वॉशिंगटन: शैंपेन (Champagne) को लेकर फ्रांस (France) और रूस (Russia) में बीते कुछ महीनों से विवाद गरमा रहा है. विवाद की जड़ है रूस का नया कानून. इस कानून के तहत रूस चाहता है कि विदेशी शैंपेन को स्‍पार्कलिंग वाइन (Sparkling Wine) के नाम से बेचा जाना चाहिए. रूस के इस नए कानून के तहत अब केवल वहां पर बनने वाली 'शैंपेनस्कॉय' (Shampanskoe) को ही शैंपेन कहलाने का अधिकार होगा. इस नए कानून पर रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने पिछले दिनों ही साइन किए थे. इस विवाद में फ्रांस की सरकार सीधे तौर पर उतर आई है.


फ्रांस-रूस के बीच बातचीत जारी


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फ्रांस के ट्रेड मिनिस्टर फ्रेंक रिस्टर (Franck Riester) ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि शैंपेन की बोतलों पर लेबल लगाने को लेकर रूस के साथ विवाद का समाधान निकाला लिया जाएगा. फ्रांस शैंपेन शब्द का उपयोग करने के अपने अधिकार की रक्षा करेगा. विवाद का हल निकालने के लिए रूस के साथ बातचीत जारी है. 


फ्रांस में नाराजगी


दूसरी तरफ जुलाई में बने रूस के नए कानून ने फ्रांस के शैंपेन बनाने वालों को नाराज कर दिया है. यही वजह है कि वो रूस का कड़ा विरोध कर रहे हैं. रूस के इस कानून के खिलाफ आवाज उठाने वाले फ्रांस के एक औद्योगिक संगठन ने रूस को शैंपेन की सप्‍लाई रोक देने तक की धमकी दी थी. रूस और फ्रांस के बीच उठे इस विवाद में यूरोपीय आयोग पहले ही दखल दे चुका है. आयोग का कहना है कि रूस के नए कानून से वाइन निर्यात पर बड़ा असर पड़ेगा. आयोग की तरफ से साफ कर दिया गया है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे.


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कैसे पड़ा शैंपेन नाम?


आपको बता दें कि शैंपेन नाम दरअसल, फ्रांस के एक क्षेत्र शंपान्‍या के नाम पर रखा गया था, जहां से इसकी शुरुआत हुई थी. इस नाम को 100 से अधिक देशों में कानूनी रूप से सुरक्षा भी मिली हुई है. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और हैती के साथ, रूस उन कुछ देशों में से एक है जिसने कभी भी 'शैंपेन' शब्द को फ्रांस के शंपान्‍या क्षेत्र में बनी स्पार्कलिंग वाइन के लिए एक विशेष शब्द के रूप में मान्यता नहीं दी है.


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