केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने भारत में ‘मी टू’ अभियान के शुरू होने पर खुशी जताते हुए कानून में बदलाव की मांग की है. कार्यक्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा के लिए 2013 में पारित कानून के अनुसार यौन उत्पीड़न की घटना के 3 महीने के भीतर पीड़ित महिला द्वारा शिकायत दर्ज कराया जाना चाहिए. मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत बालिग होने पर बाल उत्पीड़न का मामला दर्ज कराना कठिन हो जाता है. मेनका गांधी के मंत्रालय ने कानून मंत्रालय को लिखा है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत किसी भी समय दर्ज कराने की व्यवस्था होनी चाहिए. केन्द्र सरकार के एक मंत्री के सख्त बयानों के बावजूद मी टू के आरोपी मंत्री एम.जे. अकबर की कुर्सी पर आंच क्यों नहीं आ रही?


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सुप्रीम कोर्ट का आदेश और तमाम एप्प के बावजूद रेप की एफआईआर दर्ज नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सन 2013 में ललिता कुमारी मामले में फैसला देते हुए कहा था कि रेप जैसे गम्भीर मामलों में पुलिस द्वारा एफआईआर जरूर दर्ज होनी चाहिए. दूसरी तरफ झूठी शिकायतों के मामले में झूठे आरोप लगाने वाली महिला के विरूद्ध भी ब्लैक मेलिंग और मानहानि का मामला दर्ज होना चाहिए. मी टू अभियान में रेप जैसे संगीन मामलों का सोशल मीडिया से खुलासा होने के बावजूद किसी भी पुलिस थाने द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं करना आश्चर्यजनक है.


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मी टू के यौन अपराधियों का भी राष्ट्रीय रजिस्टर बने
निर्भया कांड के बाद प्रोमिला शंकर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यौन अपराधियों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने की मांग की गई थी. केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (एनसीआरबी) के साथ मिलकर पिछले महीने इस प्रोजेक्ट की शुरूआत भी कर दी है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए जवाब के अनुसार कार्यक्षेत्र में महिलाओं के उत्पीड़न के पिछले वर्ष 570 मामले दर्ज किए गए थे. मी टू के पुराने मामलों में 2013 का कानून लागू नहीं हो सकता, परन्तु नए मामलों की संख्या भी काफी ज्यादा हो सकती है. कार्यक्षेत्र में प्रताड़ित करने वाले कुछ दरिंदों की वजह से सभी महिलाओं में असुरक्षा और निराशा की भावना पूरे देश के सभ्य समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है. पढ़ी-लिखी बेटियों का कार्यक्षेत्र में सम्मान बचाने के लिए क्या मी टू के भूखे भेड़ियों का राष्ट्रीय रजिस्टर भी अब बनेगा?


नेताओं की आपराधिकता की पब्लिसिटी के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश
देश में 36 फीसदी से ज्यादा विधायक और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं. देश में छोटे मामलों में अध्यादेश लागू करने का रिवाज है, पर दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है. दागी नेताओं से संविधान और कानून के तहत सुशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और सभी राजनैतिक दलों से ऐसे नेताओं के आपराधिक मामलों की पब्लिसिटी करने का आदेश दिया है, जिससे जनता को जागरूक किया जा सके. इसी तर्ज पर महिलाओं को प्रताड़ित करने वाले कुख्यात लोगों की जानकारी जनता को क्यों नहीं मिलनी चाहिए?


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मेनका के प्रकोप के बावजूद अकबर का सिंहासन क्यों नहीं डोलता
मेनका गांधी के मंत्रालय ने 2013 के कानून को लागू करने के लिए एक हैण्डबुक का प्रकाशन किया है. भ्रूण हत्या रोकने के लिए गर्भवती महिलाओं की अनिवार्य जांच रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय रजिस्टर की योजना का सुझाव भी मेनका गांधी द्वारा दिया जा चुका है. सोशल मीडिया में महिलाओं की ट्रॉलिंग को रोकने के लिए मेनका गांधी ने हैल्प डेस्क भी बनाई थी. मी टू की पीड़ित महिलाओं के प्रति मेनका गांधी के समर्थन के बावजूद एम.जे. अकबर मामले पर सरकार की चुप्पी से लोगों में हताशा है. अदालतों में जटिल प्रक्रिया और देरी से न्याय की वजह से भारत में अधिकांश पीड़ित लोग पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने से कतराते हैं.


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दूसरी ओर गलत आरोपों पर कठोर दण्ड और जुर्माना नहीं लगने से झूठे मुकदमों से निरीह लोगों को भी बेवजह फंसाया जाता है. बच्चों के साथ रेप मामलों में फांसी की सजा के लिए निचली अदालतें उतावली रहती हैं, परन्तु वीआईपी मामलों में कानून की प्रक्रिया ठप्प होने के कारण महिलाओं को सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ता है. एम.जे. अकबर के खिलाफ लगे अधिकांश आरोप मंत्री बनने के पहले के हैं और मौजूदा कानून के तहत वे मंत्री पद पर बने रह सकते हैं.


फिल्म इंडस्ट्री के बड़े सुपर स्टार आमिर खान ने आगामी फिल्म मुगल को छोड़ने का निर्णय लिया है, क्योंकि इसके डायरेक्टर सुभाष कपूर के खिलाफ भी यौन शोषण का मामला सामने आया है. फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विरुद्ध जब जीरो टॉलरेंस की बात हो रही है तो फिर सरकार में गवर्नेन्स का यह नियम क्यों न लागू हो? मेनका गांधी द्वारा मी टू के समर्थन के बाद क्या अब अकबर को नैतिक कारणों से मंत्री पद का सिंहासन छोड़ना होगा?


(लेखक विराग गुप्‍ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)