काबुल: अफगानिस्तान (Afghanistan) में जो कुछ भी हो रहा है पूरी दुनिया उसे देख रही है. 21वीं सदी की सबसे खौफनाक तस्वीरें फिलहाल काबुल से ही आ रही है. कल एयरपोर्ट से आई तस्वीरों ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. बीते 7 दिन से अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे और टेरर की खबरें ट्रेंड हो रही हैं. इसके बावजूद बीच रूस (Russia), चीन (Chaina), पाकिस्तान (Pakistan) और टर्की (Turkey) जैसे देश लगातार तालिबान (Taliban) के साथ खड़े दिख रहे हैं. जहां एक ओर काबुल में बाकी देशों ने दूतावास बंद कर दिए लेकिन इन चार देशों ने घोषणा की है कि अफगानिस्तान में अपने दूतावास (Embassy) बंद नहीं करेंगे.


तालिबान के 4 यार!


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जब 25 साल पहले साल 1996 में तालिबानियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तब सिर्फ पाकिस्तान, UAE और सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने उनकी सरकार को मान्यता दी थी. आज के हालात में अमेरिकी फौज के वहां से हटते ही कई देशों ने अपने दूतावास बंद करते हुए अपने स्टाफ और नागरिकों को वहां से बाहर निकालने का फैसला किया है लेकिन ये चार देश तालिबान की नई सरकार को एक तरह से अपनी मान्यता दे चुके हैं. इस चौकड़ी में पाकिस्तान, चीन, टर्की और रूस का नाम भी शामिल है.


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इमरान खान काफी समय से तालिबान की शान में कसीदे पढ़ते हुए उसे नेक बंदों का संगठन बता रहे थे तो उसका तो तय था कि वो अफगानिस्तान की नई सरकार से रिश्ते नहीं तोड़ेगा. चीन की बात करें तो शी जिनपिंग (Xi Jinping) भी तालिबान से दोस्ती को तैयार हो गए. इस्लामिक वर्ल्ड का रहनुमा बनने की कोशिश में जुटे टर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन को भी काबुल की सियासत में दिलचस्पी हुई होगी तो उन्हें भी तालिबान का साथ पसंद हो गया. इसी तरह से रूस ने भी अपने नफे-नुकसान का अंदाजा लगाते हुए अपना दूतावास बंद नहीं करने का ऐलान कर दिया. 


अफगानिस्तान की संपदा पर नजर!


दरअसल कई दशकों से युद्ध में उलझे अफगानिस्तान में कुदरती संपदाओं का बड़ा भंडार मौजूद है. वैश्विक राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्राकतिक संपदाओं और अपनी भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से ये चार देश अफगानिस्तान में बड़ा मौका देख रहे हैं इसीलिए उन्होंने अपने नफे-नुकसान का ध्यान रखते हुए काबुल में मौजूद अपने दूतावास बंद नहीं करने का फैसला किया है. 


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