लगता है 10 सालों में ही जनता ने NOTA को कह दिया NO, यकीन नहीं तो पढ़ लीजिए
Nota in Assembly Elections 2023: भारत की चुनावी व्यवस्था में अगर आप किसी भी उम्मीदवार को खरा नहीं पाते हैं तो नोटा का विकल्प उपलब्ध है, चार राज्यों के चुनाव में जहां बीजेपी तीन और कांग्रेस को एक राज्य में कामयाबी मिली है. वहीं हम बताएंगे कि नोटा को लेकर मतदाता कितने गंभीर रहे.
Nota Use In Elections 2023: भारत की चुनावी व्यवस्था में इस बात पर चर्चा होती रही है कि अगर मतदाताओं को कोई भी उम्मीदवार पसंद ना हो तो क्या होना चाहिए. इसके लिए 2013 के चुनाव में नोटा विकल्प को पेश किया गया. 2013 के बाद अब तक दो आम चुनाव के साथ साथ कई विधानसभा के चुनाव संपन्न भी हो चुके हैं. अब सवाल यह है कि नोटा को लेकर मतदाताओं की प्रतिक्रिया कैसी रही है. क्या नोटा का विकल्प सिर्फ शोपीस बनकर रह गया है. इस विकल्प से फायदा हुआ है. इसके लिए चार राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के चुनावी नतीजों पर नजर डालना जरूरी है.
नोटा और तीन राज्यों की तस्वीर
रविवार यानी 3 दिसंबर को को जिन चार राज्यों में मतगणना समाप्त हुई उनके आंकड़ों से यह साफ है कि इनमें से तीन प्रदेशों में एक प्रतिशत से भी कम मतदाताओं ने उपरोक्त में से कोई नहीं यानी नोटा विकल्प को चुना. मध्य प्रदेश में, हुए 77.15 प्रतिशत मतदान में से 0.98 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में, 1.26 प्रतिशत मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)पर नोटा का बटन दबाया. तेलंगाना में, 0.73 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना. राज्य में 71.14 प्रतिशत मतदान हुआ था. इसी तरह, राजस्थान में 0.96 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना राज्य में 74.62 प्रतिशत मतदान हुआ.
इस वजह से नोटा नहीं बन पा रहा पसंद
‘नोटा’ विकल्प पर ‘कंज्यूमर डेटा इंटेलीजेंस कंपनी’ एक्सिस माय इंडिया के प्रदीप गुप्ता ने कहा कि नोटा का इस्तेमाल .01 प्रतिशत से लेकर अधिकतम दो प्रतिशत तक किया गया. उन्होंने कहा कि यदि कोई नयी चीज शुरू की जाती है तो वो कितना प्रभावी होगा वो नतीजों पर निर्भर करती है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस बारे में पत्र लिखा था कि अगर नोटा को सही मायने में प्रभावी बनाना है, तो अधिकतम संख्या में लोगों द्वारा इसका (नोटा का)बटन दबाये जाने पर नोटा को विजेता घोषित किया जाना चाहिए.
भारत में अपनाये गए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे, जिसमें सर्वाधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।उन्होंने यह भी कहा कि जिन उम्मीदवारों को जनता ने खारिज कर दिया है, उन्हें ऐसी स्थिति में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जहां ‘नोटा’ को अन्य उम्मीदवारों से अधिक वोट पड़े हों. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा होता है तो लोग नोटा विकल्प का सही उपयोग कर पाएंगे...अन्यथा यह एक औपचारिकता मात्र है. बता दें कि नोटा का विकल्प 2013 में शुरू किया गया था.