America Australia: हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति के लिए खतरा बने चीन (China) की चालबाजी को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए अमेरिका (US) और ऑस्ट्रेलिया एक साथ आए हैं. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार अपने मिलिट्री बेस पर अमेरिकी सेना की तैनाती को लगातार बढ़ा रही है. वहीं इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका से घातक अत्याधुनिक हथियार भी खरीद रहा है. बीते कुछ सालों में रक्षा क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए हैं. दोनों देशों के बीच लगातार मिलिट्री ड्रिल यानी संयुक्त सैन्य अभ्यास किया जा रहा है.


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चीन से युद्ध हुआ तो ऑस्ट्रेलिया होगा हमारे साथ: ब्लिंकन


'द इकॉनमिस्ट' की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ समय पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि इस क्षेत्र में अमेरिका का ऑस्ट्रेलिया से बड़ा करीबी रणनीतिक सहयोगी और कोई नहीं है. ऐसे में अगर भविष्य में अमेरिका और चीन के बीच युद्ध छिड़ता है तो ऑस्ट्रेलिया भी उसके साथ इस जंग में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होगा. आपको बताते चलें कि अमेरिका के फाइव आई समूह में भी ऑस्ट्रेलिया की अहम भूमिका है. जिसमें ब्रिटेन, कनाडा और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं. यही वजह है कि अमेरिका बहुत सारे सीक्रेट मिलिट्री इनपुट ऑस्ट्रेलिया से साझा करता है.


ऑकस डील से सदमे में चीन


चीन की आक्रामकता का खेल खत्म करने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने तैयारी कर ली है. क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने ब्रिटेन (UK) और अमेरिका (US) के साथ AUKUS डील पर आगे बढ़ चुका है. इस डील के लिए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक ने ऐलान किया था कि ऑस्ट्रेलिया एडिलेड में आठ परमाणु-संचालित पनडुब्बियों का एक बेड़ा बनाएगा.



क्या है AUKUS डील?


AUKUS डील ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच एक सुरक्षा समझौता है. इसके तहत तीनों देश आपस में खुफिया जानकारी भी साझा करेंगे. इसके साथ ही परमाणु पनडुब्बी भी ऑस्ट्रेलिया को मिलेगी, जिससे दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया की नौसेना सबसे ज्यादा ताकतवर हो जाएगी. 2030 के दशक की शुरुआत में अमेरिका की तीन मौजूदा वर्जीनिया क्लास पनडुब्बियां 50 अरब डॉलर की कीमत पर मिलेंगी. ऑस्ट्रेलिया के पास विकल्प होगा कि वह 58 अरब डॉलर देकर दो अन्य पनडुब्बियों को खरीद सके. ऑस्ट्रेलिया पनडुब्बी निर्माण की औद्योगिक क्षमता बढ़ाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में 3 अरब डॉलर का निवेश करेगा.


एशिया में अमेरिका का लॉन्च पैड है ऑस्ट्रेलिया


करीब 2.6 करोड़ की आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद अहम हैं. उसके पास करीब 58000 सैन्य जवान हैं. अमेरिका अब ऑस्ट्रेलिया की ताकत को बढ़ा रहा है. दरअसल ऑस्ट्रेलिया जिस जगह पर स्थिति है, उसे सैन्य रणनीतिकार गोल्डीलॉक्स जोन कहते हैं. यह इलाका अमेरिका को एशिया में पावर प्रोजेक्ट करता है. यह इलाका चीन के ज्यादातर हथियारों की रेंज से परे है. वहीं इसका भौगोलिक क्षेत्रफल और स्थिति चीन से मुकाबले और अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकी सेना के लिए कई तरह से मददगार है. इसलिए ऑस्ट्रेलिया को एशिया में अमेरिका का मिलिट्री लॉन्चपैड माना जा रहा है. अमेरिका के इस इलाके में भारी सैन्य जमावड़ा जुड़ा लेने से चीन की चिंता बढ़ गई है क्योंकि अब उसकी हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में मनमर्जी नहीं चल पाएगी.