महिला... शब्द भी जिसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते
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महिला... शब्द भी जिसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते

वाणी जिसकी गरिमा का वर्णन नहीं कर सकती, शब्द जिसकी महिमा को बांध नहीं सकते जिसका व्याख्यान सृष्टि का कण-कण करता है, जो अपने त्याग, बलिदान व्यक्त्तिव से घर-परिवार समाज को आलोकित कर रही है, वह नारी किसी एक दिन की अवधि में सिमट कर अपने अस्तित्व का आभास कराए यह विरोधाभास ही है.

महिला... शब्द भी जिसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते

वाणी जिसकी गरिमा का वर्णन नहीं कर सकती, शब्द जिसकी महिमा को बांध नहीं सकते जिसका व्याख्यान सृष्टि का कण-कण करता है, जो अपने त्याग, बलिदान व्यक्त्तिव से घर-परिवार समाज को आलोकित कर रही है, वह नारी किसी एक दिन की अवधि में सिमट कर अपने अस्तित्व का आभास कराए यह विरोधाभास ही है. नारी सृष्टि की अनमोल रचना है, जो कोमल होते हुए भी विशाल मन, अद्वितीय तन व सहनशीलता की प्रतिमूर्ति है. अपनी मधुर मुस्कान से जीवन के हर पल की कटुता व खुशी को जीती वह न केवल स्वयं का जीवन व्यतीत करती है, बल्कि परिवार की हर खुशी व दुःख को आंचल में समेटे हर दायित्व के लिए कुर्बानियां देती आई है.

कभी घर की चारदीवारी में रहने वाली नारी ने अपने काम से, अपने अडिग विचारधाराओें से, अपने आकार को इस तरह से विस्तार दिया है कि संसार में उसकी पहचान का उत्सव नारी-दिवस के रूप में होने लगी है. घर से निकल कर जीवन के हर क्षेत्र में पर्दापण करती नारी अपने श्रेयस से किसी एक दिन को नहीं बल्कि हर दिन के लिए अपने महत्व को दर्शाती है. इत्र की खुश्बू के समान संसार का कोना-कोना आज नारी उपलिब्धयों की गाथा गा रहा है. नारी ममता की मूर्ति है तो अपने अधिकारों को पाने वाली दुर्गा भी है. वो जीवन के कष्टों को मौन होकर सहन करती है तो चंडी सा प्रहार करना भी जानती है, नारी हर दिन नए रूप के दर्शन करवाती है.

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अपने दिल में असंख्य कष्टों को समेटे हुए भी हर एक को खुशियां बांटने को आतुर नारी हर दिन वंदनीय है. नारी दिवस नारी को गौरवान्वित करने के लिए सहरानीय कदम है. सारे विश्व में नारी दिवस मनाना नारी की गरिमामयी उपस्थिति को दर्शाता है. आठ मार्च का दिन नारी की पहचान का दिन है. यह प्रकट करता है कि संसार में नारी ने अपने अस्तित्व को किस प्रकार से एक नई पहचान दी है. नारी के किए गए कार्यों की सराहना करना उसका सम्मान करना, उसके प्रति आभार प्रकट करना व विश्वस्तर पर नारी के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नारी दिवस का उददेश्य है.

नारी दिवस पर नारी के प्रति अपनी अभिव्यक्त्यिों को व्यक्त करना ही काफी नहीं हैं जरूरत है हर दिन नारी के सम्मान की. नारी का सहयोग समाज व राष्ट्र के निर्माण व विकास में सदा से ही रहा है. किसी भी देश व राष्ट्र की उन्नति की कल्पना महिलाओं के बिना अधूरी है, जो आज भी विवश जिन्दगी जीने को मजबूर हैं, जिन्हें समाज व कानून तो ऊपर उठाना चाहते हैं लेकिन परिवार की बंदिशे उन्हें आज भी बांधे हुए है. अपने अस्तित्व को प्रकाश में न ला सकने वाली महिलाएं स्वंय को जागरूक करें, महसूस करें बदलाव को, समाज की नूतनता को, नवीनता को, कानून के सम्बल को, जो उनके साथ है. फिर देखें किस प्रकार से विश्व नारी जागृति को नारी की उपलब्धियों को, उसके सम्मान को साकार रूप देने में एक जुट हो जाता है. 

नारी जननी है और पुरुषप्रधान समाज में वह भी समानता का अधिकार रखती है. विश्व स्तर पर उच्च पदों पर आसीन होने का उसे भी अधिकार है. अपने को पुरुष की तुलना में कम न आंके.

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पहचाने अपने को और पहचाने नारी शक्ति को. आज विभिन्न राजनीति के गलियारों में प्रवेश करके स्वयं को प्रतिष्ठित करना नारी ने जाना है. जल, थल, नभ, के कोनों से नारी जागृति के स्वर सुनाई देते हैं. विश्व नारी दिवस नारी की विभिन्न उपलब्धियों का दिवस है, जीवन बंधनों को तोड़ कर उनके परेशानियों से जूझकर भी नारी ने सम्मान को बनाए रखते हुए अपने पांव जमाए हुए हैं. लेकिन कहीं-कहीं महिलाओं को काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है. उन पर आज भी समाज का अंकुश है. जिससे उड़ानों की चाह उनके भीतर ही दब जाती है और उनका अस्तित्व कुचला जाता है.

महिला दिवस नारी गरिमा का दिन है. नारी को चाहिए वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों, अपनी आकाक्षाओं को अपनी मांगों को परिवार व समाज के दबाव में आकर कभी भी खत्म न होने दें. अपने स्वभिामान की रक्षा करते हुए अपने लिए भी जीना सीखें. त्याग, बलिदान, के दायरों को निभाते हुए उनसे ऊपर उठकर समाज में अपनी पहचान बनाएं, अपने मन की भावनाओं को उन अहसासों को महसूस करें जिन्हें परिवार के दबाव में दफन करती आई हैं.

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नारी की उपलब्धियां कभी भी कहीं भी कम नहीं आंकी जा सकती. सूर्य के प्रकाश सा ही है नारी का जीवन. जिस प्रकार सूर्य न निकले तो अंधेरा छा जाता है, ऐसे ही नारी वो प्रकाश स्त्रोत है जिसके बिना घर, समाज व राष्ट्र की आंखे धूमिल हो जाती हैं. नारी को आज सिसक-सिसक कर घुट-घुट कर जीवन जीने को मजबूर नहीं किया जा सकता. जो दूसरों को उजाला देती हैं वह स्वयं को अंधेरे में नहीं रखे. अपनी गुम हुई, खोई हुई आवाज को सुने, सम्माननीय नारी अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक रहे.

ऐसे परिवार जो नारी को सिर्फ जंजीरों में जकड़े रखना चाहते हैं, जो नारी को मात्र दासी मानते हैं, उसका तिरस्कार करते हैं, वे ये नहीं जानते कि नारी ही सृष्टि का शृंगार है. नारी दिवस नारी के सम्मान उसके पुरूष के ही समान अधिकारों का दिवस है. उसने सदा अपनी गरिमा की रक्षा करते हुए स्वयं को हर पल ही एक नया रूप दिया है. न सिर्फ महिला दिवस, बल्कि हर दिन नारी के बिना अधूरा है. नारी दिवस नारी जागरूकता का नारी के उन्नति का उसके सहयोग का व नारी के नव जागरण काल का प्रतीक है. महिला दिवस पर उस दिव्य, अनुपम, विधाता की आलौकिक कृति नारी के लिए हर वर्ग, हर देश, हर समाज हर गली व हर कूचे से एक ही आवाज गूंजनी चाहिए.

नारी तू विधाता की अनमोल रचना है कोई भी तेरा सानी नहीं,
वक्त ने करवट बदल ली है, नारी तू भी छुपा ले आंखों का पानी कहीं
सिसकने को तड़पने को नहीं मिली है ये जिन्दगानी तुझे
सम्माननीय हो सम्मान पाने की हो अधिकारिणी तुम्हीं
अबला नहीं सबला हो सशक्त पहचान बनाई है,
विश्व की ऊंचाइयों को छूने की तुमने जो सेाच बनाई है.
वक्त रहते न पीछे हटना तुम्हीं में तो सृष्टि समाई है. 
महिला दिवस की अधिकारिणी हो नारी हो नारित्व की बधाई है.

(रेखा गर्ग सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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