Russia Ukraine War: युद्धों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना की इंसानी सभ्यता का अस्तित्व. इंसानों की बढ़ती महात्वाकांक्षा अलग अलग रूप बदल कर युद्ध में बदलती रही. कभी इंसान धरती के लिए लड़े, तो कभी धन के लिए. सम्मान और स्वाभिमान के लिए लड़े गए युद्धों की कहानियों से भी हमारा इतिहास भरा पड़ा है और इन युद्धों ने हमारी दुनिया को हर बार बदला है. हर बार प्रभावित किया है. ये सब आज हम आपको इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि आज रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का आधा वर्ष पूरा हो चुका है.


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आज से ठीक 6 महीने पहले 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था. उस वक्त अमेरिकी सेना के  ज्वाइंट चीफ़ ऑफ स्टाफ मार्क मिली ने दावा किया था कि रूस सिर्फ़ 72 घंटों में ही कीव पर क़ब्जा कर लेगा और यूक्रेन का खात्मा हो जाएगा, लेकिन वो गलत थे. आज करीब साढ़े चार हज़ार घंटे बीतने के बाद भी ये युद्ध जारी है और रूस यूक्रेन का बीस प्रतिशत हिस्सा ही जीत पाया है. यूक्रेन के लोग अपना इंडिपेंडेस डे मना रहे हैं और राजधानी कीव पर उनका झंडा आज भी लहरा रहा है.


और इसी मौक़े पर यूक्रेन का हौसला बढ़ाने के लिए UK के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन भी अचानक कीव पहुंच गए.उन्होंने यूक्रेन को करीब 500 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ युद्ध के साजो सामान देने का भी ऐलान किया.


इस युद्ध ने दो देशों के अर्थशास्त्र और उनकी नियति को ही नहीं लोगों की जीवनशैली को भी बदल दिया है. करीब 2 हज़ार किलोमीटर तक फैले मोर्चे पर तोपे गरज रही हैं तो कुछ किलोमीटर दूर कीव में संगीत की धुनें गूंज़ रही हैं. टैंकों के बीच से गुजरते हुए सड़क पार करना, या मॉर्निंग वॉक पर जाना उनके सामान्य जनजीवन का हिस्सा बन चुका है. दरअसल इस युद्ध ने एक नए विचार को जन्म दिया है. ये विचार है न्यू नॉमर्लिसी (normalcy) का यानी युद्ध के साथ जीने की आदत डाल लेने का.


आज भले ही वहां के लोगों ने इस न्यू नॉर्मल स्थिति को स्वीकार कर लिया हो लेकिन इससे युद्ध की विभीषिका कम नहीं हो जाती. इस युद्ध ने बेतहाशा बर्बादी और मानवीय आपदा को जन्म दिया है. 


यूक्रेन को हुआ इतने करोड़ का नुकसान


अलग अलग रिपोर्ट्स के अनुसार इस जंग में यूक्रेन को करीब 48 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. यूक्रेन के मुताबिक, जंग में उसकी 38 हजार रिहायशी इमारतें और 1900 educational institutes हो गए हैं. इसके अलावा 50 से ज्यादा रेलवे ब्रिज...500 से ज्यादा फैक्ट्रियां, 500 अस्पताल और 9 हज़ार सैनिक इस युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं.


इस युद्ध में रूस को भी अब तक करीब 24 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया है. अमेरिका के मुताबिक इस युद्ध में  रूस के करीब 75 हज़ार सैनिक मारे जा चुके हैं, जबकि यूक्रेन ने रूस के 43 हज़ार सैनिकों को मार गिराने का दावा किया है और अगर इन आंकड़ों की मानें तो सोवियत संघ ने एक दशक तक चले अफगानिस्तान युद्ध में जितने सैनिकों को गंवाया था, उससे कहीं ज्यादा रूसी सैनिक यूक्रेन युद्ध में केवल 6 महीने में मारे गए हैं.


लेकिन इस युद्ध का सबसे ज्यादा खामियाज़ा अगर किसी ने भुगता है, तो आम लोग हैं...वो लोग जिनका इस युद्ध के कोई लेना देना नहीं था. जो हमारी और आपकी तरह दफ्तर जाते थे. खेतों पर काम करते थे और अपने परिवार के साथ समय बिताते थे.


संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 24 फरवरी को रूस के हमले के बाद से  5,587 यूक्रेनी नागरिक मारे जा चुके हैं, जबकि 1 करोड़ से ज्यादा लोग रिफ्यूज़ी बन चुके हैं और वो जिन्दा रहने के लिए दूसरे देशों में भटक रहे हैं. इन शरणार्थियों में भी  ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, क्योंकि 18 से 60 वर्ष की उम्र के यूक्रेनी नागरिक युद्ध लड़ने के लिए देश में ही रह गए हैं.


भारतीयों की जिंदगी ऐसे हुई प्रभावित


आज अगर आप सोच रहे हैं कि आपके देश से करीब साढ़े चार हज़ार किलोमीटर दूर लड़े जा रहे युद्ध से आपका क्या नाता तो आप ग़लत हैं. इस युद्ध ने आपकी ज़िन्दगी को भी प्रभावित किया है और इस बदलाव को आप इन तीन प्वाइंट्स से आसानी से समझ सकते हैं.


रूस दुनिया भर में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और वो कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर भी है, जबकि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कोयला आपूर्तिकर्ता भी रूस ही है.वर्ष 2021 में यूरोप ने अपनी ज़रूरत की लगभग 40 प्रतिशत नैचुरल गैस रूस से ही आयात की थी.लेकिन युद्ध शुरू होने के बाद से इनकी सप्लाई पर बुरा असर पड़ा है और इसका सीधा नुकसान भारत जैसे देश आज भी उठा रहे हैं.


इस युद्ध की वजह से आज पूरी दुनिया पर अब तक के सबसे बड़े खाद्य संकट का खतरा पैदा हो गया है.रूस और यूक्रेन गेहूं और खाने के तेल के सबसे बड़े सप्लायर हैं.पूरी दुनिया के कुल गेहूं निर्यात में 30 प्रतिशत हिस्सा अकेले इन देशों का ही.यही नहीं पूरी दुनिया में 29 प्रतिशत जौ, 15 प्रतिशत मक्का और 75 प्रतिशत खाने के तेल की सप्लाई भी यही देश करते हैं और इसीलिए आज दुनिया के कई देश इस युद्ध की वजह से फूड इनसिक्योरिटी का सामना कर रहे हैं.


कोरोना की वजह से ग्लोबल इकॉनमी पहले से ही दबाव में थी.लेकिन इस युद्ध ने उसे और नुक़सान पहुंचाया है.एक अनुमान के अनुसार युद्ध की वजह से वर्ष 2022 में global inflation rate के 2.7 प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका है.भारत में भी महंगाई तेज़ी से बढ़ी है.जबकि श्रीलंका जैसे देशों में तो ये दर बढ़ कर 54.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और श्रीलंका की मौजूदा स्थिति के लिए ये कहीं न कहीं ये युद्ध भी जिम्मेदार है. आज भी ये युद्ध जारी है और कोई नहीं जानता कि इसका अंजाम क्या होगा और ये कब खत्म होगा.


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