Cricket: चीते की तरह गेंद पर लपकते हुए कैच पकड़ना, रन रोकना और रन आउट करना, मानों ये जोंटी रोड्स के लिए बाएं हाथ का खेल था. साउथ अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर जोंटी रोड्स आज अपना 55वां जन्मदिन मना रहे हैं. 1992 के वर्ल्ड कप में इंजमाम-उल-हक को किए गए दमदार रन आउट से रातों-रात स्टार बने जोंटी रोड्स ने अपने करियर में क्रिकेट को कई बेहतरीन पल दिए.


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वर्ल्ड क्रिकेट का धाकड़ खिलाड़ी


जोंटी रोड्स निश्चित तौर पर एक असाधारण फील्डर थे, लेकिन इसके लिए वह अपनी टीम के बाकी सदस्यों से भी ज्यादा कड़ी प्रैक्टिस करते थे. बैकवर्ड पॉइंट पर उनकी फील्डिंग का कोई जवाब नहीं था, जहां वह हवा में छलांग लगाकर असंभव से लगने वाले कैच पकड़ते और रन बचाते थे.


ओलंपिक के लिए हो गया था सेलेक्शन


जोंटी रोड्स ने हॉकी में भी दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधित्व किया है. जोंटी रोड्स को बार्सिलोना जाने के लिए 1992 ओलंपिक गेम्स की टीम में चुना गया. हालांकि, टीम टूर्नामेंट में जाने के लिए योग्य नहीं थी. जोंटी रोड्स को 1996 ओलंपिक में खेलने के लिए ट्रायल के लिए भी बुलाया गया था, लेकिन हैमस्ट्रिंग की चोट के कारण उन्हें बाहर होना पड़ा.


साल 2000 में छोड़ा टेस्ट क्रिकेट


फील्डिंग के अलावा, उन्होंने अपनी बल्लेबाजी पर भी खूब मेहनत की. साल 1997 में उन्होंने अपनी बल्लेबाजी तकनीक में बड़े बदलाव किए और उसके बाद से टेस्ट क्रिकेट में उनका औसत 50 के करीब रहा. हालांकि, साल 2000 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट छोड़कर पूरी तरह से वनडे क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.


रिवर्स स्वीप जैसा शॉट भी सीख लिया


आज के आधुनिक क्रिकेट में फिटनेस, शॉट्स, विकेटों के बीच दौड़ आदि को लेकर जो तौर-तरीके देखने के लिए मिलते हैं, वह जोंटी रोड्स ने बहुत पहले ही शुरू कर दिए थे. उस जमाने में जोंटी रोड्स ने विकेटों के बीच दौड़ में सिंगल रन लेने की गुंजाइश में डबल रन लेने के मौके सफलतापूर्वक ढूंढ लिए थे. इतना ही नहीं, कोच बॉब वूल्मर के मार्गदर्शन में उन्होंने रिवर्स स्वीप जैसा शॉट भी सीख लिया था.


बच्चों को ऑटोग्राफ देते रहते


रोड्स अपने फैंस के भी चहेते थे. भले ही उनकी टीम बस में जाने के लिए देरी हो रही हो, वह काफी देर तक बच्चों को ऑटोग्राफ देते रहते थे. रोड्स ने क्रिकेट के अलावा भी कई क्षेत्रों में सफलता पाई. दक्षिण अफ्रीका में किसी भी टीम स्पोर्ट्स खिलाड़ी से ज्यादा उनके नाम विज्ञापन हैं.


2003 वर्ल्ड कप में चोट के कारण संन्यास लेना पड़ा


जोंटी रोड्स खेल के साथ अपने परिवार को भी बड़ी अहमियत दी. उनको ऐसा पहला क्रिकेटर माना जाता है जिन्होंने अपनी बेटी के जन्म पर पितृत्व अवकाश लिया था. साल 2003 के वर्ल्ड कप में उंगली की चोट के कारण उन्हें संन्यास लेना पड़ा, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने काउंटी क्रिकेट में ग्लूस्टरशायर के लिए शानदार प्रदर्शन किया.


इंटरनेशनल क्रिकेट में 139 कैच पकड़े 


क्रिकेटर जोंटी रोड्स ने अपने करियर के दौरान 52 टेस्ट मैच खेले, जिसमें 35.66 की औसत के साथ, 3 शतक और 17 अर्धशतक समेत 2,532 रन बनाए. इसके अलावा उन्होंने 245 वनडे इंटरनेशनल मुकाबले खेले और 2 शतक व 33 अर्धशतकों के साथ, 35.11 की औसत के साथ 5,935 रन बनाए. रोड्स के समय में टी20 इंटरनेशनल मुकाबले नहीं खेले जाते थे. जोंटी रोड्स ने बतौर फील्डर टेस्ट मैच में 34 कैच और वनडे में 105 कैच लिए.


भारत के साथ गहरा लगाव


जोंटी रोड्स का भारत के साथ भी गहरा लगाव है. वह भारत की संस्कृति से काफी प्रेरित रहे हैं और उन्होंने भारत के कई हिस्सों की यात्रा भी की है. भारत के प्रति जोंटी रोड्स के प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम इंडिया रखा है. रोड्स इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में भी लखनऊ सुपरजायंट्स जैसे टीम के साथ बतौर फील्डिंग कोच जुड़े रहे हैं.