Israel Hamas War: 7 अक्टूबर को इजरायल ने हमास का ऐसा हमला देखा, जिसकी कल्पना उसने सपने में भी नहीं की होगी. इजरायल के 1400 नागरिकों को हमास के आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया. मरने वालों में औरतें, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे. 


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लेकिन वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक हमास के आतंकियों को ट्रेनिंग ईरान की कुद्स फोर्स के ब्रिगेडियर जनरल इस्माइक कानी से मिली थी. कुद्स फोर्स ईरान की सेना यानी इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC). इसकी कमान ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के पास है. साल 1979 में ईरानी क्रांति के बाद इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) की स्थापना हुई थी. बाहरी से लेकर आंतरिक मामलों और इस शिया मुल्क के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी इसी फोर्स पर है. 


IRGC का ऐसा है दबदबा


ईरान के पास जल सेना, थल सेना, वायुसेना के अलावा पुलिस भी है. लेकिन जो तवज्जो रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स को मिली हुई है, उतनी किसी की नहीं. सिर्फ ईरान की विदेश नीति ही नहीं बल्कि उसकी इकोनॉमी के कई हिस्सों पर भी IRGC का दबदबा है.


IRGC के इस क्षेत्र में कई सैन्य समूहों जैसे लेबनान के हिजबुल्लाह से भी संबंध हैं, जिसकी मदद से ईरान की सेना और ताकतवर हो जाती है. इतना ही नहीं इसके अधिकारियों का दबदबा घरेलू राजनीति में भी है. साल 2019 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने IRGC को एक आतंकी संगठन घोषित कर दिया था. साल 2023 में यूरोपियन यूनियन (ईयू) भी इसी पर विचार कर रहा है. बहरीन और सऊदी अरब भी इसे आतंकी संगठन ही मानते हैं.


क्यों हुई थी स्थापना?


ईरान में साल 1979 की क्रांति से पहले शाह रजा पहलवी की हुकूमत थी. सत्ता उनके दोस्तों और रिश्तेदारों में बंटी हुई थी. 70 का दशक आते-आते अमीरों और गरीबों के बीच जो खाई थी, वह इतनी गहरी हो गई कि लोगों का शाह के ऊपर से भरोसा उठने लगा. शाही तौर-तरीकों से लोगों की नाराजगी और बढ़ी. इसके बाद लोगों का भरोसा पेरिस में निर्वासिन की जिंदगी जी रहे शिया धार्मिक नेता आयतुल्लाह खुमैनी पर बढ़ा. उन्होंने जनता को भरोसा दिया कि इस्लामी मूल्यों को अपनाते हुए आर्थिक और सामाजिक सुधार किए जाएंगे. बस यही तो ईरान की जनता को चाहिए था.


इसके बाद 70 का दशक खत्म होते-होते ईरान में जबरदस्त हिंसा भड़क गई और शाह के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए. लगातार हड़तालों से इकोनॉमी ठप हो गई. वक्त के साथ खुमैनी की रायशुमारी हो गई और उनको आजीवन ईरान का धार्मिक नेता घोषित कर दिया गया. 


शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के पतन के तुरंत बाद आईआरजीसी की स्थापना की गई थी.  यह कानून और न्यायपालिका की सीमा से परे काम करती थी. यह सिर्फ ईरान के सर्वोच्च नेता के प्रति उत्तरदायी है और इसकी कमान संरचना चुने हुए  राष्ट्रपति को दरकिनार कर देती है.


दरअसल खुमैनी को शाह के अधीन रही सेना पर ज्यादा भरोसा नहीं था. इसलिए उन्होंने ऐसी सेना बनाने की ठानी, जो नए सत्ताधारी और उनके लोगों के विश्वास वाली हो और किसी भी तरह के काम को अंजाम दे सके. उसका तालमेल और दखल न सिर्फ सेना बल्कि पुलिस में भी हो. 


इराक युद्ध ने बनाया मजबूत


साल 1980-1988 के बीच ईरान-इराक युद्ध ने IRGC को और मजबूत और पेशेवर लड़ाकू सेना बना दिया, जिसका कमांड ढांचा पश्चिमी देशों की सेनाओं जैसा था. इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज (IISS) के मुतबिक इसकी कमांड के तहत 190,000 सैनिक आते हैं. आज हालात ऐसे हैं कि ईरान की सेना की यह मानती है कि ताकत में IRGC उससे ऊपर है. वह उसे पूरा सहयोग देती है. 


ईरान-इराक युद्ध में पहली बार IRGC को उतारा और उसने इस क्षेत्र के बाहरी सैन्य समूहों को मदद देनी शुरू कर दी. इसके बाद IRGC की बाहरी मामलों को संभालने वाली ब्रांच यानी कुद्स फोर्स का जन्म हुआ. इसने अफगानिस्तान, इराक, लेबनान और फलस्तीन के आतंकी संगठनों से रिश्ते कायम किए और उनको ट्रेनिंग, हथियार, पैसा और मिलिट्री सलाह देने का काम किया. इसके पीछे मकसद विदेशों में ईरान को पावर सेंटर के तौर पर प्रोजेक्ट करना था. 


इकोनॉमी पर भी है कंट्रोल


सिर्फ सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस ही नहीं बल्कि ईरान की इकोनॉमी पर भी इसका दबदबा है. कई कंपनियों और चैरिटी ऑर्गनाइजेशन्स पर उसका कंट्रोल है. जिन लोगों की इसमें नियुक्ति होती है, उनकी सैलरी काफी अच्छी मानी जाती है. यह संगठन खूब पैसा कमाता है. खास बात ये भी है कि ईरान की सरकार में आधे से ज्यादा लोग रेवॉल्यूनशरी गार्ड के रिटायर्ड लोग ही होते हैं.