आज समाज में चारों तरफ हिंसा, निराशा भय, एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की प्रवृति, तोड़-फोड़ गलत ढंग से सुविधा प्राप्त करने की चेष्टा करना, महिलाओं से अभद्र व्यवहार करना और बड़ों का अपमान करना आम सी बात हो गई है़. प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे पर दोषारोपण करता है. सत्यता को नकारा नहीं जा सकता कि किसी बीमारी के मूल कारण को जाने बिना कोई दवा लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकती. क्या कारण है जो समाज में इतनी अनुशासनहीनता दिखाई देती है?


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यदि मनुष्य की वंशावली उसके माता-पिता ही नहीं वरन उसकी कई पीढ़ियों में से किसी से भी निर्मित हो सकती है तो घरेलू वातावरण को भी इन सब कारणों के लिए नकारा नहीं जा सकता. घर में प्रथम गुरु माता-पिता छोटी-छोटी बातों के लिए मोह और प्रेम के वशीभूत होकर जब अपनी संतान की गलतियों को नजरअन्दाज करेंगें तो समाज में अवरोध ही पैदा होंगे. परिवारों में आज सन्तान को समान शिक्षा देने की जरुरत है.


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केवल बेटियां ही संस्कार लेकर बढ़ी हों ये आवश्यक नहीं है जरुरत है बेटे भी उच्च संस्कारी हों ,तभी सामाजिक ढांचा सुरक्षित रह सकता है. खेलकर आये पुत्र को खाना खिलाती मां हर कौर में यही कहती आयी है, मेरा राजा बेटा, मेरा चन्दा, कितना कमजोर हो गया है, मेरे लाल को किसी की नजर ना लग जाये. पुत्र जब अपने प्रति मां के ऐसे वर्ताव को देखता है तो उसका मन बहन से श्रेष्ठ होने का दावा करने लगता है. मां की कोमल भावनाओं और पिता के प्यार में वो अपने मन में पुरुष प्रधान सोच को बल देने लगता है. मां पापा मुझे बहन से ज्यादा प्यार करते हैं, आगे चलकर मुझे ही इनका सहारा बनना है. ये ही विचारधारा उसे उसके कार्यपथ से विचलित कर देती है.


उचित शिक्षा के अभाव में समाज दूषित होता चला जाता है. बचपन से ही माता-पिता को पुत्र को हर क्षेत्र में शिक्षा देनी होगी. घर में ही बहन का सम्मान करना, परिवार की खुशियों का ख्याल करना उसे आना चाहिये. सामाजिक,आर्थिक,चारित्रिक तथा नैतिक बातों की जानकारी देनी होगी. समाज का वातावरण सुरक्षित रहे इसके लिए जरुरी है कि बच्चा घर से ही जीवन निर्माण की बातें सीखे. घर में दी गयी शिक्षा बच्चों के भविष्य के लिए नींव का पत्थर सि़द्ध होगी.


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बचपन से ही मां पुत्र को रसोई से दूर रखती है. लड़का है इसे तो इंजीनियर, डॉक्टर ही बनना है इस सोच को छोड़कर घरेलू काम की जानकारी भी देनी होगी. बेटी की तरह से घर का हर काम सिखाना होगा. घर से बाहर ज्यादा घूमने पर टोकना भी होगा. शाम होते ही घर समय से लौट आये यह भी घ्यान रखना होगा. मुझे आज भी याद है कैसे बिन्दल साहब के चारों बेटे घर के कामों कुशल थे. उनकी पत्नी ने चारों बेटों को हर काम में कुशल बनाया, उनकी गलतियों पर भी वो हमेशा टोकती रहती थीं. घर की शिक्षा का ही असर है कि आज सभी बेटें ऊंचे पदों पर हैं और घर के भी सभी कामों में कुशल हैं.


बचपन में की गयी छोटी-छोटी गलतियों की सजा उसी समय मिल जाये तो समाज में वह गलती दोहरायी नहीं जायेगी. घर में ही बच्चे को जीवन के हर पहलू से अवगत कराना चाहिये. निश्चित समय पर होने वाले शारीरिक परिवर्तन की जानकारी भी बच्चे को देनी चाहिये. जिससे उसे घर में ही सही गलत की पहचान हो सके. आज भी जब उस बच्चे की याद आती है तो मन परेशान हो जाता है. ओज बचपन से ही शरारतें किया करता था, कभी किसी को मार देता, कभी किसी को काट लेता, कभी किसी की कोई वस्तु उठाकर ले आता, मां हंसकर टाल देती कभी पापा से भी शिकायत नहीं करती. ओज का हौसला बढ़ता गया. छोटी-छोटी शरारतें बड़ी गलतियां बनती गयीं. छुप-छुपकर पिक्चरें देखने लगा, पूछते तो मुकर जाता. देर से घर आता मां सोचती बच्चा है सुधर जायेगा, पर तब तक देर हो चुकी होती है. समाज के अच्छे-बुरे कामों में उसका मन रमने लगता है. एक दिन कहीं गया किसी हादसे का शिकार हो गया. मां अपने को कोसती रही, लेकिन बाद में पछताने से क्या होता है. अतः समय रहते ही जागरुक होने की आवश्यकता है. घरेलू वातावरण में ही अच्छे संस्कारों की नींव मजबूत हो सकती है. माता-पिता से शिक्षा प्राप्त करके कितने ही महामानव हुए हैं ,जिनसे ये संसार खुशहाल हुआ है. जरुरत है स्वच्छ व स्वस्थ घरेलू वातावरण की.