वर्तमान की मूलभूत आवश्यकता है हर घर-परिवार में किसी भी एक व्यक्ति का रोजगार जरुर बना रहे. महंगाई के दौर में घर का हर सदस्य काम से लगा रहे, आजीविका का साधन बना रहे, तभी परिवार चलता है. हर घर को एक नौकरी मिल जाये तो हिन्दुस्तान से गरीबी ही समाप्त हो जाये और किसी को रोटी की चिंता के लिए परेशान नही होना पड़े. आज के समय में रोजगार मिलना इतना आसान नहीं, उस पर लगा-लगाया काम छूट जाये तो उस परिवार की कठिनतम घड़ी का अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वे किस प्रकार अपना जीवन-यापन करेंगे. कम आमदनी में कम खर्च करके तो जीवन चलाया जा सकता है पर आमदनी के अवसर ही बन्द हो जाएं तो जीना दूभर हो जाता है.


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हिन्दुस्तान की गरीबी दूर करने के लिए मतगणना, जनगणना व जातिगणना से ज्यादा जरुरी है रोजगार गणना. किस घर की क्या जरुरत है, किस घर में कितने प्राणी कमाते हैं, जो घर रोजगार से रहित है वहां कैसे रोजगार उपलब्ध कराया जाए. यह आज के समय की प्राथमिकता होनी चाहिए. कभी अखबार की सुर्खियां होती हैं कि गरीबी से तंग आकर परिवार ने खुदकशी कर ली, कभी बच्चों को ही खाना खिलाकर कई बार माता-पिता भूखे सो जाते हैं. कभी थके मांदे घर आने पर बच्चों की खाली निगाहें पूछती हैं कि कोई काम मिला या नहीं, कभी शिथिलता से कपड़े बदलते देखकर आशंकित हिरनी सी पत्नी दबी जुबान से पूछती है, क्या हुआ आज बहुत थके से दीख रहे हो. और पति कहता है, बॉस ने निकाल दिया है.


उफ! कितनी पीड़ा, कितना दर्द, कितना आशंकित जीवन जीते हैं कुछ लोग. सारी जिंदगी सांसों का बोझ ढोते-ढोते, परिवार का पालन करते-करते जब एक पल ऐसा आ जाए कि सब कुछ खत्म हो गया तो आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है. सामान्य व्यक्ति रोजगार के अवसर खोजता हुआ जिस दिशा में बढ़ता है वहीं उसका ठहराव हो जाता है. लगता है इस आजीविका से ही जीवन कट जायेगा. पर जब वही रोजगार छिन जाए तो हिम्मत जवाब दे देती है. पेट भरा हो तो नींद में सपने बड़े सुखदायी होते है, किन्तु खाली पेट नींद आ जाए ये तो सम्भव ही नहीं. गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाले असंख्य परिवार विभिन्न त्रासदियों को झेलते हुए जीवन का एक-एक दिन व्यतीत करते हैं. मुंह का एक-एक निवाला निगलते हुए भी भविष्य की भूख से आतंकित रहते हैं. साधन-संपन्न जीवन जीने वाले उस अहसास को कभी महसूस ही नहीं कर सकते.


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ऊंचे-ऊंचे ओहदों पर पहुंचे व्यक्ति आज मन से कितने छोटे हो गए हैं, यह कदम-कदम पर देखने को मिलता है. उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को अहसास ही नहीं होता कि किसी की छोटी सी नौकरी भी उस शख्स के लिए कितनी जरुरी है. आज का युग न केवल गरीबों की समस्याओं का युग है, बल्कि अमीरों के अहंकार का भी युग है. छोटा-छोटा काम करके जीवन गुजारने वाला कब किस अमीर की कुदृष्टि का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता.


आज भी हर वर्ग का गरीब, अमीरों के आगे स्वयं को बौना महसूस करता है. सहायता करनी तो दूर लोग गरीबों की जिंदगी में बदलाव लाने की भी नहीं सोच पाते.


हमारे एक परिचित हैं. कहीं किसी कम्पनी में काम करते थे. किसी कारणवश उन्हें काम पर आने को मना कर दिया. उन्होंने कई दिन इंतजार किया, पर काम पर वापस नहीं बुलाया. उनके साथ हुए इस कृत्य का असर पूरे परिवार पर पड़ा. तीन बच्चों का खर्च, उनकी पढ़ाई की फीस व खाने-पीने की वस्तुओं से भी वे परेशान रहने लगे. आकस्मिक आई इस आपदा से वे उबरने का साहस ही नहीं जुटा पा रहे थे. कैसे कोई अन्य काम करते, बच्चों के बढ़े खर्चों से आमदनी का एक-एक पैसा खर्च होता रहा. अचानक छूटी नौकरी ने उनकी कमर ही तोड़ दी. इस उम्र में काम ढूंढने में ही महिनों लग जाएंगे. फिर काम चले या ना चले, असमय की इस पीड़ा से आहत उन परिचित का हाल बयान नहीं किया जा सकता. पर जिन्होंने उनके विषय में यह निर्णय लिया वे अनभिज्ञ हैं कि किसी के जीवन की आजीविका छीनकर उन्होंने उसके जीने के सारे अधिकार ही छीन लिए हैं. उन अधिकारियों की एक ना ने उनका जीवन अभिशप्त बना दिया है.


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पैसे की सत्ता और पद के अभिमान में निर्णय लेने वाले व्यक्ति ये क्यों भूल जाते हैं कि उनका निर्णय किसी के लिए कितना दुखदायी हो सकता है. आज के समय में काम मिलना कितना मुश्किल है. अधिनस्थ की खुशियां छीन लेने वालों को भी उस अज्ञात शक्ति का भय होना चाहिए, जिसे ईश्वर कहते हैं. अहंकार किसी के जीवन का हिस्सा नहीं होना चाहिए. जीवन में मानवीय संवेदनाओं को हर क्षण प्रमुखता देनी चाहिए.


यदि हम किसी को कुछ दे नहीं सकते तो उससे लेने का भी हमें अधिकार नहीं होना चाहिए. कभी कम आमदनी में घर का खर्च चल जाया करता था, पर आज हर आदमी अमीर दिखता है फिर भी गरीबी कम नहीं है. गरीबों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है. महंगाई के इस दौर में वह किन तकलीफों से गुजर रहें हैं, उनके बच्चे कैसे जीवन यापन कर रहे हैं, इस तकलीफ से सब अंजान हैं. मंदिरों में चढ़ावे के नाम पर दान पर दान दिया जा रहा है, पर गरीबों को उस चैखट पर भी कुछ नहीं मिलता. कितना अजीब सा संजोग है जिस परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए दान दिया जाता है, उसी के बंदों की उपेक्षा की जाती है.


कितना विरोधाभास है हर क्षेत्र में. गरीब के ही हिस्से में जीवन की कठिनताएं क्यों हैं. भारत के हिस्से में इतनी गरीबी तो नहीं होनी चाहिए. कदम-कदम पर हर व्यक्ति की सहायता करनी तो असंभव है पर जीने के अधिकार तो सबको मिलने चाहिए. दो वक्त की रोटी से तो कोई मोहताज नहीं होना चाहिए. जीवन की सार्थकता किसी के लिए कुछ करने में है, किसी गिरते को उठाने में है, किसी असहाय की सहायता करने में है. सभी इनसान एक स्तर का जीवन कैसे जी पाएं, ये सोचना होगा. कोई भूखा ना सोए, इतना तो हो ही सकता है. काश कि खुशियां सबके दामन में हों वह दिन कब आएगा.