What is Sedition:  केंद्र सरकार ने मानसून सत्र के आखिरी दिन यानी 11 अगस्त को संसद में तीन महत्वपूर्ण बिले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल और भारतीय साक्ष्य विधेयक को पेश किया. ये बिल इसलिए ऐतिहासिक हैं क्योंकि पहली बार राजद्रोह, देशद्रोह और आतंकवाद को स्पष्ट तरीके से परिभाषित किया गया है. हम सब अक्सर राजद्रोह और देशद्रोह के विषय पर विपक्ष के आरोपों के साथ साथ सिविल सोसाइटी के तर्क को सुनते रहे हैं, सरकार किसी की रही तो विपक्ष में बैठने के बाद यह सवाल उठता रहा है कि अगर सरकार के क्रियाकलाप पर सवाल उठाए जाते हैं तो राजद्रोह और देशद्रोह के नाम पर आवाज बंद करने की कोशिश की जाती रही है. बिल को पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि राजद्रोह और आतंकवाद को लेकर तस्वीर को मौजूदा सरकार पूरी तरह साफ कर रही है. ये विधेयक अब मौजूदा आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट की जगह लेंगे और संसदीय कमेटी की इसकी जांच करेगी. यहां हम आपको राजद्रोह और देशद्रोह के बीच अंतर को बताएंगे.


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राजद्रोह


भारतीय संविधान में आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह को परिभाषित किया गया है. इसमें सजा का प्रावधान कम है. अगर कोई राजद्रोह के मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे सरकारी नौकरी के साथ साथ पासपोर्ट के लिए आवेदन नहीं कर सकता है.


देशद्रोह


अगर बात देशद्रोह की करें तो आईपीसी की धारा 121 लगाई जाती है. इसमें आजीवन कारावास के साथ साथ फांसी की सजा सुनाई जाती है. राजद्रोह की तरह ही देशद्रोह मामले में भी कोई शख्स सरकारी नौकरी के साथ पासपोर्ट के लिए आवेदन नहीं कर सकता है.


भारत में राजद्रोह का पहला केस


अगर भारत में राजद्रोह के पहले केस की बात करें तो पहली बार महारानी बनाम जोगेंद्र चंद्र बोस का मामला था कलकत्ता हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई हुई थी लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावी मामला बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ था. तिलक ने केसरी न्यूजपेपर में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ संपादकीय लिखी थी,  उस वक्त राजद्रोह के केस लगाए जाने से किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था क्योंकि हम सब औपनिवेशिक शासन के हिस्सा थे और अंग्रेज देश पर शासन कर रहे थे. 1922 में महात्मा गांधी पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया.  'यंग इंडिया' में उनके लेखों के लिए छह साल की जेल हुई थी. उन पर लगाए गए आरोप थे ब्रिटिश भारत में कानून द्वारा स्थापित महामहिम की सरकार के प्रति असंतोष लाना या भड़काने का प्रयास करना था. महात्मा गांधी ने धारा 124ए को नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाई गई भारतीय दंड संहिता की राजनीतिक धाराओं के बीच राजकुमार कहा था।


देश की आजादी के बाद बृज भूषण और अन्य बनाम दिल्ली राज्य (1950) और रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) में केस दर्ज किया गया. शीर्ष अदालत ने माना कि एक कानून जो भाषण को इस आधार पर प्रतिबंधित करता है कि इससे सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होगी, असंवैधानिक है.अदालत के फैसले ने 'प्रथम संविधान संशोधन' को प्रेरित किया, जहां अनुच्छेद 19 (2) को राज्य की सुरक्षा को कमजोर करने को सार्वजनिक व्यवस्था के हित में से बदलने के लिए फिर से लिखा गया था. अंग्रेजी सरकार की तरफ से भारतीयों की बगावती आवाज दबाने के लिए राजद्रोह कानून लाया गया. 1870 के एक्ट में इसकी व्यवस्था की गई. 1947 में देश की आजादी के बाद से अब तक राजद्रोह के 76 केस दर्ज किए गए हैं.