Piraeus Port: चाबहार की जगह अब भारत की नजर पीरियस पोर्ट पर, अजरबैजान-आर्मेनिया का क्या है कनेक्शन
Chabahar vs Piraeus port: ईरान के चाबहार पोर्ट की जगह अब ग्रीस का पीरियस बंदरगाह भारत की पहली पसंद बन रहा है. बताया जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के ग्रीस दौरे में इस मुद्दे पर चर्चा हो सकती है. इन सबके बीच चाबहार की मुश्किलों और पीरियस की उपयोगिता को समझने की जरूरत है.
Piraeus Port News: पाकिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट को चीन ने जब विकसित करना शुरू किया तो भारत के सामने सामरिक और आर्थिक दो तरह की चुनौतियां सामने आईं. ग्वादर के जरिए भारत के आर्थिक हित को चीन प्रभावित कर सकता था लिहाजा इसकी काट के लिए भारत सरकार ने ईरान स्थित चाबहार पोर्ट को विकसित करने का फैसला किया लेकिन बदले भूराजनीतिक हालात में भारत को अब चाबहार की उपयोगिता कम नजर आ रही है. भारत की नजर अब ग्रीस के पीरियस बंदरगाह पर है ताकि यूरोपीय देशों को बिना किसी रुकावट निर्यात किया जा सके. अगस्त के आखिर में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी शिरकत कर रहे होंगे उससे हटकर उनकी ग्रीस जाने की भी योजना है.
अजरबैजान, आर्मेनिया विवाद का असर
इस समय अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तल्खी बढ़ गई है. अब सवाल यह है कि आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तल्खी से भारत क्यों चिंतित है. दरअसल चाबहार पोर्ट पर भारतीय शिपमेंट को उतारा जाता है और वहां से सड़क के रास्ते ईरान और आर्मेनिया के जंगेजुर द्वीप के जरिए सामान यूरोपीय देशों को भेजे जाते हैं. भारत की डर दो वजहों से है. पहला यह कि अगर दोनों देशों के बीच लड़ाई छिड़ी तो आर्मेनिया के रास्ते व्यापार करना खतरे से खाली नहीं होगा. इसके साथ ही दूसरा डर अजरबैजान, पाकिस्तान और तुर्की की दोस्ती से जुड़ा है. लड़ाई की सूरत में पाकिस्तान, अजरबैजान पर दबाव डाल सकता है कि वो भारतीय व्यापार को प्रभावित करे.अगर अजरबैजान कब्जा करने में कामयाब होता है तो यूरोपीय देशों के ईरान और आर्मेनिया के रास्ते सप्लाइ चेन कट जाएगी.
चाबहार के साथ क्या है मुश्किल
ऐसा नहीं है कि चाबहार पर उतारे गए शिपमेंट को ईरान और आर्मेनिया के रास्ते यूरोपीय देशों को नहीं भेजा गया है लेकिन बदले हुए हालात में व्यापारिक गतिविधियों पर असर पड़ने से रोक पाना आसान नहीं होगा. यहां यह भी सवाल उठता है कि जिस चाबहार को भारत रणनीतिक तौर पर ग्वादर के संबंध में अहम मानता था उससे दूर क्यों जाना चाहता है. इसके पीछे दो बड़ी वजह बताई जा रही है. पहली वजह तो अजरबैजान और आर्मेनिया का प्रकरण है और दूसरी वजह अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध है. अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से ज्यादातर देश यह नहीं चाहते कि उनके सामानों के आयात या निर्यात के लिए ईरान ट्रांजिट रूट बने. अब यूरोपीय देशों से भारत का व्यापार ईरान के रास्ते हो रहा है लिहाजा भारत सरकार के सामने व्यवहारिक समस्या है.
अब पीरियस पर क्यों टिकी है नजर
पीरियस, ग्रीस का हिस्सा है और यह भूमध्यसागर में है. इसे यूरोप का प्रवेश द्वार माना जाता है अगर इस बंदरगाह को भारत हासिल करने में कामयाब रहता है तो यूरोपीय देशों के शिपमेंट में आने वाली दिक्कत हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. लेकिन भारत के सामने मुश्किल यह है कि पीरियस बंदरगाह पर चीन की कंपनी कास्को का कब्जा है.करीब 67 फीसद मालिकाना हक चीनी कंपनी के पास है. जावकार कहते हैं कि अगर भारतीय कंपनियों की बात करें तो कुछ विदेशों में बंदरगाहों को सफलतापूर्वक संचालित कर रही हैं. अगर राजनीतिक तौर पर भारत और ग्रीस के बीच सहमति बनी तो पीरियस के संचालन का अधिकार भारत हासिल कर सकता है.