India Electoral Process: भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवाधिकार अधिकारी के देश की चुनावी प्रक्रिया को लेकर जतायी गई चिंताएं पर दो टूक प्रतिक्रिया दी. भारत ने कहा कि उनकी चिंताएं.. अनावश्यक हैं. अरिंदम बागची ने कहा कि यूएन अधिकारी का बयान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करता. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में कई लोग भारत के चुनावी अनुभव से सीखना चाहते हैं और इसका अनुकरण करने की इच्छा रखते हैं. 


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जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत अरिंदम बागची ने कहा कि दिल्ली ने देश के आगामी आम चुनावों के बारे में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क की टिप्पणियों पर गौर किया है. जिनेवा में मानवाधिकार परिषद के 55वें सत्र में अपने वैश्विक ‘अपडेट’ में, तुर्क ने "नागरिक अधिकारों पर बढ़ती पाबंदियों - मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और कथित आलोचकों को निशाना बनाने के साथ-साथ अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और नफरती भाषण’’ पर चिंता जतायी थी. 


बागची ने कहा, “हालांकि, इस संबंध में उनकी चिंताएं अनावश्यक हैं और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं.” बागची ने रेखांकित किया कि किसी भी लोकतंत्र में, “तर्क-वितर्क स्वाभाविक है. यह जरूरी है कि प्राधिकार के पदों पर बैठे लोग अपने फैसले को दुष्प्रचार से प्रभावित न होने दें." उन्होंने कहा कि भारत की चुनावी प्रक्रिया की विशेषता लोगों की उच्च स्तर की भागीदारी और चुनावी जनादेश में सभी का पूर्ण विश्वास है. 


उन्होंने कहा, "वास्तव में, हम सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया भर में कई लोग हमारे अनुभव से सीखना चाहते हैं और उसका अनुकरण करने की इच्छा रखते हैं." बागची ने कहा, "हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि अतीत में कई मौकों की तरह, भारतीय लोग एक ऐसी सरकार चुनने के लिए स्वतंत्र रूप से अपने वोट का प्रयोग करेंगे, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह उनकी आकांक्षाओं को आवाज और उड़ान दे सकती है." 


तुर्क ने अपने वैश्विक ‘अपडेट’ में कहा कि 96 करोड़ मतदाताओं के साथ भारत में आगामी चुनाव पैमाने में अद्वितीय होगा. उन्होंने कहा, "मैं देश की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक परंपराओं और इसकी महान विविधता की सराहना करता हूं." भारत में 2024 के आम चुनावों के लिए मतदान होगा, जो अप्रैल और मई के बीच होने की उम्मीद है. हालाकि, तुर्क ने नागरिकों के अधिकारों पर "बढ़ती पाबंदियों" के साथ-साथ अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ नफरती भाषण और भेदभाव के बारे में चिंता व्यक्त की. 


उन्होंने पिछले महीने भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा सूचना के अधिकार और पारदर्शिता को बरकरार रखते हुए प्रचार अभियानों के वित्तपोषण पर दिये गए फैसले का स्वागत भी किया. उच्चतम न्यायालय ने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले हाल में एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया तथा चंदा देने वालों, बॉण्ड के मूल्यों और उनके प्राप्तकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. बागची ने कहा कि बहुलता, विविधता, समावेशिता और खुलापन भारत की लोकतांत्रिक राजनीति और इसके संवैधानिक मूल्यों के मूल में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ये एक मजबूत न्यायपालिका सहित पूरी तरह से स्वतंत्र संस्थानों द्वारा समर्थित हैं, जिसका उद्देश्य सभी के अधिकारों की रक्षा करना है."


(एजेंसी इनपुट के साथ)