एक पेड़ के नीचे खरगोश सो रहा था. अचानक उसे धड़ाम की आवाज़ आई तो वो चौंक कर उठा और घबराकर बेतहाशा दौड़ने लगा. उसे इस तरह दौड़ता देख कर एक बंदर ने उससे पूछा कहां भाग रहे हो. खरगोश बगैर रुके दौड़ते हुए बोला तुम भी भागो, धरती फट गई है. खरगोश की बात सुनकर बंदर भी उसके पीछे भाग लिया. आगे चलकर उन्हें एक हिरण मिला बंदर ने उसे भी यही बताया कि धरती फट गई है. और इस तरह उनके पीछे हिरण भी हो लिया. इस तरह वो भागते जा रहे थे और रास्ते में जो कोई भी जानवर उनसे भागने की वजह पूछता तो वो बगैर रुके उसे भी यही बता देते की धरती फट गई है. इस तरह एक के पीछे एक कई जानवर भागते जा रहे थे. तभी उन्हें एक लोमड़ी मिली उसने सबसे पीछे भाग रहे जानवर से भागने की वजह पूछी. उसे भी मालूम चला कि धरती फट गई है, इसलिए वो जान बचाकर भाग रहे हैं. लोमड़ी ने सबसे पीछे वाले जानवर से जानना चाहा कि उसे धरती फटने की जानकारी किसने दी तो उसने आगे वाले की तरफ इशारा कर दिया. इस तरह आगे बढ़ते –बढ़ते लोमड़ी खरगोश के पास पहुंची, जिसने सही में धरती फटने की आवाज़ सुनी थी. लोमड़ी ने उस जगह के बारे में जानकारी ली जहां धरती फटने की आवाज़ हुई थी. खरगोश काफी ना नुकर के बाद उसे वहां ले जाने के लिए राजी हो गया. जब वो वहां पहुंचे तो देखा कि धरती नहीं फटी थी, वो जिस पेड़ के नीचे सो रहा था उसका फल ज़मीन पर गिरा था, जिसकी आवाज़ ने उसे चौंका दिया था. अफवाह औऱ खबर में यही अंतर होता है.


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सोशल मीडिया मंच से भ्रामक सूचनाएं फैलाए जाने से चिंतित सरकार ने कहा कि लोगों को भड़काने वाले फर्जी संदेशो के आदान-प्रदान में वॉट्सएप का दुरुपयोग अस्वीकार्य है. हाल ही कुछ जगह लोगों की पीट पीट कर हत्या करने के मामले सामने आए थे. इसके लिए वॉट्सएप के ज़रिये फैलाए गए भड़काऊ संदेशों को कारण बताया जा रहा है. सरकार ने इस बारे में वॉट्सएप को नोटिस भी जारी किया .


भीड़ की हत्या का ठीकरा Whatsapp पर फोड़कर कौन अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है


किसी बात के पता चलने पर उसे दूसरे तक पहुंचाने की जल्दी इंसानों को शुरू से ही रही है. पहले संसाधन कम थे तो अफवाह फैलते फैलते वक्त लग जाता था. फिर इंसानों ने अपनी बेबसी को खत्म करने के लिए सोशल मीडिया जैसी तकनीक को बनाया. अब वो घर बैठे-बैठे किसी के भी घर में आग लगा सकते हैं. और लगा भी रहे हैं. पहले ये काम एक दूसरे के कान में बोल कर किया जाता था अब ये काम खुले आम सोशल मीडिया पर प्रसारित करके किया जाता है.


अबे जो हमने सोच लिया वही सच है
1972 में आई फिल्म ‘संजोग’ में एक किरदार है, जिसे इधर की उधर करने की बुरी आदत है. फिल्म में वो जिस दफ्तर में काम करता है वहां नायक क्लर्क है और नायिका उसी दफ्तर में कलेक्टर बन कर आती है. दोनों किसी जमाने में एक दूसरे से प्रेम किया करते थे, लेकिन संयोग ऐसा बनता है कि दोनों मिल नहीं पाते हैं औऱ अलग हो जाते हैं. दोनों को लेकर दफ्तर में भी बात होने लगती है, जिसे हवा वही किरदार देता है, जिसे इधर की उधर लगाने की आदत है. फिल्म में एक दृश्य है, जिसमें नायक अपनी पत्नी के साथ मंदिर जाता है औऱ संयोग से नायिका भी अपने बेटे के साथ उसी मंदिर में पहुंचती है. वहां दोनों का आमना-सामना होता है. दोनों एक दूसरे से किनारा करते हुए निकल जाते हैं. अफवाह फैलाने वाला किरदार इस पूरी घटना को देखता है और दफ्तर में जाकर अपने सहयोगी के कान में बताता है कि किस तरह आज नायक और नायिका मंदिर में मिले औऱ दोनों एक दूसरे को देखकर ठिठके, एक दूसरे को देखा फिर दूसरे को देखकर ठिठके, फिर आगे बढ़े. इन बातों के साथ वो ये भी बात जोड़ देता है कि, दोनों फिर रुके एक दूसरे को पलट कर देखा और आगे बढ़ गए. वो कर्मचारी अगले व्यक्ति को यही जानकारी देता है लेकिन फिर एक बदलाव के साथ. आज मंदिर में नायक नायिका मिले, एक दूसरे को देखकर ठिठके, आगे बढ़े, फिर रुक कर पलटे फिर एक दूसरे के करीब आने को हुए तो नायक की पत्नी और नायिका का बेटे उन्हे खींच कर दूर ले गया.


सरकार की चेतावनी के बाद अफवाहों पर रोक लगाने के लिए WhatsApp ने दी यह सफाई


आगे यही बात घूम कर उसी किरदार के पास पहुंचती, जिसने इसकी शुरूआत की थी. उसे मालूम चलता है कि नायिका और नायक मंदिर पहुंचे, वहां एक दूसरे को देखकर ठिठके, आगे बढ़े फिर पलटे, फिर रुक कर एक दूसरे की तरफ देखा फिर उनके घरवाले उन्हें खींच कर दूर ले गए, और उन्होंने अपने घरवालों का हाथ छुड़ाया और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नाचते हुए निकल गए. खबर देने वाले किरदार के कान में जब ये बात आती है तो वो हंस कर बोलता है ‘कमाल है, मैने तुम्हें कच्चे चावल दाल दिये थे तुमने मसाला डाल कर मुझे ही खिचड़ी खिला दी.’ अफवाह फैलाने वाला किरदार जब अपने किसी साथी को कोई बात बताता है और सामने वाला पूछता है कि ये सच है तो वह यही बोलता है कि अबे जो हमने सोच लिया वही सच है.


सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड की परंपरा निभाने वाले अधिकांश लोग अक्सर एक ही जैसी मानसिकता वाले होते हैं और वो इसी मानसिकता के साथ अपनी सोच को सच मानकर आगे बढ़ाते रहते हैं. इसमें कुछ लोग कमज़ोर कड़ी का काम करते हैं, जिनके हाथ में तकनीक तो लग गई है, लेकिन उनकी समझ अभी इसके हिसाब से थोड़ी कच्ची है और वो ये मान कर चलते हैं कि जिस तरह अखबार या न्यूज चैनल में गलत खबर नहीं आती है. उसी तरह सोशल मीडिया पर मिलने वाली जानकारी भी सौ फीसदी सच होती है.


कितनी बार वॉट्सएप पर फॉरवर्ड मैसेज आता है जिसमें एक बच्ची जिसका मुंह बुरी तरह जला हुआ है वो एक आदमी के साथ है. तस्वीर के नीचे लिखा रहता है कि इस लड़की ने मोबाइल चार्जर की पिन को मुंह में ले लिया था औऱ करंट से इसका ये हाल हुआ. आप भी ध्यान ऱखें और इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा फॉरवर्ड करें. अगले ही दिन आप यही तस्वीर अपने फेसबुक पेज पर देखते हैं जिसके नीचे लिखा होता है कि ये बच्ची किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और इसके पिता के पास इलाज का पैसा नहीं है लेकिन इस मैसेज को एक बार फॉरवर्ड करने से लड़की के खाते में एक रुपया जाएगा तो इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा फॉरवर्ड करें. इस तरह बात कहीं की कहीं पहुंच जाती है.


मैं कहता हूं आंखन देखी
आंखन देखी को सच मानने वाली इस एक मानसिकता वाली भीड़ के पास जब एक वीडियो पहुंचता है, जिसमें दिख रहा होता है बल्कि यूं कहे कि दिखाया जाता है कि फलां शख्स बच्चे को चुरा रहा है तो आंखन देखी को सच मानने वाले उस शख्स पर पिल पड़ते हैं और तब तक नहीं छोड़ते हैं जब तक वो अपनी सांस लेना नहीं छोड़ देता है. इस तरह हमने अफवाह को खबर मान लिया है. और हम उसे फॉरवर्ड करते जा रहे हैं. अहम बात ये है कि हमारे पास इस अफवाह को खबर मानने और मनवाने के वाजिब तर्क भी हैं. जिसे हम सच मानकर ही आगे बढ़ा रहे हैं.


आज से कुछ साल पहले की बात है ये तब की बात है जब सोशल मीडिया शब्द की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी. जब कंप्यूटर कुछ लोगों की पहंच तक था और फिल्मों में डॉस की कमांड चला कर दर्शकों को अचंभित किया जाता था. जब घर में फोन हुआ करते थे जिसे उठाने पर पूछना होता था कि आप कौन बोल रहे हैं. उन दिनों हमारे मोहल्ले में एक आंटी जी ने जानकारी दी कि शहर में फलानी जगह पर एक भैंस ने आदमी के बच्चे को जन्म दिया है. उनकी बात को सुनकर कुछ लोगों ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया. उनका कहना था कि भैंस इंसान के बच्चे को जन्म दे ही नहीं सकती. आंटी जी अपनी बात को सच साबित करने पर तुली हुई थीं. जब उनके तरकश के सारे तर्क खत्म हो गए तो उन्होंने आखिरी तीर छोड़ते हुए कहा कि उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है. उसके बाद मोहल्ले में सब शांत थे और भैंस के इंसान का बच्चा जनने की बात ‘हो सकता है’ के साथ छोड़ दी गई थी.


सोशल मीडिया ने इस मानसिकता को और प्रबल कर दिया है. यह इस हद तक जा पहुंचा है कि आखिर सरकार को पहल करनी पड़ी. तो अब अगर कोई आपसे कहे की कौआ कान ले गया है तो कौए के पीछ भागने से पहले एक बार कान को टटोल लीजिएगा.


(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)