अफगानिस्तान के खिलाफ खेलने वाली भारतीय क्रिकेट टीम की घोषणा हो गई है. रणजी ट्रॉफी, दलीप ट्रॉफी और ईरानी ट्रॉफी जैसी घरेलू क्रिकेट स्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन करने वाले कई प्रतिभाशली खिलाड़ियों की उपेक्षा की गई है, जबकि आईपीएल जैसे क्लब क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने वालों की तरजीह दी गई है. घरेलू क्रिकेट के प्रति चयनकर्ताओं का यह व्यवहार चिंता पैदा करने वाला है. भारत ही ऐसा देश है, जहां घरेलू क्रिकेट को प्राणवायु नहीं मिल रही है. हम कमेंटरी करने जाते हैं, तो पाते हैं कि रणजी ट्रॉफी प्रतियोगिताओं को देखने दर्शक ही नहीं मिल रहे हैं. पूरा स्टेडियम खाली पड़ा रहता है. एक प्रथम श्रेणी क्रिकेटर ने अपनी व्यथा तो यह कह कर प्रकट की, ''दर्शकों की तो छोड़िए, हमारे घरवाले और रिश्तेदार भी हमारा मैच देखने नहीं आ रहे.''


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ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में हम पाते हैं कि घरेलू क्रिकेट मैचों को देखने के लिए उतने ही दर्शक आ जाते हैं, जितने कि अंतरराष्ट्रीय मैचों को देखने के लिए उपस्थित होते हैं. इसका कारण ये भी है कि उन्हें अपने घरेलू क्रिकेट तंत्र पर विश्वास और गर्व है. इसी कारण जब विदेशी टीम दौरे पर ऑस्ट्रेलिया आती है, तब शैफील्ड-शील्ड जैसी घरेलू क्रिकेट स्पर्धा नहीं रखी जाती. उन्हें मालुम है कि अत्याधिक अंतररष्ट्रीय मैच खिलाते और टीवी पर दिखाते रहेंगे तो घरेलू क्रिकेट के प्रति दर्शकों का रुझान कम होता जाएगा. यही हाल इंग्लैंड अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट या टी20 क्रिकेट के मायाजाल में फंस कर बुनियादी घरेलू क्रिकेट को तबाह नहीं किया जाता.


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पैसे का रंग भी कैसा आकर्षक होता है कि वर्तमान आईपीएल में 42-43 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में भी खिलाड़ी मन लगाकर खेल रहे हैं. कोई भी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी शिकायत नहीं कर रहा है. मुझे याद है, पहले इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड की टीमें यहां आने से कतराती थीं. तब भारत का स्तर भी वैसा नहीं था. यहां पैसा भी नहीं बरसता था.


मुझे याद है, जब मैं छोटा था और पिताजी के साथ रणजी ट्रॉफी का मैच देखने जाता था तब 15 हजार दर्शक रणजी ट्रॉफी का मैच देख रहे होते थे. सभी बड़े क्रिकेटर अपनी टीमों के लिए खेलने के लिए आतुर रहते थे. सन 1977-78 में जब हम ऑस्ट्रेलिया से लौट रहे थे, तब सुनील गावस्कर जैसा महान खिलाड़ी मुंबई की घरेलू स्पर्धा कांगा लीग में खेलने के लिए लालायित था. अब तो बड़े खिलाड़ी, जहां तक बन सके घरेलू क्रिकेट में खेलना पसंद ही नहीं करते. बात साफ है कि यहां इतना पैसा ही नहीं मिलता. फिर ऐसे में कहीं घायल हो गए, तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वंचित रह जाएंगे. अर्शशास्त्र में एक कहावत है कि पैसा आदमी को चलाता है, जबकि आम धारणा है यह है कि आदमी पैसे को चलाता है.


भारत में पिछली रणजी ट्रॉफी प्रतियोगिता जीतने वाली टीम विदर्भ है. पर इस विजेता टीम के खिलाड़ियों को भारतीय टीम में प्रवेश नहीं मिल रहा है. उमेश यादव जरूर खेल रहे हैं. पर वह तो कई सालों से खेल रहे हैं. विदर्भ के तेज गेंदबाज रजनीश गुरबानी को चमकता दमकता हीरा कहा जा रहा था. रणजी के फाइनल में उन्होंने पहली पारी में 59 रन पर 6 विकेट और दूसरी पारी में 92 रन पर दो विकेट लिए थे. अपनी टीम को रणजी चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई थी. उनकी लेट इनस्विंग ने सभी को परेशान किया था. ऐसा खिलाड़ी इंग्लैंड के 'स्विंग' के लिए मददगार माहौल में बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. पर गुरबानी को आईपीएल तक में नहीं पूछा गया.



केरल के लिए खेल रहे जलज सक्सेना की आंखों में तो अब जल की बूंदें निकलने लगी हैं, क्योंकि उनके प्रदर्शनों को लगातार अनदेखा किया जा रहा है. पूरे रणजी टूर्नामेंट में जलज ने सबसे ज्यादा विकेट लिए और सबसे ज्यादा 522 रन बनाए. ऐसे ऑल राउंड प्रदर्शन के बावजूद उनका भारतीय क्रिकेट टीम में प्रवेश नहीं हो पा रहा है. फिर हम यह भी कहते रहते हैं कि भारतीय क्रिकेट में ऑल राउंडर्स की बड़ी कमी है. यही तो हमारी विडंबना है कि जो हमारे पास है, उसकी कद्र नहीं करते और फि भी उसी की कमी का रोना रोता रहते हैं.


विदर्भ के ही अक्षय वाडकर ने फाइनल में दिल्ली के खिलाफ 133 रन बनाए थे. रणजी ट्रॉफी चैंपियनशिप घरेलू क्रिकेट की शान है. इसमें प्राण तभी आएंगे, जब इसके सफल खिलाड़ियों को राष्ट्रीय टीम में प्रवेश का दरवाजा खुलेगा. नए खिलाड़ियों की प्रतिभा को आगे लाने वाली नर्सरी को ही अगर प्रोत्साहित नहीं करेंगे तो दो-चार सालों में ही प्रतिभा का अकाल पड़ने लगेगा. विनय कुमार ने कर्नाटक के लिए खेलते हुए पहली पारी में 34 रन देकर 6 विकेट लिए थे. अनमोलप्रीत सिंह पंजाब के खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 5 मैचों में 125.5 की औसत से 753 रन कूट दिए. पर उन्हें भी पूछा नहीं गया. प्रशांत चोपड़ा ने हिमाचल प्रदेश की तरफ से खेलते हुए पंजाब जैसी शक्तिशाली टीम के खिलाफ 338 रन की पारी खेलकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था.


साफ जाहिर है कि घरेलू क्रिकेट को मजबूत करने की जरूरत है. आईपीएल में खेलते हुए छोटी बाउंड्रीज लगा लगाकर ज्यादा रन कूटने वाले भले ही आपकी निगाहों में चढ़ जाएं, पर यह नहीं भूलना चाहिए कि पाटा विकेटों पर इन रनों की कोई कीमत नहीं है. चयनकर्ताओं को भी चाहिए कि आईपीएल के प्रदर्शनों से प्रभावित होने के बजाए असली क्रिकेट के प्रदर्शन से प्रसन्न होना सीखें. घरेलू क्रिकेट की उपेक्षा भारतीय क्रिकेट के भविष्य के  लिए महंगी साबित हो सकती है.


अत: यह जरूरी हो गया है कि घरेलू क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों को भी बेहतर धनराशि मिले. अभी तो केवल बंधुआ मजदूर की तरह खेल रहे हैं, जिनकी मेहनत व प्रतिभा का सही आकलन नहीं हो रहा है. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने इस ओर ध्यान देना तो शुरू कर दिया है. यह खुशी की बात है.


(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)