नई दिल्ली: चीन ने उइगर मुस्लिमों को 'देशभक्त' और 'वफादार' बनाने के लिए सरकार ने विशेष ट्रांसफॉर्मेशन कैंप खोले हैं. ये कैंप उइगर मुसलमानों को चीन की सरकार और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार बनाने के लिए खोले गए हैं. इसमें अल्पसंख्यक मुसलमानों को जबरदस्ती पकड़कर लाया जा रहा है और कम से कम दो महीने तक रखा जा रहा है. सरकार का कहना है कि यहां चीनी भाषा सीखने, कानून की पढ़ाई और रोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं को कहना है कि सरकार उइगर मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने के लिए उन पर जबरन अत्याचार कर रही है.


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ये भी गौरतलब है कि पाकिस्तान अपनी सीमा के एकदम नजदीक ही मुसलमानों पर हो रहे इस अत्याचार पर एकदम खामोश है, जबकि भारत में मुसलमानों पर कथित आत्याचार को लेकर वो झूठा प्रचार हमेशा करता रहता है. अन्य मुस्लिम देश भी इस मुद्दे पर एकदम खामोश हैं, जबकि पश्चिमी मानवाधिकार संगठन अब इस अत्याचार पर आवाज उठाने लगे हैं. रविवार को अमेरिका के प्रमुख समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स ने इस मुद्दे पर फ्रंट पेज पर फोटो के साथ खबर प्रकाशित की.


क्या होता है कैंप में?



न्यूयार्क टाइम्स ने एक बहुत बड़ी सी बिल्डिंग की फोटो छापी है, जहां उइगर मुसलमानों को 'देशभक्त' और 'वफादार' बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यहां रोज कई घंटे की क्लास होती है, जहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करने की सीख दी जाती है. इतना ही नहीं मुसलमानों से अपनी ही संस्कृति की निंदा करने के लिए भी कहा जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रशिक्षण का मकसद मुसलमानों में अपने ही धर्म के प्रति आस्था को खत्म करना और चीन के प्रति वफादार बनाना है.


चीन में करीब 2.3 करोड़ मुस्लिम आबादी है, जिसमें लगभग एक करोड़ उइगर मुस्लिम शिनजियांग प्रांत में रहते हैं. उइगर मुसलमानों के विद्रोही तेवरों के चलते उनकी अधिकांश धार्मिक स्वतंत्रता पर चीनी सरकार ने अंकुश लगाया हुआ हैं. हाल में मीडिया रिपोर्ट आई थी कि करीब 10 लाख उइगर मुस्लिमों को अपने ही शहर में नजरबंद कर दिया गया है.


साम्यवाद की पाठशाला



इन प्रशिक्षण कैंप में किसी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. इस कैंप की कैद से रिहा हुए एक व्यक्ति ने बताया कि इसमें सैकड़ों उइगर मुसलमानों को जबरदस्ती साम्यवादी साहित्य पढ़ाने और लिखने के लिए मजबूर किया जाता है. यहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ वाले लैक्टर दिए जाते हैं और कई बार उइगरों को अपनी ही बुराई करने वाले लेख लिखने के लिए कहा जाता है. इसका मकसद ये है कि वो इस्लाम को छोड़कर चीन के प्रति वफादार हो जाएं. 


न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक इस कैंप से रिहा हुए 41 वर्षीय अब्दुसलाम मुहमेत ने बताया, 'पुलिस ने मुझे उस वक्त हिरासत में लिया था, जब मैं मैयत से लौटकर कुरान की कुछ आयतें पढ़ रहा था. कैंप में करीब दो महीने तक रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.' उन्होंने कहा कि ऐसे कैंप से चरमपंथ को खत्म नहीं किया जा सकता, बल्कि इससे तो प्रतिशोधपूर्ण भावनाएं और मजबूत होगी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक माओ के शासनकाल के बाद यह विचार परिवर्तन का सबसे बड़ा कैंप है. चीन सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसे सैकड़ों कैंप खोले हैं.