Maharashtra CM Race: महाराष्ट्र में महायुति की जीत का जश्न भी अब फीका पड़ने लगा है. कार्यकर्ता और समर्थक जीत की खुशी मना-मना कर थक चुके हैं. सबको लगा था कि जीत के साथ ही सरकार का गठन होगा और राज्य का कामकाज शुरू होगा.
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Maharashtra CM Race: महाराष्ट्र में महायुति की जीत का जश्न भी अब फीका पड़ने लगा है. कार्यकर्ता और समर्थक जीत की खुशी मना-मना कर थक चुके हैं. सबको लगा था कि जीत के साथ ही सरकार का गठन होगा और राज्य का कामकाज शुरू होगा. लेकिन अब तक महाराष्ट्र को न तो मुख्यमंत्री मिल सका, ना ही सरकार को चलाने वाले मंत्री. उड़ती-उड़ती खबर यह आ रही है कि ये सारी देरी.. एकनाथ शिंदे की वजह से है. मुख्यमंत्री के लिए 'ना' कह चुके शिंदे अब भी मन में कुछ लिए बैठे हैं. अगर ऐसा नहीं है, तो सबकुछ क्लियर होने के बाद भी महाराष्ट्र को अब तक मुख्यमंत्री क्यों नहीं मिला?
शिंदे की तबीयत नहीं... मन खराब?
महाराष्ट्र की सियासत में इस समय दिलचस्प मोड़ आ गया है. महायुति (भाजपा-शिंदे गुट-एनसीपी) की जीत का जश्न तो कब का थम चुका है, लेकिन अब भी सरकार बनाने की गुत्थी सुलझ नहीं पाई है. 11 दिन हो चुके हैं, पर महाराष्ट्र को न मुख्यमंत्री मिला और न ही कैबिनेट. सवाल यह है कि आखिर देरी की वजह क्या है?
तबीयत खराब या प्रेशर पॉलीटिक्स?
एकनाथ शिंदे की तबीयत खराब होने की खबरें तो सामने आईं, लेकिन इसके पीछे का असल खेल कुछ और नजर आता है. दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद अचानक गांव चले जाने वाले शिंदे की 'तबीयत' ने सियासी अटकलों को हवा दे दी. मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि शिंदे मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी छोड़ चुके हैं, लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज कुछ और ही कहानी बयां कर रही है.
क्या शिंदे चाहते हैं गृह मंत्रालय?
एकनाथ शिंदे को भाजपा ने पहले ही मुख्यमंत्री पद से दूर रहने का संकेत दे दिया था. अब सवाल यह उठता है कि शिंदे क्या चाहते हैं? खबरों के मुताबिक, शिंदे की दिलचस्पी गृह मंत्रालय में है, लेकिन भाजपा इस अहम मंत्रालय को हाथ से जाने नहीं देना चाहती. इससे पहले डिप्टी सीएम रहते हुए देवेंद्र फडणवीस गृह मंत्रालय संभाल रहे थे. इस सरकार में भी वे इसे बरकरार रखना चाहेंगे.
बीजेपी की रणनीति और शिंदे की अहमियत
भाजपा के पास 132 सीटें और अजित पवार की एनसीपी के 41 विधायक हैं. इसके बावजूद भाजपा शिंदे को नजरअंदाज नहीं कर सकती. इसकी वजह बीएमसी चुनाव हैं. भाजपा की रणनीति साफ है.. उद्धव ठाकरे की शिवसेना को कमजोर करना. शिंदे गुट, जिसने मुंबई में 10 सीटें जीती थीं, इस योजना में अहम भूमिका निभा सकता है.
क्या कहता है शिंदे का आत्मविश्वास?
1 दिसंबर को मीडिया के सामने आए शिंदे ने दो टूक कहा कि जनता उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहती है. 2022 में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जो काम किए, उसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के फैसले का समर्थन करने की बात दोहराई.
महायुति में फडणवीस का दबदबा
भाजपा की ओर से देवेंद्र फडणवीस की पकड़ मजबूत दिखती है. फडणवीस मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं और गृह मंत्रालय भी अपने पास रखना चाहते हैं. भाजपा में अंदरखाने यह बात तय मानी जा रही है कि फडणवीस की वापसी से पार्टी को चुनावों में फायदा होगा.
क्या शिंदे का 'मौन' है सियासी चाल?
शिंदे का दिल्ली से लौटकर 'गायब' हो जाना और मीडिया से दूरी बनाए रखना उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. अपने समर्थकों को यह संदेश देना कि वे हार मानने वाले नहीं हैं.. शिंदे का बड़ा दांव हो सकता है. भाजपा-शिंदे गुट-एनसीपी के बीच सत्ता साझा करने को लेकर अभी भी सहमति नहीं बन पाई है. यह देरी महायुति के भीतर चल रही खींचतान को उजागर करती है. सवाल यह है कि क्या यह देरी सरकार बनने के बाद भी स्थिरता पर सवाल खड़े करेगी?
महाराष्ट्र कब तक रहेगा 'स्टैंडबाय' मोड में?
भाजपा की रणनीति दिल्ली में तय होती है. शिंदे की भूमिका, फडणवीस की दावेदारी और अजित पवार की एनसीपी का महत्व—सब कुछ केंद्रीय नेतृत्व की मुहर पर निर्भर करता है. महाराष्ट्र की जनता को सरकार के गठन का इंतजार है. महायुति को जो स्थिरता और विकास का वादा करके सत्ता मिली, वह अब सवालों के घेरे में है. महाराष्ट्र में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ रही है और शिंदे की 'तबीयत खराब' का असर जनता पर भी साफ नजर आ रहा है. महाराष्ट्र में सरकार गठन की देरी सिर्फ शिंदे या फडणवीस की महत्वाकांक्षा का मामला नहीं है. यह भाजपा की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है. सवाल यह है कि महाराष्ट्र को स्थिर सरकार कब मिलेगी, और यह अनिश्चितता कितने दिन और जारी रहेगी?