नई दिल्ली: इमरान खान के क्रिकेटर से प्रधानमंत्री बनने की कहानी किसी फैंटेसी से कम नहीं है. इंटरनेशनल क्रिकेट में धीमी शुरुआत के बाद महान ऑलराउंडर का तमगा और फिर वर्ल्ड कप न जीत पाने पर संन्यास. जी हां, हम सभी उन्हें विश्व विजेता कप्तान के तौर पर जानते हैं. पर इमरान के खाते में यह उपलब्धि दर्ज ना होती, अगर राष्ट्रपति जिया उल हक ने उन्हें संन्यास से लौटकर खेलने के लिए मनाया ना होता. बहरहाल, इमरान ना सिर्फ मैदान पर लौटे, बल्कि चार साल बाद अपनी टीम को वर्ल्ड चैंपियन भी बना दिया. 

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डेब्यू के छह साल बाद सिडनी टेस्ट से बनाई पहचान
इमरान खान ने यूं तो पहला टेस्ट 1971 में खेला. पर उन्हें पहचान मिली 1977 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी टेस्ट से. उन्होंने इस टेस्ट की दोनों पारियों में 6-6 विकेट झटके और पाकिस्तान को 8 विकेट से जीत मिली. सीरीज 1-1 से बराबर रही. इसके कुछ साल बाद वे कप्तान बने. उनकी कप्तानी में पाकिस्तान ने लगातार जीत दर्ज की. उस समय इमरान का कद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) से भी बड़ा हो गया था. उनके पाकिस्तान के कप्तान रहते हुए कोई भी उनके काम में दखल नहीं दे सका।  


भारत से सीरीज खेलने के लिए इंग्लैंड से अंपायर बुलाए 
1970-80 के दशक में पाकिस्तान के अंपायर पक्षपातपूर्ण फैसले के लिए बदनाम थे. भारतीय क्रिकेटर भी लगातार इसकी शिकायत करते. पर इमरान को अपनी टीम पर पूरा भरोसा था. उन्होंने बतौर कप्तान अपने क्रिकेट बोर्ड पर न्यूट्रल अंपायर बुलाने का दबाव बनाया. इसके बाद पाकिस्तान में होने वाली भारत-पाक सीरीज के लिए इंग्लैंड से अंपायर बुलाए गए. 

1987 वर्ल्ड कप में हार के बाद संन्यास लिया...  
पाकिस्तान 1987 के वर्ल्ड कप में इमरान की कप्तानी में उतरा. टीम सेमीफाइनल हार गई और इमरान ने संन्यास ले लिया. उनके संन्यास से पाकिस्‍तान में भूचाल सा आ गया था. क्रिकेटप्रेमियों से लेकर राजनेताओं तक ने उनसे संन्‍यास नहीं लेने की अपील की. अंतत: राष्ट्रपति जिया उल हक के कहने पर इमरान ने संन्यास वापस ले लिया. वे मैदान पर लौट आए और 1992 में 39 की उम्र में कप्तानी करते हुए टीम को चैंपियन बना दिया.