क्या आपने कभी किसी ऐसे गांव के बारे में सुना है जहां लोग एक-दूसरे को नाम लेकर नहीं, बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं? जी हां, आपने सही सुना! भारत में ऐसा ही एक अनोखा गांव है, जहां की अपनी एक अलग ही भाषा है- सीटी की भाषा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

यह गांव है मेघालय का कॉन्थोंग गांव. यहां के लोग सदियों से एक-दूसरे को सीटी बजाकर बुलाते हैं. हर व्यक्ति की एक अलग सीटी होती है, जिसे सुनकर आसानी से पहचाना जा सकता है. चाहे खेत में काम करते हों या जंगल में लकड़ी काट रहे हों, सभी एक-दूसरे को सीटी बजाकर बुलाते हैं. इस अनूठी परंपरा ने कांगथोंग गांव को देश-विदेश में लोकप्रिय बना दिया है और इसे 'व्हिसलिंग विलेज' के नाम से भी जाना जाता है.


सीटी की भाषा का इतिहास
कॉन्थोंग गांव घने जंगलों से घिरा हुआ है. यहां की पहाड़ियां ऊंची और घाटियां गहरी हैं. ऐसे में आवाज का बहुत कम प्रभाव होता है. इसलिए यहां के लोगों ने सीटी बजाकर बात करने का तरीका अपनाया. यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी जीवित है.


सीटी का महत्व और वैज्ञानिक कारण
मेघालय के इस गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दूरियों पर आवाज पहुंचाने के लिए साधारण बोलचाल की भाषा कठिनाई पैदा कर सकती है. इसलिए सीटी का उपयोग यहां एक व्यावहारिक विकल्प बन गया. जंगलों और पहाड़ियों के बीच सीटी की आवाज आसानी से दूर तक सुनाई देती है, और यह कम्युनिकेशन का एक कारगर साधन बन चुका है.


पर्यटन और लोकप्रियता
कांगथोंग गांव की यह अनोखी परंपरा अब पर्यटन का भी आकर्षण बन चुकी है. लोग दूर-दूर से इस गांव को देखने और इस अनोखे कम्युनिकेशन के तरीके का अनुभव करने आते हैं. इस परंपरा की अनोखी संस्कृति और स्वदेशी पहचान ने गांव को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल प्रसिद्धि दिलाई है.