धोनी आज भी टीम इंडिया को प्रेरित करते हैं, इसलिए उन्हें समय दीजिए...
ध्यान रखना चाहिए कि क्रिकेट का खेल दो टीमों के बीच संघर्ष का नाम है. जब टीमें इंग्लैंड व भारत हों, जो दुनिया में नंबर 1 और 2 हैं, तब मुकाबला और बड़ा और कड़ा हो जाता है.
परिणामप्रिय भारतीय क्रिकेट प्रेमी भूतपूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के पीछे पड़ गए हैं. पुरानी प्राप्त की गई कई जीतों पर धेानी को सिर पर उठाने वाले क्रिकेट प्रेमी एक दो हारों पर ही बिफर पड़े हैं. लॉड्र्स के मैदान पर धोनी ने 59 गेंदों पर केवल 37 रन बनाए थे. दर्शकों ने उन्हें हूट करना शुरू कर दिया था. सारी तोहमतें उन्हीं को दी गईं. मानो पराजय उन्होंने ही दिलाई हो. फिर उसके बाद हेडिंग्ले (लीड्स) पर भी वही सिलसिला जारी रहा. वहां भी महेंद्र सिंह धोनी तेज गति से रन बनाने में सफल नहीं हुए. हालांकि लीड्स पर तो वह ऊपर ही भेजे गए थे और जमने के लिए समय भी पर्याप्त था. दरअसल धोनी की इमेज एक जबर्दस्त फिनिशर के रूप में इतनी ऊंची है कि लोग उन से तूफानी पारी के अतिरिक्त कुछ भी बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं. लोग उन्हें संकटमोचक मानते हैं और उन्हें भरोसा रहता है कि हर बार और बार बार वह टीम को संकट से निकाल कर जीत की राह पर डाल देंगे. और अब जब कि वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो लोग निराश और नाराज हैं. वह पराजयों का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ना चाहते हैं.
हमें यह तो ध्यान रखना चाहिए कि क्रिकेट का खेल दो टीमों के बीच संघर्ष का नाम है. जब टीमें इंग्लैंड व भारत हों, जो दुनिया में नंबर 1 और 2 हैं, तब मुकाबला और बड़ा और कड़ा हो जाता है. अगर आप अपनी टीम को जिताना चाहते हैं तो विपक्षी टीम के खिलाड़ियों ने भी केाई चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं. वे भी अपनी टीम की जीत के लिए प्रयत्नशील हैं. फिर परिस्थितियों का भी फर्क पड़ता है. भारत में पाटा विकेटों पर बल्लेबाजी कर के आप चौकों व छक्कों की बरसात कर सकते हैं. पर इंग्लैंड में अगर गेंदबाजों को परिस्थिति से मदद मिल रही है तब आपको धैर्य व अनुशासन के साथ खेलना होता है. आक्रामक स्ट्रोक्स का चुनाव बड़ी होशियारी से करना होता है. अगर ऐसा नहीं कर पाए तो विकेट गिरने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है. भारतीय टीम परिस्थितियों के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रही है. हैरतअंगेज स्ट्रोक्स लगाने के लिए मशहूर भारतीय बल्लेबाज अपनी ही छवि के गुलाम बन गए हैं. इसलिए टी-20 के विजय के बाद उन्होंने वातावरण का मिजाज भांपने में गलती की.
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हम भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरह भारत के पाटा विकेटों पर गेंदबाजों के धुर्रे बिखेर कर अपनी टीम को जीत के अंजाम तक पहुंचाने में महेंद्र सिंह धोनी सफल होते हैं, वैसा वे इंग्लैंड में नहीं कर पाएंगे. लॉड्र्स में तो उन्हें काफी देर से भेजा गया था और उनके पास दूसरे सिरे पर इतने बल्लेबाज बाकी नहीं थे, जिनके साथ खेलकर टीम को वह जिता सकते. यही बात समझ कर लीड्स के मैदान पर उन्हें जल्दी भेजा गया था. भारत अगर पहले बल्लेबाजी कर के केवल 257 रन बना पाया तो इसके लिए ऊपर के खिलाड़ियों का जल्दी आउट होना इंग्लैंड के गेंदबाजों की निहायत अनुशासित गेंदबाजी जिम्मेदार है. सुरेश रैना के दिन अब लद गए हैं. पहले जब भी टीम के बल्लेबाजों का पतन होता था, तब रैना आ कर रोक लेते थे. तब हम कहते थे कोई फिक्र नहीं. रैना है न. पर अब हम यह नहीं कह सकते. अगर इंग्लैंड के आक्रमण में शामिल डेविड विली, प्लंकेट, वुड ने बढ़िया स्विंग व सीम गेंदबाजी का प्रदर्शन कर के भारतीयों का जुलूस निकाल दिया, तो उनकी सीख कर सुधार करने की प्रतिबद्धता की प्रशंसा करनी चाहिए. यह नहीं भूलना चाहिए कि इंग्लैंड पहला वनडे मैच कर कर 0-1 से सीरीज में पीछे था.
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भारतीय खिलाड़ी इस जीत से आत्ममुग्ध और संतुष्ट हो गए और इंग्लैंड ने पराजय से बहुत सीख लिया. भारत ने यह नहीं सोचा कि उनकी पहली विजय का मुख्य कारण था कुलदीप यादव की गेंदबाजी से शानदार प्रदर्शन. इंग्लैंड के बल्लेबाज इस रहस्य को नहीं सुलझा पा रहे थे कि कौन सी गेंद गुगली है कौन सी चाइनामैन और कौन सी टॉप स्पिनर. फिर बाएं हाथ से रिस्ट स्पिनर दुनिया में हैं ही विरले. इसलिए उनकी गेंदबाजी में एक रहस्य का पुट था. अन्य भारतीय गेंदबाज तो वैसे भी विकेट नहीं ले पा रहे थे. टीम प्रबंधन को सोचना था कि अगर कुलदीप यादव की गुत्थी को इंग्लैंड के बल्लेबाज सुलझा लेंगे तब टीम का क्या हाल होगा. पर वैकल्पिक योजना टीम के पास तैयार नहीं थी. जिसका डर था वही हुआ. कुलदीप यादव को विकेट नहीं मिला और भारती गेंदबाजों की कुटाई हो गई.
पर महेंद्र सिंह धोनी पर हार का ठीकरा फोड़ना तो तनिक भी उचित नहीं है. आज भी वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर हैं. आज भी वह पूरी टीम इंडिया को प्रेरित करते हैं. आज भी वह भारतीय गेंदबाजों लगातार सही गेंदबाजी करने के निर्देश देते रहते हैं. आज भी वह स्टंपिंग करते वक्त पुरानी जवानी के दर्शन कराते हैं. यही सही है कि विदेशी भूमि पर अब उनमें मारक शक्ति नहीं रह गइ है. पर टीम में उनकी जगह आज भी सुरक्षित है. विराट कोहली ने सही कहा है कि हमें धोनी की काबिलियत पर भरोसा करके उनमें विश्वास जताते रहना चाहिए. उनमें मैचों को जिताने की काबिलियत अभी भी है. आशा है, परिणामप्रिय भारतीय क्रिकेट प्रशंसक मेर इस राय पर गौर करेंगे.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)