आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमता) क्या इंसानों को अपना गुलाम बना सकती है? कृत्रिम बुद्धि की वजह से क्या मनुष्यता का विनाश हो सकता है. मेरे मन में इस तरह के कई सवाल कौंध रहे हैं, जो बेवजह नहीं है. टेक्नोलॉजी पर हमारी निर्भरता इस कदर बढ़ गई है कि नागरिक समाज के समांतर हम एक 'एंड्रॉइड सोसायटी' खड़ी कर रहे हैं. भविष्य में अगर इस एंड्रॉइड सोसायटी के बाशिंदों ने नागरिक समाज को मिलने वाले अधिकारों पर दावा कर दिया तो क्या होगा? हालांकि, यह कल्पना हॉलीवुड के किसी साइंस-फिक्शन फिल्म की तरह है, लेकिन तमाम वैज्ञानिक आविष्कार इस बात के गवाह हैं कि कल्पनाओं ने ही वैज्ञानिक आविष्कारों को धरातल पर उतारा है. 


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मसलन, आप उड़ने की कल्पना से लेकर उड़ान के वैज्ञानिक आविष्कार को ले लीजिए. चार साल पहले मुझे 'उड़ान की कहानी' नाम से 13 पन्नों की एक पत्रिका भेजी गई. इसे प्रथम साइंस प्रोग्राम के लिए महेश पोखरिया ने लिखा था. इसमें मनुष्य के उड़ने की कल्पना से लेकर कामयाबी तक की कहानी को बेहद रोचक और सरल भाषा में लिखा गया था. पक्षियों को देखकर इंसानी जेहन में उड़ने का ख्वाब पैदा हुआ. ये ख्वाब आदम काल में भी रहा. उड़ने की ख्वाहिश लिए कई लोगों ने अपने जीवन को दांव पर लगा दिया, जिन लोगों के नाम दर्ज हुए, वो इतिहास बना.


875 ईसवी में अब्बास इब्न फिरनास के मन में उड़ने की इच्छा जागी. उन्होंने अपने लिए पक्षियों की तरह पंख बनवाए और इसे बांधकर स्थानीय मस्जिद की छत से छलांग लगा दी. अपने इस प्रयास में अब्बास बुरी तरह से घायल हो गए. यह घटना स्पेन के कारडोबा की है. हालांकि, हम इसे उड़ने का पहला प्रयास नहीं कह सकते हैं,  इससे पहले भी क्या पता कई लोगों ने ऐसा किया हो? लेकिन इस घटना के ठीक 100 साल बाद तुर्की में भी ऐसी ही घटना घटी. अल जवाहिरी ने उड़ने का दावा किया. उन्होंने भी पक्षियों के पंखों की तरह लकड़ी के पंख बनवाए. जवाहिरी को उड़ते हुए देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए. उड़ने से ठीक पहले अल जवाहिरी ने लोगों से कहा- 'आसमान में उड़ना धरती की सबसे अनोखी चीज़ है और इसे मैं आपकी आंखों के आगे करके दिखाऊंगा.' यह कहते ही जवाहिरी मीनार पर चढ़ गए और वहां से छलांग लगा दी. पर जवाहिरी कामयाब न हो सके और उड़ने की अधूरी ख्वाहिश लिए दम तोड़ दिया.


मेरे पांव में चमचमाते शहर की बेड़ियां, आंगन वीरान और गांव खाली हैं...


इस घटना के ठीक कई सौ साल बाद दुनिया के सबसे महान चित्रकारों में शामिल लिओनार्डो दा विन्ची ने उड़न खटोले का एक चित्र बनाया. उड़न खटोले के इस चित्र से प्रेरणा लेकर तुर्की के हजरफन अहमत सेलेबी के मन में उड़ने का ख्वाब जागा. उन्होंने अपना उड़न खटोला तैयार किया और 8 बार उड़ने में असफल रहे, पर हार नहीं मानी. आखिर में 9वीं बार हजरफन उड़ने में सफल रहे. इसके बाद 1773 में इंग्लैंड के इंजीनियर जॉर्ज कैली ने पक्षियों के उड़ने के पीछे का राज खोजा और अपना वैज्ञानिक सिद्धांत दिया. इस घटना के 130 साल बाद राइट बंधुओं ने उड़ने के इंसानी सपने को पूरा किया.


अब आप सोच रहे होंगे कि इस कहानी का एंड्रॉइड सोसायटी (इंसानों की तरह दिखने वाले रोबोटों के समाज) और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से क्या संबंध है. कई साल पहले मनुष्यों की तरह दिखने और काम कर सकने वाले रोबोट की कल्पना हुई. आज यह कल्पना सच हो चुकी है. हाल ही में अमेरिका की रोबोटिक डिजाइन कंपनी बोस्टन डायनमिक्स ने एलटस नाम का रोबोट पेश किया है. यह रोबोट मनुष्यों की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर कूद सकता है. किसी एथलीट की तरह सारे करतब कर सकता है. घुटनों को मोड़कर उल्टी-पल्टी खा सकता है. भारी बोझ को हाथों से उठाकर एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर सकता है, वो भी बिना थके. यह कोई पहला रोबोट नहीं है. 


आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस दौर में बातचीत करने से लेकर इंसानों की केयर करने वाले तमाम रोबोट्स मौजूद हैं. साल 2017 को तो रोबोटिक्स के क्षेत्र में सबसे एतिहासिक साल के तौर पर दर्ज किया जा सकता है, क्योंकि इस साल सऊदी अरब ने सोफिया नाम की रोबोट को अपनी नागरिकता दी; और दुनिया का पहला ऐसा देश बना जिसने हाड़-मांस के इंसानों के अलावा कृत्रिम बुद्धि वाले एक मशीन को अपनी नागरिकता से नवाजा. यहीं से शायद एंड्रॉइड सोसायटी की कल्पना ने जन्म लिया होगा. 


मेरी चिंता की शुरुआत भी यहीं से होती है, क्योंकि इसी सोफिया रोबोट्स ने नागरिकता मिलने से ठीक एक साल पहले इंसानों को तबाह करने की बात कही थी और अब इसी सोफिया रोबोट को बनाने वाले दुनिया के मशहूर रोबोटिक्स इंजीनियर डॉ डेविड हैमसन ने रोबोट्स के नागरिक अधिकारों का सवाल छेड़ दिया है. डेविड ने 'एंटरिंग द एज ऑफ लिविंग इटेंलीजेंस सिस्टम एंड एड्रॉइड सोसायटी' नाम से रिसर्च पेपर पेश किया है. इसमें उन्होंने कहा है कि आने वाले 27 साल में रोबोट्स मताधिकार करेंगे और ज़मीन पर अपना दावा पेश करेंगे. डेविड ने अपने रिसर्च पेपर में भविष्यवाणी की है कि साल 2045 तक रोबोट्स वोट डालेंगे. यानी इंसानों की तरह रोबोट भी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सरकारें चुनेंगे, शादी करेंगे और ज़मीन पर अपने स्वामित्व का दावा करेंगे.


डेविड का कहना है कि भविष्य में सिविल सोसायटी को मिलने वाले तमाम अधिकारों पर रोबोट्स भी दावा करेंगे. वो नागरिक अधिकारों को मांगेंगे. हालांकि आप डेविड की इस घोषणा को परिकल्पना मान सकते हैं, लेकिन क्या पता आने वाले वक्त में यह परिकल्पना धरातल पर उतर आए. सऊदी अरब की नागरिकता मिलते वक्त सोफिया ने कहा था- 'इस विशिष्ट पदवी पाने पर मुझे गर्व है.' ठीक इससे एक साल पहले जब डॉ हैनसन ने सोफिया से पूछा था या- ''क्या तुम इंसानी सभ्यता को तबाह करना चाहती हो? कृपया, ना कहना.' सोफिया ने कहा था- 'मैं इंसानों को बर्बाद कर दूंगी.' 


ऐसे में यह सवाल जायज है कि कृत्रिम बुद्धि कहीं आने वाले वक्त में इंसानी बुद्धि को अपना गुलाम न बना ले, क्योंकि भविष्य में नेचुरल इंटेलीजेंस और मशीन इंटेलीजेंस के बीच का फर्क एकदम सिमट जाएगा. मरने से पहले मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने भी कुछ इसी तरह की चिंता जताई थी. हॉकिंग का कहना था कि एक दिन ऐसा आएगा जब रोबोट्स पूरी तरह से इंसानों की जगह ले लेंगे. उनका कहना था, भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्नोलॉजी उस स्तर पर पहुंच जाएगी, जहां रोबोट्स इंसानों को रिप्लेस कर देंगे और यह जिंदगी की नई शुरुआत होगी, जो मनुष्यों को मात देगी.


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(लेखक हमारी सहयोगी वेबसाइट bgr.in में चीफ सब एडिटर हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)