सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद #MamataVsCBI मामले में तलवारें अब और खिंच गई हैं. पश्‍च‍िम बंगाल, ओडिशा और असम में फैले हजारों करोड़ के चिटफण्ड घोटाले पर अब मेघालय के शिलांग में CBI द्वारा आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार से पूछताछ होगी. केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के पुलिस अधिकारियों की अनुशासनहीनता पर राज्यपाल के मार्फत गोपनीय रिपोर्ट मंगवाई है. सवाल यह है कि पश्‍च‍िम बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी की दादागिरी, पुलिस अधिकारियों के सहयोग के बगैर कैसे चल सकती है?


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सीबीआई ने चार पुलिस अधिकारियों को तलब किया था- राज्य सरकार ने सन् 2013 में सारदा घोटाले की जांच के लिए राजीव कुमार की अध्यक्षता में SIT का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2014 से इन मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने पिछले डेढ़  सालों में 18 पत्र और नोटिस लिखकर एसआईटी के चार पुलिस अधिकारियों को जांच के लिए तलब किया. इन चार अधिकारियों में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के अलावा विनीत गोयल, तमाल बोस और पल्लव कांति घोष शामिल हैं. घोष रिटायर होने के बाद सीबीआई जांच में शामिल हो गए हैं. सीबीआई के अनेक पत्रों के जवाब में डीजीपी और राज्य सरकार ने कहा कि अधिकारियों से पूछताछ की बजाए लिखित सवाल किए जाने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजीव कुमार से व्यक्तिगत पूछताछ होगी पर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद क्या एसआईटी के अन्य सदस्य पुलिस अधिकारी भी अब सीबीआई के सामने पूछताछ के लिए पेश होंगे?


चिटफण्ड घोटाले में शामिल पुलिस अधिकारी
लाखों गरीब जनता की गाढ़ी कमाई को चिटफण्ड कम्पनियों ने लूट लिया, जिसमें पुलिस और नेताओं का भी सहयोग रहा. इस मामले में प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रजत मजूमदार को सितम्बर 2014 में गिरफ्तार किया गया था. राजीव समेत एसआईटी के अन्य अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने अहम सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और सभी दस्तावेज सीबीआई को नहीं सौंपे. सीबीआई इन अधिकारियों को गुनहगार मानती है तो राज्य सरकार इन्हें गवाह या विटनेस का दर्जा देती है. सवाल यह है कि सबूतों को हासिल करने के लिए जांच अधिकारी की बजाए एसआईटी के मुखिया को क्यों लपेटा जा रहा है? सबूत मिटाने या सही जांच नहीं करने पर वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और उनकी जवाबदेही अच्छा विचार है. बशर्ते इसे पूरे देश में लागू किया जाये. इस फॉर्मूले को सबसे पहले मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले मामले में आजमाना चाहिए, जहां नेताओं को बचाने के लिए अनेक सबूतों को गायब और नष्ट किया गया.


ममता की दीदीगिरी और पुलिसिया सहयोग
मोदी सरकार को कोसने वाली ममता बनर्जी खुद भी हिटलरशाही के पैतरों से बंगाल को अपनी जागीर समझती हैं. सन् 2013 में टीएमसी पार्टी के कार्यकर्ता की गिरफ्तारी से नाराज होकर दीदी ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर आर. के. पचनन्दा को हटा दिया था. पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार जिनके लिए ममता बनर्जी अभी सत्याग्रह या फिर सत्ताग्रह पर बैठी थीं, किसी जमाने में दीदी की हिट लिस्ट में थे. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रथयात्रा को रोकने के लिए ममता ने पुलिस अधिकारियों की रिपोर्टों का सहारा लिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकाप्टर की लैण्डिंग को रोकने के लिए भी दीदी को पुलिस और प्रशासन का अनीतिपूर्ण सहयोग मिला. केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अखिल भारतीय सेवाओं के लिए 1968 में बनायी गई नियमावली के उल्लघंन के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त प्रशासनिक कार्यवाही की मांग की है. परन्तु देश के सभी राज्यों में पुलिस अधिकारियों के सहयोग के बगैर नेताओं की मनमर्जी कैसे चल सकती है. बंगाल की घटनाओं के बाद IPS एसोसिएशन, क्या अपने अधिकारियों को नियम और कानून के अनुसार कर्तव्यों के पालन का निर्देश देगा, जो उनका संवैधानिक उत्तरदायित्व भी है?


नेताओं और पुलिस का भ्रष्ट गठजोड़
केन्द्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश अर्जी में पुलिस कमिश्नर और डीजीपी के धरने में बैठने को आपत्तिजनक बताया गया है. दूसरी तरफ एक अन्य पुलिस अधिकारी भारती घोष ने वीआरएस लेकर भाजपा का दामन थाम लिया है. हावर्ड से पढ़ाई करने वाली सन् 2006 बैच की आईपीएस भारती भी दीदी के कोप का शिकार हुईं और उनके पति को जेल जाना पड़ा. उनके खिलाफ ममता सरकार ने जालसाजी और वसूली के आपराधिक मामले दर्ज किये हैं, तो फिर भाजपा ने उन्हें क्यों अपनाया? राज्य पुलिस ने सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर पंकज श्रीवास्तव को भी आपराधिक मामलों की जांच के लिए बुलाया है. इस पूरे विवाद से पिंजड़े में बन्द तोते के साथ राज्य की पुलिस व्यवस्था भी एक्सपोज हो गई है. क्या अब पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले पर देशव्यापी अमल होगा, जिससे नेताओं और पुलिस के भ्रष्ट गठजोड़ पर लगाम लगाई जा सके?


सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील को नहीं माना
सीबीआई ने सबूतों को नष्ट करने की आशंका जताते हुए उसी दिन सुनवाई की मांग की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना था. अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया है और पुलिस कमिश्नर को जांच में सहयोग करने के लिए कहा है. सवाल यह है कि वे कौन से सबूत हैं, जिनको हासिल करने के लिए रविवार की शाम सीबीआई ने पुलिस कमिश्नर की आवाज में छापेमारी की कोशिश की. जवाब में राज्य पुलिस द्वारा सीबीआई अधिकारियों के साथ हाथापाई और अभ्रदता करना, पुलिसिया वर्दी के गहराते संकट को ही दर्शाता है. नए सीबीआई चीफ के पदग्रहण करने के पहले ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के घर में सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला, अब केन्द्र और राज्य के गले की हड्डी बन गया है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी जहां इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि सीबीआई ने पिछले पांच सालों में चिटफण्ड घोटाले के असल अपराधियों को क्या सजा दिलवाई और गरीबों को उनका पैसा कब मिलेगा?


(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)