कम से कम अब तो ये धारणा तोड़ देनी चाहिए कि हर आतंकी मुसलमान ही क्यों होता है? अब तो ये जाति-धर्मों से ऊपर यह एक नई जमात है जिसमें चुपके से कोई भी शामिल हो सकता है, पड़ोस का वह गुमसुम सा रहने वाला लड़का या अपने घर, पार्टी, दफ्तर में काम करने वाला कोई अपना ही अजीज. यूपी की एंटी टेररिज्म स्क्वाड ने जिन 10 संदेहियों को गिरफ्तार किया है उनमें से तीन को छोड़कर सभी धर्म से हिंदू हैं और जाति से बाम्हन, ठाकुर, पिछड़ा बगैरह. इन पर आरोप है कि ये लश्कर-ए-तैयबा और आईएस के आतंकी नेटवर्क के लिए काम कर रहे थे. इनमें से जो रीवा से उमाप्रताप उर्फ सौरभ सिंह पकड़ा गया है उसने पुलिस को बयान दिया है कि वह सीधे लाहौर से किसी राशिद से निर्देश प्राप्त करता था. राशिद लश्कर-ए-तैयबा का हेंडलर बताया जा रहा है.


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14 महीने पहले भी इतनी ही संख्या में आरोपी पकड़े गए थे उनमें से भी कोई मुसलमान नहीं थे बल्कि एक तो ऐसा भी था जो सत्ताधारी दल का पदाधिकारी था यह रह चुका था, उसका उठना-बैठना बड़े रसूखदार लोगों के साथ था. ये सभी के सब आतंकवादी नेटवर्क के लिए हवाला के जरिए धन उपलब्ध कराते थे. यही धन यहां सक्रिय उन आतंकवादियों के काम आता है जो सेना की शिविरों में घुसकर या पब्लिक में धमाका करते हैं.  इससे पहले वायुसेना, थलसेना के अधिकारी दर्जे के कई ऐसे आरोपी पकड़े गए हैं जिन पर आरोप है कि वे धन या अन्य लोभ में देश की सुरक्षा से जुडी़ जानकारी देश के बाहर भेज रहे थे. ये भी धर्म और जाति से मुसलमान नहीं थे. 


देश की नियति देखिए, एक तरफ ये सब देश को ध्वंश करने की मंशा में बैठे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और आतंकवादी संगठनों के लिए काम कर रहे हैं दूसरी ओर देश का वह हर अमन पसंद मुसलमान गहरे सांसत में जीता है जिसे रोज उठ सबेरे खुद को देशभक्त और राष्ट्रवादी साबित करने का यत्न करना पड़ता है. और अब तो ऐसी भी खबरें आने लगी हैं कि मां-बाप-भाई ही पुलिस को यह सूचित करने लगे हैं कि उनके बेटे या भाई की गतिविधियों पर उन्हें संदेह है. इन सबके बावजूद कभी भी किसी भी बहाने मुसलमान बस्तियों में हुड़दंगियों का जुलूस निकल ही पड़ता है, उन्हें सीधे पाकिस्तान चले जाने की हिदायत देते हुए..क्यों?


हमने पिछले कई सालों से आतंकवाद को धर्म के साथ जोड़कर अपनी-अपनी धारणाएं मजबूत की हैं. इसके पीछे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की वोट बटोरू राजनीति और निरद्वंद-स्वच्छंद-गैरजिम्मेदार, सनसनीखेज मीडिया और सोशल मीडिया में सक्रिय साइबर सुपारीबाजों का बड़ा योगदान है.


जब हम धर्म के आधार पर आतंकवादी और अपराधी मान लेने की अपनी धारणा को पुष्ट करते हैं तब यह भूल जाते हैं कि हम पड़ोसी मुल्क के रणनीतिक अभियान का हिस्सा ही बन रहे होते हैं. पाकिस्तान चाहता है कि भारत का हर मुसलमान वहां संदेह की दृष्टि से देखा जाए और स्थितियां कमोबेश ऐसे ही बनें जो 1930 के बाद मुस्लिम लीग के अभियान के चलते बनीं थीं और देश के तीन टुकड़े हो गए. पाकिस्तान जानता है कि वह सीधे युद्ध में पुश्तों तक लड़ते हुए भी भारत से नहीं जीत सकता इसलिये हमला भारत के भीतर से ही भारत पर होना चाहिए.युवाओं में उसके नेटवर्क का यही मकसद है. इस दृष्टि से जो भी यहां धर्म के नाम पर घृणा फैला रहे होते हैं प्रगटतः भले ही देशभक्त दिखें पर असल में वे पाकिस्तान के लिए ही काम करते हैं, जाने या अनजाने. इस बात को अच्छे से नोट कर लेना चाहिए.


मेरा मानना है कि आतंकवाद का जो नेटवर्क यहां बिछाया गया है उसमें जितने मुस्लिम युवा फंसते हैं उतने ही हिंदू या और भी. चूंकि हमारा दुश्मन एक मुश्लिम देश है इसलिए पकड़े गए लोगों को देखने का नजरिया पक्षपाती हो जाता है. दरअसल जेहाद-वेहाद कुछ नहीं वरन् ऐसी ताकतों के लक्ष्य में यहां का बेरोजगार युवा है जो जॉब न मिल पाने की वजह से अवसाद में जाने के बजाय किसी भी गैरकानूनी काम से जुड़कर धन कमाने को गलत नहीं मानता. पिछली मर्तबा और इसबार जितने भी युवा पकड़े गए सबके सब पैसा कमाने की गरज से ही जुड़े.


इन सभी को मालूम है कि वे जो कर रहे हैं यह देशद्रोह है, आतंकवाद की मदद है, ऐसा करना जघन्य अपराध है, पकड़े जाने पर कड़ी सजा तो मिलेगी ही उनके परिजनों का जीना नरक हो जाएगा. आतंकी नेटवर्क से मुस्लिम युवाओं के जुड़ाव के पीछे भी यही परिस्थितियां काम करती हैं, कोई जन्नत या जेहाद नहीं. इसलिये अब यह धारणा बिलकुल ही तोड़ देनी चाहिए कि आतंकवाद का कोई धार्मिक वास्ता है. यह एक वैश्विक प्रक्रिया है और हर जगह एक जैसी चल रही है. हां एक बात अवश्य है कि पाकिस्तान जिस आतंकवाद से खुद भी बरबाद है वहीं उसी आतंकवाद को भारत के खिलाफ अस्त्र की तरह इस्तेमाल करता है. सभी मुस्लिम देशों में आतंकवाद के यही दो रूप हैं- खुद के लिए आपदा, दुश्मन मुल्क के लिए युद्धक संपदा.


धन-धरम-जन्नत-जेहाद या हनीट्रैप किसी भी वजह से यदि कोई देश के खिलाफ काम करता है तो वह देशद्रोही है, आतंकियों की कैसे भी मदद करता है तो वह कसाब जैसा ही आतंकी है फिर चाहे वह धर्म से हिंदू हो या मुसलमान. दोनों ही बराबर घृणास्पद हैं. जो गोपनीय सूचनाए भेज रहे थे या फंड मैनेजमेंट के जरिए आतंकी नेटवर्क को मदद कर रहे थे उनके भी गुनाह की गंभीरता उतनी ही है जितनी कि एयरबेस कैंप में या सेना के शाविरों में हमला करने वाले आतंकवादायों की. इनकी सजा फांसी पर लटकाने से कमतर कुछ भी नहीं. एक और गंभीर बात जो मैं जिम्मेदारी के साथ फिर से कह रहा हूँ कि यदि देश में धर्म के आधार पर गुनाह तय होंगे, धारणाएं बनेंगी, वोटीय राजनीति के लिए घृणा की तिजारत की जाती रहेगी तो  भूल जाइए कि इस महान भारतभूमि में फिर से कोई परमवीर अब्दुल हमीद या भारतरत्न अब्दुल कलाम पैदा होगा.