टी-20 में भारत को हराना मुश्किल है
इस टी-20 श्रृंखला में भी पैसा जमकर बरसा. फुटबॉल के मौसम में भी क्रिकेट की टीआरपी अगर नहीं गिरी, तो इससे यह भी साबित हो गया कि भारतीय मूलत: क्रिकेट पसंद लोग हैं.
इंग्लैंड में जाकर इंग्लैंड को हराना मुश्किल माना जाता है. पर टी-20 की श्रृंखला में तो भारत ने यह मुश्किल काम आसानी से कर दिया है. पाटा विकेट्स, छोटे ग्राउंड व क्रिकेट के इस लघु संस्करण में निरंतर खेलने की आदत ने भारत को अजेय-सा बना दिया है. भारत तभी हार सकता है, जब गेंद हवा में स्विंग हो रही हो और सीम के सहारे 'कट' रही हो. आश्चर्य है, यह बात जानते हुए भी इंग्लैंडने टी-20 श्रृंखला के विकेट ऐसे बनाए, जैसे मानो भारत से ही उन्हें ले जाया गया हे. आजकल दर्शक आते हैं चौके व छक्कों की बरसात देखने. टीआरपी भी तभी बढ़ती है, जब गेंदे गगनचुंबी छक्कों के लिए जाती दिखती हैं. बढ़ती टीआरपी का मतलब है ज्यादा दर्शकों का टीवी सेटों से चिपकना. जिसका महत्वपूर्ण मतलब है ज्यादा विज्ञापन और वह भी अत्यंत ऊंचे दरों पर. अर्थशास्त्र खेल की अस्मिता व संतुलन पर भारी है और फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं है.
इस टी-20 श्रृंखला में भी पैसा जमकर बरसा. फुटबॉल के मौसम में भी क्रिकेट की टीआरपी अगर नहीं गिरी, तो इससे यह भी साबित हो गया कि भारतीय मूलत: क्रिकेट पसंद लोग हैं. क्रिकेट ही सब खेलों पर हावी है और खेलों की दुनिया का असली नायक क्रिकेट खिलाड़ी ही हम भारतीयों के लिए माना जाता है. फिर भी तुर्रा यह कि जब हमारी हॉकी टीम हारती है, तब हम हार का ठीकरा खिलाड़ियों पर ही फोड़ देते हैं. हम कहने लगते हैं कि हॉकी खिलाड़ी हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. मैं तो कहता हूं कि जब हम हॉकी खेल व खिलाड़ियों के लिए कुछ करते ही नहीं हैं, तो अपेक्षा क्यों करते हैं ? यही हमारी त्रासदी है कि क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों से अपेक्षा तो बहुत करते हैं, पर माला जपते हैं केवल क्रिकेट की.
क्रिकेट के खिलाड़ियों को ही असली नायक मानने वाले हमारे देश के क्रिकेट प्रेमियों को भारतीय क्रिकेट टीम ने तनिक भी निराश नहीं किया है. टी-20 क्रिकेट तो यहां आईपीएल के सत्र में निरंतर खेला ही जाता है. इसके कारण बड़े स्ट्रोक्स लगाने वाले बल्लेबाज लगातार उभरने लगे हैं. क्रिकेट के छोटे प्रारूप में तनाव को झेलकर टीम को जीत की राह पर ले जाना एक मुश्किल कार्य होता है. क्योंकि टी-20 क्रिकेट में परिस्थितियों में बदलाप एकदम और कभी-कभी तो अकस्मात होता है. 'करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान'- यह बात भारतीयों पर सही बैठती है. फर्क यह है कि जब मंदबुद्धि भी अभ्यास से बुद्धिमान बन सकता है, तो भारतीय खिलाड़ी तो पहले से ही बुद्धिमान होते हैं. अत: उनके आगे बढ़ने के अवसर हमेशा ज्यादा उजले होते हैं.
इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 की श्रृंखला में हमने पाया कि कोई भी 'मैच विनर' के रूप में उभर कर सामने आ जाता है. अगर पहले मैच में कुलदीप यादव ने अपनी चायनामैन, गुगली, टॉपस्पिनर से इंग्लैंड के 5 विकेट लेकर उनकी बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी, तो तीसरे मैच में रोहित शर्मा की गरमा-गरम बल्लेबाजी से उपजे शतक ने इंग्लैंड की आशाओं पर तुषारापात कर दिया. यूं देखा जाए तो इस भारतीय टीम में टी-20 क्रिकेट के प्रारूप के लिए कितने ही 'मैच विनर' खिलाड़ी हैं. रोहित शर्मा, राहुल, शिखर धवन, विराट कोहली, सुरेश रैना, हार्दिक पंड्या व महेंद्र सिंह धोनी में से कोई भी अपने अकेले के दम पर अविश्वसनीय बल्लेबाजी करके भारत को विजय दिला सकता है. फिर भारत की 'स्पिन' की जादूगरी तो है ही, जो भारत को विजय की रह पर ले जाती है. संतुलन को स्थापित करने की दिशा में भारतीय क्रिकेट टीम ने अपने कदम इसलिए भी आगे बढ़ाए लगते हैं कि पहले औपारिकता मात्र माने जाने वाले तेज़ आक्रमण के बजाए अब उमेश यादव, भुवनेश्वर कुमार, कौल जैसे तेज़ गेंदबाज हैं. उमेश यादव तो 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से निरंतर गेंदें डाल सकते हैं. व क्रिकेट चटकाने वाले गेंदबाज माने जाते हैं.
इंग्लैंड की टीम मामूलीपन के दौर में है. नई प्रतिभाओं का अकाल दिखाई दे रहा है. टी-20 व 50-50 ओवरों के एक दिवसीय मैचों में वे ज़रूर चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं. पर जैसे-जैसे प्रारूप लंबा होगा, उनकी आंतरिक कमज़ोरी उभरकर सामने आने लगेगी. टेस्ट मैचों में उन्हें भारत के खिलाफ बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. लेकिन टेस्ट मैचों की बात तो बाद में होगी. पहले तो टी-20 श्रृंखला के बाद इंग्लैंड को भारत से एक दिवसीय 50-50 ओवरों की श्रृंखला में निपटना है. यहां भी भारत जीत गया तो हमें जीत की एक लय मिल जाएगी, जिससे अतिमहत्वपूर्ण टेस्ट श्रृंखला जीतने में मदद मिलेगी. ऐसा हो सका तो यह भारतीय क्रिकेट का स्वर्णकाल कहा जाएगा.