Iran News: अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ( International Atomic Energy Agency) ने गुरुवार को दावा किया कि ईरान (Iran ) अपनी परमाणु क्षमताओं का और विस्तार कर रहा है. एजेंसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने एक सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था के साथ तेहरान (Tehran) के सहयोग की कमी की आलोचना करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. ईरान ने प्रस्ताव को 'जल्दबाजी और नासमझी भरा' बताया था.


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एएफपी के अनुसार, IAEA ने अपने सदस्यों को जानकारी दी कि तेहरान ने एजेंसी को बताया है कि वह नतांज और फोर्डो में एनरिच फैसिलिटीज (Enrichment Facilities ) पर और अधिक कैस्केड (Cascades) स्थापित कर रहा है. कैस्केड सेंट्रीफ्यूज मशीनों की एक सीरीज है, जो यूरेनियम को समृद्ध करने की प्रक्रिया में उपयोग की जाती हैं.


ईरान के पास कई बम बनाने की सामग्री
IAEA के अनुसार, ईरान एकमात्र गैर-परमाणु हथियार वाला देश है जिसने यूरेनियम को 60 प्रतिशत के उच्च स्तर तक एनरिच किया है. ये हथियार-ग्रेड से थोड़ा ही कम है. तेहरान यूरेनियम के बड़े भंडार जमा करता रहता है.


IAEA ने कहा है कि तेहरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को काफी हद तक बढ़ा दिया है और अब उसके पास कई परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री है.


अमेरिकी प्रतिक्रिया और पश्चिम का डर
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक बयान में कहा, 'IAEA द्वारा आज जारी की गई रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार ऐसे तरीकों से करना चाहता है जिनका कोई विश्वसनीय शांतिपूर्ण उद्देश्य नहीं है.'


मिलर ने कहा, 'ईरान को अपने कानूनी रूप से बाध्यकारी सुरक्षा दायित्वों को पूरी तरह लागू करने के लिए बिना किसी देरी के आईएईए के साथ सहयोग करना चाहिए.'


पश्चिमी शक्तियों को डर है कि तेहरान परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर सकता है. हालांकि ईरान इस दावे को नकारता आया है.


2015 का परमाणु समझौता
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने 2015 में विश्व शक्तियों के साथ किए गए परमाणु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं से धीरे-धीरे नाता तोड़ लिया है.


इस ऐतिहासिक समझौते ने ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने के बदले पश्चिमी प्रतिबंधों से राहत प्रदान की गई थी.


हालांकि 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में संयुक्त राज्य अमेरिका के एकतरफा वापसी के बाद यह समझौता टूट गया.


File photo courtesy: Reuters


इस समझौते को पुनर्जीवित करने के प्रयास अब तक विफल रहे हैं.