत होती है लेकिन अगर चूक हो गईं तो पैसे गए समझो.


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जब एटीएम बोला- 'नो कैश अवेलेबल'
आप एटीएम गए. पता चला- कैश नहीं है. ऐसा बहुत बार हुआ होगा. लेकिन क्या आपको पता है कि इसके लिए आप बैंक को घेर सकते हैं? रायपुर में एक शख्स ने ऐसा ही किया. एसबीआई का एटीएम कई दिन तक खाली मिला तो उसने कंज्यूमर फोरम में केस ठोक दिया. बैंक को तलब किया गया तो बैंक ने दलील दी गड़बड़ी इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से हुई, इसलिए हम जिम्मेदार नहीं, वो कंपनी जिम्मेदार है जो इंटरनेट सेवा देती है. फोरम ने कहा- पहली बात तो ये कि जब तुम एटीएम की सुविधा देने के नाम पर एडवांस में पूरे साल का पैसा काट लेते तो फिर जिम्मेदारी तुम्हारी क्यों नहीं? दूसरी बात - अगर एटीएम का स्क्रीन बता रहा है 'नो कैश अवेलेबल' तो फिर इंटरनेट नहीं होने की बात कहां से आ गई?


एटीएम में क्यों न हो 'मिनिमम बैलेंस'?
बैंक को फटकार लगाते हुए कंज्यूमर फोरम ने एक बहुत दिलचस्प सवाल किया. फोरम ने कहा कि अगर खाते में मिनिमम बैलेंस मेंटेन न कर पाने पर ग्राहक को पैसा देना पड़ता है तो एटीएम में कैश न होने पर बैंक पैसे क्यों न भरे? इसके साथ ही रायपुर कंज्यूमर फोरम ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर 2500 रुपए का जुर्माना ठोक दिया. यहां आपको बताते चलें कि एसबीआई में सेविंग्स अकाउंट रखने वाले ग्राहक को 1000-3000 रुपए तक मंथली एवरेज बैलेंस रखना होता है. शहरी इलाकों में 3000 और गांवों में 1000 और 2000 रुपए. मिनिमम बैलेंस नहीं होने पर बैंक मंथली 5-15 रुपए तक काटता है. वित्त मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2017-18 में एसबीआई के पास 41 करोड़ सेविंग्स अकाउंट थे और सिर्फ मिनिमम बैलेंस वाली वसूली से बैंक ने 1,771.67 करोड़ रुपए कमाए थे.


एटीएम पैसे खाएगा तो बैंक चुकाएगा 
ये तो बात हुई पैसे से खाली एटीएम की. लेकिन कभी-कभी कैश रहते हुए भी एटीएम धोखा देता है. मसलन- आपने कार्ड डाला, पैसे लिखे, पिन नंबर डाला और ओके किया लेकिन ट्रांजैक्शन डिक्लाइंड हो गया. साथ ही एसएमएस आया कि पैसे कट गए. अब आप क्या करेंगे?  आमतौर पर तो ऐसी हालत में बैंक का सिस्टम गड़बड़ी पहचान लेता है और कुछ ही देर में आपके पैसे भी आ जाते हैं और एसएमएस भी आ जाता है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो आपके 3 ऑप्शंस हैं:


1. कार्ड के पीछे कस्टमर केयर नंबर होता है. उस पर फोन कीजिए. अपनी पहचान कन्फर्म कीजिए. ट्रांजैक्शन स्लिप और रिफरेंस नंबर की जानकारी दीजिए, आपको एक ट्रैकिंग नंबर मिल जाएगा. 7 वर्किंग डेज के भीतर आपका पैसा खाते में वापस आ जाएगा.


2. अपने नजदीकी ब्रांच जाइये. हेल्पडेस्क आपकी शिकायत फौरन सुनेगा और आपकी मदद के लिए एग्जिक्यूटिव लगा दिया जाएगा. मदद नहीं मिलती तो जिस ब्रांच में आपका खाता है उसके मैनेजर से मिल सकते हैं, ग्रीवांस सेल से संपर्क कर सकते हैं. 


3. अगर तब भी पैसे नहीं मिले तो आप आरबीआई के बैंकिंग ओंबुड्समैन से संपर्क कर सकते हैं. इसके लिए आपको आरबीआई की वेबसाइट के जरिए लिखित शिकायत भेजनी होगी. हालांकि ओंबुड्समैन से संपर्क आप लिखित शिकायत के 30 दिन बाद ही कर सकते हैं. और आखिर में कंज्यूमर कोर्ट तो है ही. 


लेकिन एटीएम में ये गलती मत कीजिएगा
बेंगलुरू की रहनेवाली वंदना की कहानी सुनी है आपने? वंदना से गड़बड़ ये हुई थी कि उन्होंने कैश विदड्रॉल के लिए अपना एसबीआई डेबिट कार्ड अपने पति को दे दिया था. पति पैसे निकालने गए तो एटीएम से कैश तो निकला नहीं, पैसे कटने की स्लिप जरूर निकल आई. परेशान दंपति ने एसबीआई को अपनी परेशानी बताई लेकिन बैंक ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि एटीएम कार्ड एक 'नॉन-ट्रांसफरेबल' सेवा है. यानी कानूनन कार्ड का इस्तेमाल वही कर सकता है जिसके नाम से खाता है. चूंकि वंदना के केस में कार्ड पति के पास था, लिहाजा बैंक ने सुनवाई से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, कंज्यूमर कोर्ट ने भी वंदना की अपील खारिज कर दी. तो आपके लिए सबक यही है- अपना एटीएम कार्ड किसी को न दें. और दे रहे हैं तो जोखिम समझ लीजिए- कुछ गड़बड़ हुई तो पैसे नहीं मिलने वाले.